श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 33

श्री कृष्णा और वाणासुर का युद्ध



श्री पाराशर जी बोले है मैथिली एक बार प्रभु शिव शंकर को प्रणाम करवाना और वनसुर बोला हे प्रभु बिना युद्ध के इन हजार भुज से मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है क्या कभी इन भुज को सफल करने वाले युद्ध होगा युद्ध के बिना इस भर रूप भुज से मुझे क्या लाभ प्रभु शिव शंकर जी बोले ही वनसुर जब तेरी मयूर के चिन्ह वाली ध्वज टूट जाएगी तभी तेरे समक्ष मांस भौजी यज्ञ पिसाचार आदि को आनंद देने वाला युद्ध उपस्थित होगा श्री पाराशर जी बोले फिर वनसुर वरदायक प्रभु शिव शंकर को हाथ जोड़कर प्रणाम कर अपने घर आया और फिर कालांतर में उसे मयूर चिन्ह वाली ध्वज को टूटी देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ इस समय उषा की प्रिया सखी चित्रलेखा अपने योग बल से अमरुद को वहां ले आई अमरुद को कायणता पूर्व में उषा के साथ रावण करते हुए जानकर अंतापुर के राक्षसों ने देशराज वनसुर को जाकर संपूर्ण वृतांत सुना दिया यह सुनकर देशराज वनसुर ने अपनी सेवकों को उस युद्ध करने की आज्ञा दी लेकिन शत्रु दमन अनुरोध ने अपने समझ आने पर उसे समस्त सी को एक लव में दंड से मार डाला अपने सेवकों के मारे जाने की खबर सुनते ही देते राजवाड़ा रात पर चढ़कर अमरूद का वध करने के लिए उसे युद्ध करने लगा अपनी शक्ति बल पर युद्ध करने पर भी वह अनुरोध जी से हार गया फिर वाराणसी ने मयपूर्वक युद्ध कर यदुनंदन अनुरोध को नाक पास से बांध दिया इधर समस्त द्वारिका में अनुरोध कहां चले गए यह चर्चा हो रही थी उसी समय वर्षीय नारद जी ने उन्हें वाराणसी द्वारा अनुरोध को नाग प्रश्न में माथे जाने की सूचना दी देवर्षि नारद जी के मुख से ही योग विद्या में निपुण युक्ति चित्रलेखा द्वारा उसे शोभित पूर्व ले जाने की बात सुनकर यादों को विश्वास हो गया कि उन्हें देवताओं ने नहीं चुराया है तब स्मरण मात्र से उपस्थित हुए गरुड़ पर चढ़कर प्रभु श्री कृष्ण जी बलराम और प्रदुमन वनसुर की राजधानी पहुंचे उनके नगर में घुसते ही तीनों का प्रभु शिव शंकर के पार्षद प्रमाण घन से युद्ध हुआ उन्हें नष्ट कर प्रभु श्री कृष्ण जी बाणासुर की राजधानी के समीप चले गए फिर वाराणसी की रक्षा के लिए तीन सर और तीन पैर वाला महेश्वर नामक महान ज्वार आगे बढ़कर प्रभु श्री कृष्ण जी से लड़ने लगा उसे ज्वार का ऐसा प्रभाव था कि उसके फेक हुए भस्म के स्वरूप से संतृप्त हुए प्रभु श्री कृष्ण जी के शरीर का आलिंगन करने पर बलराम जी भी शिथिल होकर नेत्रमुट लिए इस तरह प्रभु श्री कृष्ण जी के साथ उनके शरीर में व्याप्त होकर युद्ध करते हुए उसे महेश्वर ज्वार को वैष्णव जोर ने तुरंत उसके शरीर से निकाल दिया उसे समय प्रभु श्री कृष्ण जी की भुजाओं के आघात से उसे महेश्वर ज्वार को पीड़ित और बिहार हुआ देख ब्रह्मा जी ने प्रभु से कहा आप इसे क्षमा कर दीजिए तब प्रभु श्री कृष्ण ने अच्छा मैं क्षमा किया यह कह कर उसे वैष्णव जोर को अपने में लिंक कर लिया ज्वार बोला जो भी मनुष्य आपके साथ मेरे उसे इस युद्ध का स्मरण करेगा वह ज्वार हैं हो जाएगा यह कहकर वह चला गया फिर प्रभु श्री कृष्ण जी ने पांच  अग्नि को जीत कर नष्ट किया और फिर लीला से ही दोनों सी को नष्ट करने लगे तब समस्त दैत्य सी सहित बाली पुत्र वाराणसी प्रभु शिव शंकर और कार्तिकेय जी प्रभु श्री कृष्ण जी के साथ युद्ध करने लगे प्रभु श्री कृष्ण जी वह प्रभु शिव शंकर का आपस में घोर युद्ध हुआ इस युद्ध में प्रयुक्त शास्त्रों शास्त्रों के किरण जल से संतृप्त होकर समस्त लोग स्रावित हो जाएं

TRANSLATE IN ENGLISH 

Battle of Shri Krishna and Vanasura

Shri Parashar ji said in Maithili, once pay obeisance to Lord Shiv Shankar and Vansur said, O Lord, I am feeling very distressed by these thousand arms without war, will there ever be a war that will make these arms successful, without war, by this mere form of arms? What benefit do I have? Lord Shiv Shankar ji said, Vanasura, when the flag with your peacock symbol will break, then only a war will appear in front of you which gives pleasure to meat, meat, yagya, vices etc. Shri Parashar ji said, then Vanasura, bow down to Lord Shiv Shankar, the giver of blessings, with folded hands. He came home and later on, he was very happy to see the flag with peacock symbol broken. At this time, Usha's beloved friend Chitralekha brought Guava there with the power of her yoga. Knowing that Guava was doing Ravana with Usha in the past, the demons of Antapur Deshraj went to Vansur and narrated the whole story. Hearing this, Deshraj Vansur ordered his servants to fight that war, but when he understood the enemy's desire to suppress the enemy, he killed all of them with a single blow. On hearing the news of his servants being killed, As soon as Rajwada came in the night, he started fighting with Guava to kill him. Despite fighting with his own power, he lost to Varanasi ji. Then Varanasi fought with great enthusiasm and tied Yadunandan Varanathan by his nose. Here, where is Varanathan in the whole of Dwarka? This discussion was going on, at the same time the old Narad ji informed him about Varanasi's request to go to Nag Prashna. Hearing from the mouth of Devarshi Narad ji that Yukti Chitralekha, adept in Yoga Vidya, had taken him to Shobhit East, memories came alive. After believing that the Gods had not stolen them, Lord Shri Krishna ji, who was present by mere remembrance, mounted on Garuda and reached the capital of Balram and Praduman Vanasura. As soon as they entered the city, all three of them had a fight with Lord Shiv Shankar's councilor Praman Ghan and destroyed them. Lord Shri Krishna ji went near the capital of Banasur, then to protect Varanasi, a great tide named Maheshwar with three heads and three legs came forward and started fighting with Lord Shri Krishna. The tide had such an effect that the form of ashes thrown by him was Satisfied, after embracing the body of Lord Shri Krishna, Balram ji also became relaxed and closed his eyes. In this way, while fighting with Lord Shri Krishna ji by spreading in his body, the Maheshwar tide was immediately removed from his body by the Vaishnav force. Seeing him suffering from Maheshwar tide and being Bihar due to the blow of Lord Shri Krishna's arms, Brahma ji said to Lord please forgive him then Lord Shri Krishna linked him to Vaishnav Jor by saying ok I have forgiven him. Jwar said, any person who remembers this war between me and you will become Jwar. Saying this he went away. Then Lord Shri Krishna ji defeated the five fires and then started destroying both of them through Leela, then all the Bali's son Varanasi along with the demon Lord Shiv Shankar and Kartikeya ji started fighting with Lord Shri Krishna ji, Lord Shri Krishna ji and Lord Shiv Shankar had a fierce fight among themselves, all the people got saturated with the rays of water of the scriptures used in this war. become

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ