श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 31

भगवान का द्वारिका में पूरी में लौटना और 16100 कन्या से विवाह करना



श्री पाराशर जी बोले हे मुनिश्रेष्ठ देवराज इंद्र ने इस तरह से जब प्रभु की स्तुति की तो प्रभु श्री कृष्ण जी में इस प्रकार कहा श्री कृष्ण जी बोले हे जगत पत्ते आप देवराज इंद्र हैं और हम मरण धर्म मनुष्य हैं हमने जो भी अपराध किया है कृपया आप उसे क्षमा करें यह मैंने जो पारिजात वृक्ष लिया था इससे इसके योग्य स्थान ले जाएंगे है सकरा इसे तो मैं सद्भामा के कहने से लिया था और आपने जो बज देखा था उसे भी ले लीजिए क्योंकि है सकरा शत्रुओं का नाश करने वाला यह शास्त्र आप ही का है देवराज इंद्र बोले हे प्रभु मैं मनुष्य हूं यह कह कर क्यों मुझे मोहित करते हैं हे प्रभु मैं तो आपके इस सद्गुण रूप को ही जानता हूं हम आपके सुषमा स्वरूप को जानने वाले नहीं है हम तो सिर्फ इतना ही जानते हैं कि आप जगत कल्याण में तत्पर हैं और इस तरह के कांटों को निकाल कर दूर कर रहे हैं है कृष्णा इस पारिजात वृक्ष को आप द्वारिका पुरी ले जाएंगे जिस समय आप मृत्यु लोक छोड़ देंगे इस समय या भूलोक में नहीं रहेगा ही देव है जगन्नाथ है कृष्णा है विष्णु है मा बाहों में सॉन्ग चक्र गदा पान मेरी इस दृष्टता को क्षमा करें श्री पाराशर जी बोले फिर प्रभु श्री कृष्ण जी देवराज इंद्र से यह कहकर कि जैसे तुम्हारी इच्छा वैसे ही सही सिद्ध गंधर्व और देवासी गन से स्तुति हो भूल लोग में चले गए हिंदी श्रेष्ठ प्रभु श्री कृष्ण जी ने द्वारिका पुरी के ऊपर पहुंचा शंख बजा कर अपने आने की सूचना देकर समस्त द्वारिका वीडियो को आनंदित कर दिया फिर सद्भावना सहित गरुड़ से उतारकर उसे पारिजात वृक्ष को सद्भावना के गृहदान में लगा दिया जिसके पास आते ही मनुष्य को अपने पूर्व जन्म का स्मरण हो जाता है और जिसकी पुष्पों से निकली हुई गांड खुशबू से तीन योजन तक पृथ्वी सुगंधित रहती है यादों ने उसे वृक्ष के समीप जाकर अपना मुख देखा तो उन्हें अपना शरीर मनुष्य दिखाई दिया फिर प्रभु श्री कृष्ण जी ने नरकासुर के सेवकों द्वारा लाई हुई हाथी घोड़े आदि धन को अपने बंधु बंधनों मे बांट दिया और नरकासुर की वरुण की हुई समस्त कन्याओं को स्वयं ले लिया और फिर प्रभु श्री कृष्ण जी ने उसके साथ विवाह किया है महामुनि प्रभु श्री कृष्ण जी ने एक ही समय में अलग-अलग भावनाओं में उन 16100 स्त्रियों के साथ अलग-अलग रूप बनाकर विधिवत धरमपूर्वक पाणिग्रहण किया उसे समय प्रत्येक कन्या भगवान श्री कृष्ण जी ने मेरा ही पानी ग्रहण किया है इस तरह उन्हें एक ही समझ रही थी यह मैथिली प्रभु श्री कृष्ण जी रात्रि में उन सभी के घरों में रहते थे

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Lord returns to Puri in Dwarka and marries 16100 girls

Shri Parashar ji said, O wisest Devraj Indra, when he praised the Lord in this way, then Lord Shri Krishna said in this way, Shri Krishna ji said, O world leaves, you are Devraj Indra and we are mortal human beings, whatever crime we have committed, please Please forgive him, this Parijat tree which I had taken will be taken to its worthy place, Sakra. I had taken it on the advice of Sadbhama and also take the ring that you had seen because it is Sakra that you yourself are the scripture that destroys the enemies. Devraj Indra said, O Lord, why do you fascinate me by saying that I am a human being? O Lord, I only know your virtuous form, we are not going to know your Sushma form, we only know that you are the welfare of the world. I am ready and am removing such thorns and removing them. O Krishna, you will take this Parijat tree to Dwarika Puri, at the time when you will leave the world of death, it will not remain in this world or earth, only God is Jagannath, Krishna is Vishnu, Maa. Song, Chakra, Gada Paan in arms, please forgive my shortsightedness, Shri Parashar ji said, then Lord Shri Krishna ji said to Devraj Indra that as per your wish, praise should be given with the Siddha Gandharva and Devasi guns, but people forgot Hindi, the best Lord Shri. Krishna ji reached Dwarka Puri and announced his arrival by blowing the conch and made all the people of Dwarka happy, then took it down from Garuda along with good will and planted it in the house of Parijat tree of good will, near which the person remembers his previous birth as soon as he comes near it. It becomes and whose ass fragrance emanating from flowers keeps the earth fragrant for three yojanas. Memories made him go near the tree and look at his face and he saw his own body as a human being. Then Lord Shri Krishna ji saw the elephants and horses brought by the servants of Narakasura. He distributed the wealth among his brothers and took all the daughters of Varun of Narakasura himself and then Lord Shri Krishna married them. Mahamuni Lord Shri Krishna ji, in different emotions at the same time, married those 16100 Taking different forms with the women, he took the water ritually and at that time, every girl accepted the water of Lord Shri Krishna, thus thinking of them as one and the same, this Maithili Lord Shri Krishna used to stay in the houses of all of them at night.

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