श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 9 का भाग दो



श्री पाराशर जी बोले तब रोहिणी नंद के बल वीर्य को जानने वाले महात्मा श्री कृष्ण ने मधुर मुस्कान से अपने हॉट समझ को खोलते हुए बलराम से कहा श्री कृष्ण जी बोले ही सर्वप्रथम आप समस्त गुहा पदार्थ में अत्यंत गुहा स्वरूप होकर भी स्पष्ट मानव भाव क्यों ए बालम कर रहे हैं आप अपने उसे स्वरूप का वर्णन कीजिए जो संपूर्ण जगत का कारण तथा कारक का भी पूर्ववर्ती है पर लेखपाल में भी स्थिति रहने वाले हैं क्या आपको ज्ञात नहीं है कि आप और मैं दोनों इस जगत के एकमात्र कारण है और पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही मृत्यु लोक में आए हैं यह आनंद आकाश आपका सर है मैं बादल कैसे बाल है पृथ्वी चरण पर है अग्निमुख मुख है चंद्रमा मन है वायु सांस प्रशासन है और चारों दिशाएं बहू है हे प्रभु आप महाकाल है आपके सशस्त्र मुख्य है तथा शास्त्रों हाथ पांव आदि शरीर के भेद हैं आप सहस्त्र ब्राह्मणों के आदि कारण है मुनीजा आपका सहस्त्र प्रकार से वर्णन किया करते हैं आपका दिव्य रूप को आपके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जानता अतः सारे देवता आपके अवतार रूप की है ही उपासना करते हैं क्या आपको विदित नहीं है कि अंत में यह समस्त जगत आप में ही लीन  हो जाता है हे प्रभु आपसे ही धारण किए हुए यह पृथ्वी सारे चराचर जगत को धारण करते हैं इस्मत आदिकाल स्वरूप आप ही कलयुग आदि वेदों से इस संसार का ग्रास करते हैं जिस तरह बड़वानल से पिया हुआ वायु द्वारा हिमालय तक पहुंच जाने पर हम का रूप धारण कर लेता है और फिर सूर्य की करने का सहयोग होने से जल पानी स्वरूप हो जाता है इस तरह हिंसा यह संसार रुद्री रूप से आप ही के द्वारा विनिष्ट होकर आप परमेश्वर के ही अधीन रहता है और फिर प्रत्येक कप में आपके हिरण गर्व रूप है सृष्टि रचना में प्रभावित होने पर यह विराट रूप से स्कूल जगदीप हो जाता है हे प्रभु आप और मैं दोनों ही इस जगत एकमात्र कारण है जगत के हित के लिए हमने अलग-अलग रूप धारण किए हैं आता है अभिनव आप अपने स्वरूप को स्मरण कीजिए और मनुष्य भाव का ही अंबाला कर इस डेट का वध कर बंधु जनों का हित साधन कीजिए श्री कृष्ण द्वार इस प्रकार स्मरण कराए जाने पर अति बलवान बलराम जी निबंध मां मुस्कुराते हुए प्रवालासुर को पीड़ित करने लगे उन्हें क्रोध से अपने नेत्र लाल करके उसके मस्ताक्स पर जोर से प्रहार किया उसे प्रहार की जोर से प्रवाह और का मांस दिमाग फट गया और उसके मुख से हर वक्त निकल आया वह रक्त वामन उल्टी करता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा और मर गया अद्भुत कर्मों बलराम जी द्वारा प्रवाह और को मरा हुआ देखकर सारे खूब गांड खुशी से झूम उठे और साधु साधु कहते हुए उनकी प्रशंसा करने लगे प्रवालासुर के मारे जाने के पश्चात बलराम जी श्री कृष्ण जी के साथ वापस गोकुल में लौट आए

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Shri Parashar ji spoke, then Mahatma Shri Krishna, who knew the strength of Rohini Nand's semen, opened his hot understanding with a sweet smile and said to Balram, Shri Krishna ji said, first of all, why did you, despite being an extremely cavity form in all the hollow matter, have a clear human feeling? You are trying to describe your nature which is the antecedent of the cause and effect of the entire universe but also resides in the accounting department. Don't you know that both you and I are the sole cause of this universe and the weight of the earth? You have come to the world of death only to bring down this bliss, the sky is your head, I am like a cloud, the earth is the hair, the earth is at the feet, the mouth is the fire, the moon is the mind, the air is the breath, the administration is there and all the four directions are the daughter-in-law, O Lord, you are Mahakaal, your armed chief and the scriptures. There are differences in the body like hands and legs etc. You are the original cause of thousands of Brahmins, Munija, they describe you in thousands of ways. No one knows your divine form except you, hence all the gods worship your incarnation form. Don't you know? That in the end this entire world gets absorbed in you, O Lord, this earth is held by you only, this earth holds the entire living world, you are the original form of Ismat, you swallow this world from Kaliyuga etc. Vedas, just as one drinks from the river. When the air reaches the Himalayas, it takes the form of Hum and then with the help of the Sun, the water turns into water. In this way, this world of violence gets destroyed by you in the form of Rudri and remains under the control of God. And then in every cup, your deer is a proud form, when it gets influenced in the creation of the universe, it becomes a school of Jagdeep in a huge way. O Lord, you and I both are the only reason for this world. For the benefit of the world, we have taken different forms. Abhinav comes, you remember your form and with the help of human spirit, by killing this date, serve the welfare of your brothers. On being reminded in this way by Shri Krishna, the very strong Balram ji started to torment Pravalasur with a smiling mother. With his eyes red with anger, he hit him hard on the forehead. Due to the force of the blow, the flesh and brain burst and blood came out of his mouth all the time. He vomited blood and fell on the earth and died. Amazing deeds of Balram ji. Seeing Pravalasura dead, all the many donkeys jumped with joy and started praising him by calling the sages sages. After killing Pravalasur, Balram ji returned back to Gokul with Shri Krishna ji.

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