श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 9

प्रलम्ब वध 



श्री पाराशर जी बोले अपने अनुचर सहित उसे गर्व और के मारे जाने के पश्चात वह सूर्यास्त तलवण गोप और गोपियों के लिए सुखदायक हो गया धेनु कसूर का वध करने के पश्चात बलराम वह श्री कृष्ण जी प्रसन्न मन से भंडारिक नामक शब्द वृक्ष के नीचे पहुंचे अपने कंधे पर गाय बांधन वाली राशि डाले वन माला से विभूति हुए बलराम व श्री कृष्णा गेट ब्रिज पर चढ़ते हुए दूर तक गायों को कैरेट तथा गायों का नाम लेकर उन्हें पुकारते हुए नए सिंह वाले वचनों की तरह सुशोभित हो रहे थे बलराम और श्री कृष्ण के वस्त्र सुनहरी और श्याम रंग के रंगे हुए थे हुए इंद्रधनुष युक्त श्वेत और श्याम वेद के समान लग रहे थे वह संपूर्ण लोकपालों के प्रभु पृथ्वी अवतार लेकर अनेक प्रकार की लौकिक लीलाएं कर रहे थे मनुष्य धर्म में तात्पर्य रहकर मनुष्यता का सामना करते हुए हुए मनुष्य जाति के गुना की किदाई करते हुए वन में घूम रहे थे बलराम और श्री कृष्ण दोनों महाबली वीर वाला कभी झूले में झूले आकर बलराम कभी परस्पर मल युद्ध कर और कभी पत्थर फेंक कर अनेक प्रकार के व्यायाम कर रहे थे उसी समय प्रबल नमक देते ग्रुप वेस्ट धारण कर उन दोनों खेलते हुए बालकों को उठा ले जाने की इच्छा से वहां आया और उन बच्चों के बीच घुसकर खेलने लगा उन दोनों की सावधानी का असर देखते हुए प्रबल आदित्य ने श्री कृष्ण को तो अजय समझा और उसने बलराम जी का वध करने का निश्चय किया वह समस्त ग्वाल बाल हिरनी हिरण नाम का खेल खेलते हुए आपस में एक साथ दो दो बालक उठे दम के साथ श्री कृष्णा बलराम के साथ प्रबल और इसी तरह अन्य गोपियों के साथ और और ग्वाल वाला उछलते हुए चलने लगे अंत में श्री कृष्ण ने भी दम को बलराम जी ने प्रबल को तथा अन्य श्री कृष्णा पक्षी गोपियों ने अपने प्रति पक्षियों को पराजित कर दिया उसे खेल में जॉर्ज हम बालक पराजित हारे हुए थे वह सारे जितने वाले को अपने कंधे पर बिठाकर भंडारी शब्द वृक्ष तक ले जाकर वहां से फिर लौट आए लेकिन प्रबल बलराम जी को अपने कंधे पर बिठाकर चंद्रमा के सहित में के समान अत्यंत विवेक से आकाश मंडल को चल दिया वह प्रबल दैत्य रोहिणी नाम श्री बलराम के भर को सहन नहीं कर सकते के कारण वर्ष कालीन में के समान बढ़कर अत्यंत स्थूल शरीर वाला हो गया तब माल एवं आभूषण धारण किए सर पर मुकुट पहने साड़ी के पहियों के समान भयानक नेत्रों वाले अपने बाद प्रहार पैरों के प्रहार से पृथ्वी को कामयाब करते हुए तथा अधिक पर्वत के आकार वाले उसे डेट को देखकर उसे निडर रक्षा के द्वारा ले जाए जाते हुए बलराम जी ने श्री कृष्ण से कहा भैया कृष्ण देखो श्यामपूर्वक गोपेश धारण करने वाले अपना महाकाय दैत्य मुझे हर लिए जा रहा है अब मैं क्या करूं मुझे शीघ्र बताओ यह दुरात्मा बहुत शीघ्रता से दौड़ता जा रहा है

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pallap slaughter

Shri Parashar ji said that after killing him along with his attendants, he became proud and the sunset became pleasant for the Talvan Gopas and Gopis. After killing Dhenu Kasur, Balram, Shri Krishna ji reached under the Shabda tree named Bhandarika with a happy heart and placed his shoulders on his shoulders. Balram and Shri Krishna, adorned with the forest garland, wearing the zodiac sign of tying a cow, were climbing the gate bridge, caressing the cows at a distance and calling them by name, the clothes of Balram and Shri Krishna were decorated like the words of a new lion. And he was painted black in color and looked like the white and black Vedas with a rainbow. He was the Lord of all Lokpals, taking the earthly incarnation and doing many types of worldly activities. He was engaged in the religion of humanity and faced the humanity in multiple times. While plowing, Balram and Shri Krishna were roaming in the forest, both the mighty and brave ones, sometimes by swinging in a swing, sometimes by fighting with each other and sometimes by throwing stones, Balram was doing various types of exercises, at the same time he was giving strong salt and wearing a group vest. He came there with the desire to take away the children while they were playing and entered among them and started playing. Seeing the effect of their caution, Prabal Aditya considered Shri Krishna as Ajay and he decided to kill Balram ji. While playing a game called Cowherd Child Hirni Hiran, two children together got up with courage, Shri Krishna became stronger with Balram and similarly with other Gopis and the cowherd boy started walking jumping and in the end Shri Krishna also became stronger with Balram. Ji defeated Prabal and other Shri Krishna birds and Gopis. George and us boys were defeated in the game. He carried all the winners on his shoulders to the Bhandari word tree and returned from there but Prabal Sitting Balram ji on his shoulder, he moved across the sky with utmost discretion like the moon. That powerful demon named Rohini could not bear the weight of Shri Balram, so he grew like a moon and had a very thick body. Balram ji, wearing goods and jewellery, wearing a crown on his head, having eyes as terrible as the wheels of a saree, conquering the earth with the blows of his feet, and looking at his date, which was as big as a mountain, was being carried away by the fearless Raksha. Said to Shri Krishna, Brother Krishna, look, your giant demon wearing dark cowhide is going to take me away, now what should I do, tell me quickly, this evil demon is running very fast.

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