श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 19

भगवान का मथुरा में प्रवेश रजक वध तथा माली पर कृपा



श्री पाराशर जी बोले यदुवंशी अक्रूर जी ने प्रभु श्री हरि विष्णु जी का जल के भीतर इस तरह इस दुनिया कर उन्हें सर्वस्त्र का मन कल्पित धूप दीप और पुष्पति से पूजन किया अपने मन को अन्य विषयों से हटाकर उन्हें में लगा दिया और चिरकाल तक उन ब्रह्म भूत में ही समाहित भाव से स्थित रहकर फिर समाधि से वृतांत हो गए फिर अक्रूर जी अपने को कृत कत सा मानते हुए यमुना जी के जल से निकाल कर फिर से रात उन्होंने आचार्य युक्त नेत्रों से बलराम और कृष्णा जी को पूर्वक पद पर बैठे देखा उसे समय श्री कृष्ण की आकृति से बोले अक्रूर जी क्या आपने यमुना जी के जाल में कोई आश्चर्यजनक बात अच्छी है जो आप आश्चर्यचकित हो रहे हैं अक्रूर जी बोले हे अच्युत महीने जो आश्चर्य यमुना के जाल में देखा हुआ आश्चर्य में अपने सामने मूर्ति मां देख रहा हूं है कृष्णा यह महान आश्चर्य में जगत जी महात्मा का स्वरूप है उन्हें परम आचार्य स्वरूप आपके संग मेरा समागम हुआ है हे प्रभु आप इस आश्चर्य के विषय में माय और क्या कहूं चलो हमें शीघ्र ही मथुरा पहुंचना है यह कहकर अक्रूर जी ने वायु के वेज वाले घोड़े को आपका तो विपरीत गति से भागे और स्वयं कल से पहले मथुरा पुरी में पहुंच गए मथुरा पुरी को देखते ही अक्रूर जी ने रात रोक बलराम और श्री कृष्ण से कहा है वीरों आप आप दोनों यहां से पैदल ही जाएं और मथुरा से पहुंचकर वासुदेव जी के घर मत जाना क्योंकि दूर बुद्धि कंस आपके कारण वासुदेव जी का निरादर करता है यह कहकर आकृति रात पर सवार होकर मथुरा पुरी से चले गए उनके पीछे बलराम और श्री कृष्णा भीम नगर में प्रवेश कर गए नगर के मार्ग में उन्हें वस्त्र रखने वाले रजक को घूमते हुए देखा बलराम और श्री कृष्ण ने उनसे का रंग बिखरने सुंदर वस्त्र मांगे वह रजक दुर्बुद्धि कंस का था और राजा का प्रिया होने के कारण वह बहुत ही घमंडी था आता बलराम जी और कृष्ण के वस्त्र मांगने पर उनसे उन दोनों में काफी दुर्वाचन बुरे शब्द कहे उनके मुख से यह सब सुनकर श्री कृष्ण जी को क्रोध आ गया और उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने करताल से प्रहार से वह दुष्ट राजा का सर पृथ्वी पर गिरा दिया राजा को मारकर बलराम और कृष्णा ने उनके वस्त्र छीन लिए तथा नील और पित्त वस्त्र धारण कर हुए दोनों मलिक के घर गए है मैथिली बलराम और कृष्णा को देखते ही वह माली आश्चर्य चकित होकर सोचने लगा कि यह दोनों बालक कौन है और कहां से आए हैं पीले और नीले वस्त्र धारण किया बालक को देख माली ने समझा कि दो देवगढ़ पृथ्वी पर पधारे हैं जब उन बालकों ने उसे पुष्प मांगे तो माली ने अपने दोनों हाथ पृथ्वी पर देख कर सर भूमि से स्पर्श कर बोला हे नाथ मैं धन्य हूं जो आप मेरे घर पधारे आप बहुत ही कृपालु है क्योंकि मैं आज आपका पूजन कर सकूंगा फिर उसने देख एक पुष्प कितने सुंदर हैं इस तरह उन्हें लुभा--उबाकर उनकी इच्छा अनुसार उन्हें पुष्प दिए उनसे उन दोनों को बारंबार प्रणाम कर पुष्प पाटिल इसके पश्चात श्री कृष्ण जी ने भी प्रसन्न होकर उसे मलिक को वरदान किया है भद्र मेरे आश्रित रहने वाले लक्ष्मी सदैव तेरे पास रहेगा यह सौभाग्य तेरे बाल और धन का कभी भी हाथ नहीं होगा और जब तक सूर्य की सतह रहेगी तब तक तेरी संतान का विच्छेद ना होगा तू भी अपने जीवन में अनेक प्रकार के भोक्ता हुआ अंत में मेरी कृपा से मेरा स्मरण करने के कारण दिव्या लोग को प्राप्त होगा यह भद्र तेरा मनसा देव धर्म परायण रहेगा तथा तेरे वश में जन्म लोगों की दीर्घायु होगी यह महा भाग्य जब तक सूर्य रहेगा तब तक तेरे वश में उत्पन्न हुआ कोई भी व्यक्ति उपसर्ग आकस्मिक रोग आदि दूसरों को प्राप्त न होग यह कहकर प्रभु श्री कृष्ण ने बलराम सहित माली से पूजित होकर वहां से प्रस्थान किया

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Lord's entry into Mathura, Rajak slaughter and blessings on the gardener.

Shri Parashar ji said, Yaduvanshi Akrur ji created the world of Lord Shri Hari Vishnu ji inside the water, worshiped him with imaginary incense, lamps and flowers, removed his mind from other subjects and concentrated on that Brahma for a long time. Remaining absorbed in the past, he again went out of samadhi, then Akrur ji, considering himself to have done something, took him out of the waters of Yamuna and again at night, with the eyes full of Acharya, he saw Balram and Krishna ji sitting on the front post. At the time, Akrur ji said to the figure of Shri Krishna, have you seen any amazing thing in the net of Yamuna ji that you are surprised by? Akrur ji said, O Achyut month, the wonder that you have seen in the net of Yamuna, I am surprised to see the mother idol in front of me. O Krishna, this great wonder of the world is the form of the Mahatma. I have met him with you in the form of the Supreme Acharya. O Lord, what more can I say about this wonder. Come on, we have to reach Mathura soon. Saying this, Akrur ji said to the one who was carrying the vehicle of air. The horse ran at the opposite speed to yours and he himself reached Mathura Puri before tomorrow. On seeing Mathura Puri, Akrur ji stopped for the night and told Balram and Shri Krishna, brave men, both of you to go from here on foot and after reaching Mathura, Vasudev ji. Don't go to the house of Kansa, because because of you, the foolish Kansa disrespects Vasudev ji. Saying this, Aakriti left Mathura Puri on a night ride, following them, Balram and Shri Krishna entered Bhima city and on the way to the city, Rajak, who kept them clothes, was seen. While roaming around, I saw Balram and Shri Krishna asking for beautiful clothes, the king of which was foolish Kansa and being the favorite of the king, he was very arrogant. When Balram ji and Krishna asked for clothes, both of them exchanged bad words. Hearing all this from his mouth, Shri Krishna got angry and he got angry and with a blow from his mortar he made the head of the evil king fall on the earth. After killing the king, Balram and Krishna snatched his clothes and wore blue and yellow clothes. Both of them have gone to Maithili Malik's house. As soon as he saw Balram and Krishna, the gardener was surprised and started wondering who these two children were and where they had come from. Seeing the child wearing yellow and blue clothes, the gardener thought that two Devgarhs had come to earth. When those children asked him for flowers, the gardener looked at the earth with both his hands and touched his head to the ground and said, O Lord, I am blessed that you have come to my house, you are very kind because I will be able to worship you today. Then he saw a How beautiful the flowers are, I wooed them in this way, plucked them and gave them flowers as per their wish, after paying obeisance to both of them repeatedly, Pushp Patil, after this, Shri Krishna ji also got pleased and blessed them to the master. Gentleman, my dependent Lakshmi, always with you. This good fortune will remain, your hair and wealth will never be lost and as long as the surface of the sun remains, there will be no separation from your children. You too have enjoyed many types of food in your life. In the end, due to remembering me by my grace, you will become divine people. Bhadra, your mind will remain devoted to God's religion and people born under your control will have this great fortune. As long as the sun remains, no person born under your control will suffer from sudden diseases etc., saying this, Lord Shri After worshiping the gardener along with Balram, Krishna left from there.

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