श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंध अध्याय 18 का भाग दो


यह कहकर अक्रूर जी यमुना जी के घर में घुसकर स्नान कर आज मन आदि के आमंत्रण राम ब्रह्मा का ध्यान करने लगे उसे समय उन्होंने देखा कि बलराम सहस्त्र भदावली से सुशोभित है उनका सर खुद मालाओं के समान सुब्रमण्यम है तथा नेत्र कमल के समान विशाल है वह वासु की और रंभा आदि मा सांपों से गिरकर उन्हें प्रसन्नचित हो रहे हैं तथा वणमालाओं से विश्व भूत है वह दोनों श्याम वस्त्र धारण किए सुंदरकांड भूषण पहले पहना तथा मनोहर कुंडली मारे जल के भीतर विराजमान है उनकी गोद में उन्होंने श्री कृष्ण जी को देखा जो मेक के समान श्यामवन लाल लाल विशाल नैनो वाले चतुर्भुज मनोहर अंगों वाले तथा संघ चक्र आदि अस्त्र शस्त्र से सुशोभित है जो पीतांबर पहने हुए हैं और विचित्र वन माला से विभूति है तथा उनके कारण इंद्रधनुष और बुध्दिमला मंडली सजल मेक के समान जान पड़ते हैं तथा जिनके वक्ष स्थल में श्रीवास्तव्य चिन्ह और कानून में देने पुनीत करता कुंडली विराजमान है अक्रूर जी ने यह भी देखा की शंका आदि मुनीजा और निष्पापित सिद्ध तथा योगिंजन उसे जल में ही स्थित होकर नासिक ग्रह दृष्टि से श्री कृष्ण जी को ही ध्यान कर रहे हैं इस तरह बलराम और कृष्णा जी पहचान कर अक्रूर जी बड़े ही विस्मित हुए और मन ही मन सोचने लगे कि यह रात इतनी शीघ्रता से यहां कैसे आ गया फिर वह जल से निकाल कर रात के पास आए और देखा कि वहां भी बलराम और श्री कृष्ण दोनों ही मनुष्य शरीर में पूर्वक रात पर बैठे हैं उन्होंने फिर जाल में घुसकर उन्हें फिर गंधर्व सिध्द मुनि और नाग आदि से स्तुति किए जाते देखा तब तो दान पट्टी आकृति की वास्तविक रहस्य जानकर उन अछूत प्रभु की स्तुति करने लगे अक्रूर जी बोले जो सर्वव्यापक तथा कार्य रूप से अनेक और कारण रूप से एक रूप है उन परमेश्वर को प्रणाम है यह अच्छी दुनिया प्रभाव आप स्वरूप एवं हेवी स्वरूप परमेश्वर को प्रणाम है आप अतीत और प्राकृतिक से परे हैं आपको बारंबार प्रणाम है आप भूत स्वरूप इंद्र स्वरूप और प्रधान स्वरूप है तथा आप ही जीवात्मा और परमात्मा है इस तरह आप अकेले ही पांच तरह से स्थित है ही सर्व ही सर्वोत्तम है चार चार प्रभु आप प्रसन्न होंगे एक आप ही ब्रह्मा विष्णु और शिव आदि कल्पनाओं से वर्णन किए हैं जाते हैं हे प्रभु आप स्वरूप प्रयोजन और नाम आदि समस्त अनुचर है आपको मेरा प्रणाम है हे प्रभु जहां नाम और जाति आदि कल्पनाओं का सर्वत्र भाव है आप वही नित्य अधिकारी और अजमान परम ब्रह्म है क्योंकि कल्पना के बिना किसी भी पदार्थ का ज्ञान नहीं होता इसलिए आपका कृष्णा छूट अनंत और विष्णु आदि नामों सिस्टम किया जाता है वास्तव में तो आप किसी भी नाम से निर्देश नहीं किया जा सकता जिन देवता आदि कल्पना में पदार्थ से अन्यथा जगत की उत्पत्ति हुई है वह समस्त पदार्थ आप ही हैं तथा आप ही बेकार ही आत्माओं वस्तु है आप विश्व रूप हैं हे प्रभु इन समस्त पदार्थ में आपसे अन्य और कुछ भी नहीं है आप ही ब्रह्मा महादेव अनंत विधाता नाता इंद्र वायु अग्नि वरुण वीर और यह हैं इस तरह एक आप ही अलग-अलग कार्य वाले अपनी शक्तियों के भेद से इस समस्त जगत की रक्षा कर रहे हैं सा पाठ ओम तनाशता इस रूप से जिसका वचन है वह ओम अक्षर आपका परम स्वरूप है आपके उसे ज्ञान आत्मा रूद्र स्वरूप को प्रणाम है हे प्रभु वासुदेव संकरण प्रद्युम्न और अनुरोध आपको बारंबार प्रणाम है

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Saying this, Akrur ji entered the house of Yamuna ji, took bath and started meditating on Ram Brahma, the invitation of the mind etc. At that time, he saw that Balram was adorned with thousands of Bhadavalis, his head itself was Subramaniam like garlands and his eyes were as big as lotuses. Vasu and Rambha etc. are feeling happy after falling from the snakes and the world is ghosted by the mountain ranges, both of them are wearing black clothes, Sundarkand is the first to be worn and the beautiful Kundli is sitting inside the water, in their lap they saw Shri Krishna ji who is making Like Shyamvan Red, with huge nano four-armed quadrilaterals, beautiful limbs and adorned with weapons like Sangha Chakra etc., who is wearing yellow amber and is adorned with a strange forest garland and due to them, the rainbow and Buddhimala group look like water snakes and whose breasts Akrur ji also saw that Sankha etc. Munija and Sinless Siddhas and Yoginjans are meditating on Shri Krishna ji from Nasik planet view by being situated in the water itself. And after recognizing Krishna ji, Akrur ji was very surprised and started thinking in his mind that how this night came here so quickly. Then he took him out of the water and came near the night and saw that there too Balram and Shri Krishna both were in human bodies. Sitting on the night before, he again entered the net and saw him being praised by Gandharva Siddha Muni and Naga etc. Then after knowing the real secret of the shape of the donation belt, he started praising that untouchable Lord, Akrur ji said, who is omnipresent and works in many ways. And there is one form due to the cause. Salutations to that God. This good world is the effect. You are the form and heavy form. Salutations to the God. You are beyond the past and natural. Salutations to you again and again. You are the ghost form, Indra form and the main form. And you are the living soul and God is like this, you alone are situated in five ways, you are the best of all, four four Lords, you will be happy, you are the one Brahma, Vishnu and Shiva etc. are described in imagination, O Lord, you are your form, purpose, name etc., all are your followers. My salutations to you, O Lord, where imaginations like name, caste etc. are everywhere, you are the eternal authority and supreme Brahma, because without imagination there is no knowledge of any substance, hence your Krishna, Krishna, Anant and Vishnu etc. names are systematized in reality. So you cannot be instructed by any name. In the imagination of the gods etc., the world has been created other than matter, all the substances are you only and you are the useless souls and things, you are the form of the world, O Lord, in all these substances other than you. There is nothing else but you only Brahma, Mahadev, infinite creator, Nata, Indra, Vayu, Agni, Varun, Veer, and in this way, you are the one who is protecting this entire world with the difference of your powers having different functions, the text is Om Tanashata in this form. Whose word is that the letter Om is your supreme form, your knowledge of that soul is my salutation to Rudra form, O Lord Vasudev Sankaran Pradyumna and the request is to salute you again and again.

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