श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 17

अक्रूर जी का गोकुल यात्रा



श्री पाराशर जी बोले अक्रूर जी भी तुरंत ही श्री कृष्ण जी के दर्शन की लालसा से एक ग्रुप गति रथ द्वारा मथुरा पुरी से निकाल नाम जी के गोकुल को चले आकृति की सोचने लग हां मैं कितना भाग्यशाली हूं क्योंकि आपने उनसे आवृत्ति चक्रवर्ती चक्रधारी प्रभु श्री विष्णु जी के मां दर्शन करूंगा आज मेरा जीवन सफल हो गया आज की रात अवश्य ही सुंदर प्रभात वाली थी जो मैं आज खेले हुए कमल के समान नेत्र वाले प्रभु श्री हरि विष्णु जी के साक्षात दर्शन करूंगा जिससे सारे वेद और वेदंतुओं की उत्पत्ति हुई है मैं आज सारे तेजस्वी के परम आश्रय इस प्रभु का दर्शन करूंगा जिनका 100 यज्ञ से यजन करके इंद्र ने देवराज की पदवी प्राप्त की थी मैं आज उन्हें आदि और अनंत प्रभु का दर्शन करूंगा इसके स्वरूप को ब्रह्म इंद्र रूद्र अश्वनी कुमार वसुगन आदित्य और मारुदगान आदि कोई भी नहीं जानते आज हुए ही प्रभु श्री हरि विष्णु जी मेरे नेत्रों के विषय होंगे जो सर्वत सर्व स्वरूप और शब्दों में आवर्त है तथा जो अजीत अव्यय सर्वव्यापक है आहो आज स्वयं ही हुए मेरे साथ बात करेंगे जिन्हें हमने मत्स्य पूर्व वारिस हरविंदर सिंह आदि रूप धारण कर जगत की रक्षा की है आज वह स्वयं मेरे साथ बातें करेंगे इस समय उन अव्यय आत्मा जगत प्रभु ने अपने मन मे सोचा हुआ कार्य करने के लिए अपने ही इच्छा से मनुष्य देह धारण किया है जो अनंत शेष जी अपने मस्तक पर रखी हुई पृथ्वी को धारण करते हैं जगत के हित के लिए आवर्त हुए ही आज मुझे से अक्रूर कह कर बोले जिनकी इस पिता पुत्र सुहाग भरता माता बंधु रूप की गणित माया को पार करने में यह सारा जग असमर्थ है उन मायापति को बारंबार प्रणाम है जिनमें सच्चे मन से हृदय को लाख देने से पुरुष इस योग में रूप आदित्य को पार कर जाता है उसे विद्या स्वरूप प्रभु श्री हरि जी को प्रणाम है जिन्हे योग लोक यज्ञ पुरुष शाश्वत यादव अथवा भागवत भक्तगण वासुदेव आयुर्वेद दांत वेद विष्णु कहते हैं उन्हें बारंबार प्रणाम है जिनके स्मरण मात्र से पुरुष सर्वदा कल्याण का पात्र हो जाता है मां सदैव उन आज मैं हरि की शरण में प्राप्त होता हूं श्री पाराशर जी बोले है मैथिली भक्ति चित अक्रूर जी इस तरह प्रभु हरि विष्णु जी का चिंतन करते-करते दिन ढलने से पूर्व ही गोकुल में पहुंच गए गोकुल पहुंचने पर उन्होंने खिले हुए नील कमल की सीख क्रांति वाले श्री कृष्ण जी को गांव के दोहन स्थान में बछड़ों के मध्य विराजमान देखा जिनके नेत्र खिले हुए कमल के समान थे वाक्य स्थल विशाल और ऊंचा था तथा नासिक उन्नत थी उन्नत और रक्त नाक युक्त चरणों से पृथ्वी पर विराजमान थे जो पीतांबर धारण किए थे वन्य पुष्पों से सुशोभित थे तथा जिनके श्वेत कमल के आभूषण से युक्त श्याम शरीर चंद्र नीलांचल के समान स्वाभिमान था श्री कृष्ण जी के पीछे उन्होंने हंस खुदा और चंद्रमा के समान गौरवण नीलांबर धारी यदुनंदन श्री बलराम जी को देखा विशाल भजन उन्नत स्कंद और विकसित मुखर बिंदु श्री बलराम जी मेक माला से घिरे हुए दूसरे कैलाश पर्वत के समान लग रहे थे है मनी उन दोनों बालकों बलराम और कृष्णा को देखकर महापति अक्रूर जी बहुत ही प्रसन्न हुए और हुए अपने मन ही मन में कहने लगे इन दोनों रूपों में जो यह प्रभु वासुदेव का अंश स्थित है वही परमधाम है और वही परम पद है इनके दर्शन करके आज मेरा जन्म सफल हो गया लेकिन क्या अब भगवत कृपा से इनका अंग सॉन्ग प्रकार मेरा शरीर भी मृत हो सकेगा जिनकी मात्रा उंगली के स्पर्श से सारे पापों से मुक्त हो पुरुष निषेध सिद्ध केवल मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं क्या वह प्रभु श्री हरि विष्णु मेरी पीठ पर अपना कर कमल रखेंगे जिन्होंने अग्नि विद्युत और सूर्य की किरणमाला के समान करके अपने उसे चक्र का प्रहार करके दैत्य की सेवा को नष्ट करते समय असुर सुंदरियों की आंखें के अंजान में दो डालते थे जिनको एक जल बिंदु प्रदान करने से राजा बलि ने पृथ्वी तल में आती मनवाड़ भोग और एक मन्वंत्रण तक देवतया लाभ पूर्वक शत्रुहीन इंद्र पद प्राप्त किया था वही प्रभु श्री हरि विष्णु जी मुझे निर्देश को भी कंस केशव वर्ग से दो सेट जाकर क्या मेरी आज्ञा कर देगी मेरे ऐसे साधुजन बृहस्कृत पुरुष के जन्म को अधिकार है अथवा जगत में कौन सी ऐसी वस्तु है जो उन ज्ञान स्वरूप दोष हैं और संपूर्ण भूतों को हृदय स्थित प्रभु को विदित ना हो अतः मैं उन ईश्वरों के ईश्वर आदि मध्य और अनंत सहित पुरुषोत्तम प्रभु श्री हरि विष्णु जी के अंश अवतार प्रभु श्री कृष्ण जी के पास भक्ति चित हो जाता हूं मुझे आशा है कि वह कभी मेरी अवज्ञा न करेंगे 

TRANSLATE IN ENGLISH 

Akrur ji's Gokul Yatra

Shri Parashar ji said, Akrur ji also immediately, with the desire to have the darshan of Shri Krishna ji, a group left Mathura Puri in Gati Rath and went to Nam ji's Gokul. Aakriti started thinking that yes, I am so lucky because you met him with the frequency of Chakravarti Chakradhari Lord Shri Vishnu. Today I will have darshan of my mother. Today my life has been successful. Tonight was definitely a beautiful morning. Today I will have the personal darshan of Lord Shri Hari Vishnu who has eyes like lotus, from whom all the Vedas and Vedantas have originated. Today I I will have the darshan of this Lord who is the ultimate shelter of all the auspicious ones, by performing 100 Yagyas, Indra had attained the title of Devraj. Today I will have the darshan of the Adi and Anant Prabhu, whose form is Brahma, Indra, Rudra, Ashwani Kumar, Vasugan, Aditya, Marudgan, etc. and no one else. I know that today Lord Shri Hari Vishnu ji will be the subject of my eyes who is present in all forms and words and who is invincible and omnipresent. Come, today he himself will talk with me whom we have given to the world by taking the form of Matsya's former heir Harvinder Singh etc. Today he himself will talk with me. At this time, that incorporeal soul, the Lord of the world, has taken human form with his own will to do the work thought in his mind, which Anant Shesh ji used to hold the earth placed on his head. He has come here for the benefit of the world and today he has spoken to me by calling me 'Akruar', whose whole world is unable to cross the mathematical illusion of the form of father, son, mother and brother, I pay my respects again and again to that Mayapati in whom the heart is blessed with a true heart. By giving, a man transcends the form of Aditya in this Yoga. I salute him in the form of Vidya, Lord Shri Hari Ji, whom Yoga Lok Yagya Purush Shashwat Yadav or Bhagwat devotees call Vasudev, Ayurveda, Teeth, Vedas and Vishnu. I salute him again and again, by whose mere remembrance men become forever. Mother always becomes worthy of welfare. Today I take refuge in Lord Hari. Shri Parashar ji has said that Maithili Bhakti Chit Akrur ji, while thinking about Lord Hari Vishnu ji, reached Gokul even before the end of the day. But he saw Shri Krishna ji of the revolution in the form of a blooming blue lotus, sitting among the calves in the harness place of the village, whose eyes were like a blooming lotus, the sentence place was vast and high and Nashik was advanced and the earth was covered with feet with blood nose. But there was one sitting who was wearing a yellow turban, was adorned with wild flowers and whose black body adorned with white lotus had the self-respect like the moon's blue sky. Behind Shri Krishna ji, he saw the swan god and Yadunandan Shri Balram ji, wearing a blue blue flag as proud as the moon. Vishal Bhajan with advanced Skand and developed vocal point Shri Balram ji looked like the second Kailash mountain surrounded by make garland. Seeing those two children Balram and Krishna, Mahapati Akrur ji became very happy and started saying in his mind. This part of Lord Vasudev present in both these forms is the supreme abode and is the supreme position. By having darshan of him, today my birth has become successful, but will now by the grace of God, my body will also be able to die like his body, whose quantity can be reached at the touch of a finger? Will that Lord Shri Hari Vishnu, who has transformed me like fire, lightning and the sun's rays and destroyed the demon's service by striking it with his Chakra, will I be freed from all sins and attain salvation only by attaining salvation? At the time, the demons used to blind the eyes of the beautiful women and by providing them a water point, King Bali had attained the status of enemy-free Indra with the benefit of deity till the time of Manavad Bhog and one Manvantran coming on the earth, the same Lord Shri Hari Vishnu ji also instructed me. Will Kansa, after going two sets from Keshav class, obey me? Do such sages of mine have the right to be born as a Brihaskrit man? Or is there anything in the world which is flawed in the form of knowledge and which is not known to the Lord situated in the heart of all the beings, hence I am against them. I have full devotion towards Lord Shri Krishna, the incarnation of Lord Shri Hari Vishnu, the Supreme Lord Shri Hari Vishnu Ji, the God of Gods, the beginning, the middle and the infinite. I hope that he will never disobey me.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ