केशी का वध
श्री पाराशर जी बोले है मैथिली कंस के दूध द्वारा भेजा हुआ महाबली कैसी भी श्री कृष्ण का वध करने की इच्छा से घोड़े का रूप धारण कर वृंदावन में आया वहां अपने खून से पृथ्वी तल को खुदा गार्डन के बालों से बादलों को छीन-भिन्न करता तथा विवेक से चंद्रमा और सूर्य के मार्ग को भी पर करता गोपियों की तरफ दौड़ा उसे आश्रम घोड़े के रूप देते के हिनने के शब्द से भयभीत होकर सारे गोप और गोपियों श्री कृष्ण के पास आए उनके त्राहि त्राहि शब्द को सुनकर प्रभु श्री कृष्ण जी बोले हे गोविंद आप लोग इस कैसी के धारी अश्व से जरा भी भयभीत न हो आप तो गोप जाति के हैं फिर इस तरह भयभीत होकर आप अपने विरोचित पुरुषार्थ का लोक क्यों करते हैं गोपियों को धैर्य बांधकर प्रभु श्री कृष्ण जी केसरी से बोले अरे दुष्ट इधर आ जिस तरह पिंक धारी वीरभद्र ने पूछ के दांत उखड़े थ ठीक उसी तरह मैं श्री कृष्णा तेरे मुख में जितने भी दांत हैं वह सारे गिरा दूंगा इतना कहते ही प्रभु श्री कृष्ण जी कैसी की तरफ बढ़े तो वह आज ₹100 देते भी श्री कृष्ण की तरफ लव का प्रभु श्री कृष्ण जी ने अपने भाई उसे स्वर्ग आश्रम रूप नृत्य के मुख में डाल उसके समस्त दांत उखाड़ दिए अश्व रूपी दैत्य के देश में प्रविष्ट हुए प्रभु श्री कृष्ण जी की पूजा बढ़ने लगी अंत में होठों के फट जाने से वह फन सहित रुधिर वामन जाग सहित खून की उल्टी करने लगे और उसकी आंखें स्नायु बंधन के ढीले हो जाने से फूट गए वह भयंकर पीड़ा के करण मल मूत्र छोड़ता हुआ पृथ्वी पर जोर-जोर से अपने पर भटकने लगा तथा कुछ ही देर में वह निश्चित हो गया इस तरह श्री कृष्ण जी की पूजा से जिसके मुख का विशाल रंध्र फैल गय हाय व्हाट दैत्य मारकर ब्रजपत से घिरे हुए वृक्ष की तरह दो टुकड़ों होकर धरती पर गिर पड़ा दैत्य कैसी के शरीर के हुए दोनों टुकड़े दो ऑन पर आदि पीठ आदि पूछ तथा एक-एक कान आंख और नासिक रंध्र के सहित सुशोभित हुए किसी के मारे जाने से बिसमुथ हैरान हुए को और गोपियों ने प्रसन्न होकर प्रभु श्री कृष्ण जी की स्तुति की कैसी को मरा हुआ देखकर में पाताल में छिपे हुए देवर्षि नारद यह प्रसन्न होकर कहने लगे यह अछूत के जगन्नाथ आप धन्य है वह अपने देव गानों को कष्ट पहुंचाने वाले इस के का लीला से ही वैट कर डाला मैं मानव आस जो घोड़े के इससे पहले कहीं न होने वाले युद्ध को देखने के लिए ही स्वर्ग से यहां पृथ्वी पर आया था हे प्रभु आपने आपने इस अवतार में जो जो कर्म किए हैं उससे मेरा मन अत्यंत संतुष्ट हो रहा है हे प्रभु जी समय वह आशु अपनी शास्ताओं को हिलाता और चीन चीन आता हुआ ऊपर आकाश की ओर देखा था तो सारे देवगन और इन देवराज इंद्र भी भयभीत हो जाते थे के जनार्दन आपने इस दुष्ट आत्मा कैसी का वध किया है इसलिए आप लोक में केशव नाम से प्रसिद्ध होगे हे प्रभु आपका कल्याण हो अब मैं चलता हूं पर सो के कंस के साथ आप का युद्ध होने के समय में फिर से आऊंगा अनुगामियों सहित अग्रसेन के पुत्र कंस के मारे जाने पर पृथ्वी का भार उतार देगी है जनार्दन उसे समय मैं अनेक राजाओं के साथ अपना आयुष्मान पुरुष के किए हुए अनेक तरह के युद्ध देखूंगा हे प्रभु अब मैं जानना चाहता हूं अपने देव गानों का विशाल कार्य किया है आप सभी कुछ जाने वाले हैं और मैं अधिक क्या कहूं फिर देवर्षि नारद जी के चले जाने के पश्चात गप गानों से सम्मानित गोपियों के नेत्रों के एकमात्र दृश्य प्रभु श्री कृष्ण जी ने ग्वाल वालों के साथ गोकुल में प्रवेश किया
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killing of keshi
Shri Parashar ji has said that Mahabali, sent by the milk of Maithili Kansa, came to Vrindavan in the form of a horse with the desire to kill Shri Krishna, there he inscribed the earth with his blood, snatched the clouds from the hair of the garden and With his discretion, he overcame the path of the moon and the sun and ran towards the Gopis. After giving him the form of a horse, all the Gopas and Gopis came to Shri Krishna, frightened by the sound of neighing. Hearing his sound of pain, Lord Shri Krishna said, O Govind. You people should not be at all afraid of this horse with such stripes. You belong to the Gop caste, then why do you show fear in this way that you are doing the work of your disinterested efforts. After giving patience to the Gopis, Lord Shri Krishna said to Kesari, O wicked one, come here, just like this. Pink clad Veerbhadra asked and his teeth were uprooted, in the same way, I Shri Krishna, I will knock out all the teeth in your mouth. Having said this, Lord Shri Krishna ji moved towards Kaisi, even today he would have given ₹ 100 towards Shri Krishna with love. Lord Shri Krishna Ji, his brother, put him in the mouth of Swarga Ashram in the form of Nritya, pulled out all his teeth, entered the country of the horse-like demon, the worship of Lord Shri Krishna Ji started increasing, and finally, due to the bursting of his lips, he woke up as a bloody dwarf with his hood. He started vomiting blood and his eyes burst due to the loosening of the ligaments of his nerves. Due to severe pain, he started wandering on the earth, emitting feces and urine, and within a short time, he became determined. In this way, Shri Krishna Whose mouth's huge pores got widened due to the worship of Ji, what a monster, after killing him, he fell on the earth in two pieces like a tree surrounded by Brajpat. What kind of monster's body broke into two pieces, one on the back, one on the back, one by one, one ear and one eye. And Bismuth was surprised by the death of someone who was adorned with Nashik Randhra and the Gopis were happy and praised Lord Shri Krishna. Seeing Kaisi dead, Devarshi Narad, who was hidden in the underworld, became happy and said, You are Jagannath of the untouchables. Blessed is he, he has been weaned from the leela of this one who is causing trouble to his Gods. I, the human being, who had come from heaven to earth here only to see the war of horses which had never happened before, O Lord, you have taken this incarnation. O Lord, my mind is extremely satisfied with whatever deeds I have done. At that time, when Ashu shook his hands and came to China and looked towards the sky, all the gods and even Indra, the king of gods, used to get scared because of Janardan. Because you have killed this evil soul, you will be famous in the world by the name Keshav. O Lord, may you be well. Now I am leaving, but at the time of your war with Kansa, I will come again along with my followers to kill Agrasen's son Kansa. When Janardan will take off the burden of the earth, at that time, I will see many types of wars fought by my Ayushman Purusha with many kings. Oh Lord, now I want to know that you have done a huge work of singing songs to your gods, you all are going to leave and I What more can I say, then after the departure of Devarshi Narad ji, Lord Shri Krishna ji entered Gokul with the cowherds, with the sole view of the eyes of the Gopis honored with the songs.
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