श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 13

गोपो द्वारा भगवान के प्रभाव का वर्णन तथा भगवान का गोपियों के संग रहस्य लीला



श्री पाराशर जी बोले देवराज इंद्र के जाने के पश्चात श्री कृष्ण जी को बिना प्रयास के ही गोवर्धन पर्वत धारण करते हुए देखा गोविंद उनसे प्रेम पूर्वक बोले हे प्रभु आपने गिरिराज को धारण कर हमारे और गांव की भयंकर पारले से रक्षा की है हे देव कहां आपकी अनुपम बाल लीला कहां निवृत्ति गोप जाति और कहां यह दिव्या कम कृपया आप हमें बताएं यह सब क्या है आपने यमुना जी के जाल में कालिया नाग का दमन किया धेनु का और का वध करके फिर यह गोवर्धन पर्वत धारण किया आपके इन अद्भुत कर्मों से हमारे मन में शंकर उत्पन्न हो रही है हम प्रभु श्री हरि के चरणों की सौगंध खाकर आपसे सत्य कहते हैं कि हम आपके ऐसे बालवीर या को देखकर आपको मनुष्य नहीं मान सकते हे केशव स्त्री और बालक सहित समस्त ब्रज वासियों की आप पर अत्यंत प्रतीत है आपका यह कर्म देव गानों के लिए भी दुष्कर्म है हे श्री कृष्ण आपकी यह बाल्यावस्था विचित्र बलबीर और हम जैसे नीचे पुरुषों में जन्म लेना यह सारी बातें विचार करके पर हमें शंका में डाल देती है आप देव हो दानव हो यश हो अथवा गंधर्व हो इन बातों का विचार करने से हमें क्या प्रयोजन है हमारे तो आप बंधु ही हैं अतः आपको प्रणाम है गप गानों की बात सुनकर प्रभु श्री कृष्ण जी कुछ देर तक शांत बैठे रहे और फिर कुछ प्राण जाए को पूर्वक बोले एक ग्रुप हे गोप गानों आप लोगों को यदि मेरे संबंध में किसी तरह की लज्जा ना हो तो मैं आप लोगों से परेशानी हूं इस बात को सोने की क्या आवश्यकता है यदि आप लोगों को मुझे प्रेम है और यदि मैं आपकी प्रशंसा का पात्र हूं तो आप लोग मुझ में बंडवत बुद्धि ही करें और मैं ना तो देव हूं ना ही गंधर्व हूं ना यश हूं और ना ही मैं दाना हूं मैं तो आपके बंधुत्व रूप से ही उत्पन्न हुआ हूं आप लोगों को इस विषय में नहीं सोचना चाहिए प्रभु श्री कृष्ण के प्रेम को उपयुक्त होकर कहीं हुई बातों को सुनकर हुए सारे ग्रुप गानों चुपचाप वन को चले गए फिर श्री कृष्ण जी ने निर्मल आकाश शरण चंद्र की चंद्रिका और दिशाओं को सुरक्षित करने वाले विकसित कुमुदिनी तथा वन खंडली को मुखर मधुकारों से मनोहर देखकर गोपियों के साथ रमण करने की इच्छा कि उसे समय श्री मुरली मनोहर बिना बलराम जी के ही स्त्रियों को प्रेम लगाने वाले अत्यंत सुंदर मधुर इस्पात एवं मृदुल पद ऊंचे और धीमे स्वर से गाने लगे उनकी उसे सम तीर्थ ध्वनि को सुनते ही समस्त गोपियों आपने अपने घरों से तुरंत ही निकाल कर उसे स्थान पर पहुंच गए जहां श्री कृष्ण जी थे वहां पहुंचकर कोई गोपी तो मन ही मन उनका स्मरण करने लगी और कोई उनके साथ हे कृष्ण इस तरह कहते हुए लाजवा संकुचित हो गए और कोई प्रेम पूर्वक उनके समीप जा खड़ी हुई तथा कोई गोप कुमारी जगत के कारण परम ब्रम्ह श्री कृष्ण जी का चिंतन करते-करते मुर्जित अवस्था में प्राण पान के रुक जाने से मुक्त हो गई क्योंकि प्रभु के ध्यान से उसकी समस्त पूर्ण राशि चिन्ह हो गई और प्रभु की प्राप्ति के महान दुख से उनके समस्त पापलीन हो गए चारों ओर गोपियों से घिरे हुए रस आरंभ शुरू रस के लिए उत्कृष्ट श्री गोविंद से उसे सर चंद्र सुशोभित रात्रि को राज करके सम्मानित किया

TRANSLATE IN ENGLISH 

Gopo's description of God's influence and God's secret play with Gopis

Shri Parashar ji said, after the departure of Devraj Indra, he saw Shri Krishna ji holding the Govardhan mountain without any effort. Govind said to him lovingly, O Lord, you have protected us and the village from the terrible parlay by holding Giriraj, O God, where are you? Anupam Baal Leela, where is the Nivritti Gop caste and where is this Divya Kam, please tell us what is all this, you suppressed Kalia Naag in the net of Yamuna ji, after killing Dhenu and Dhenu, then you assumed this Govardhan mountain, with these wonderful deeds of yours, we are in our mind. Shankar is being born in me, we swear at the feet of Lord Shri Hari and tell you the truth that after seeing such a childlike person of yours, we cannot consider you a human being. O Keshav, all the people of Braj including women and children are extremely impressed by your actions. O Shri Krishna, this childhood of yours is a misdeed even for the songs of God, this strange childhood of yours and being born among lower men like us, thinking about all these things puts us in doubt whether you are a god, a demon, a fame or a Gandharva, think about these things. What is the need for us, you are our brothers, hence I salute you. Lord Shri Krishna sat quietly for some time after listening to Gop Ganon and then to save some life he said, I am a group of people, hey Gop Ganon, if you are concerned about me. If there is no shame then I have a problem with you people. What is the need to sleep on this matter? If you people love me and if I am worthy of your praise then you people should only worship me with your intelligence and I am not a god. I am neither a Gandharva nor a fame nor a mage. I am born out of your brotherhood. You people should not think about this matter. All the group songs were heard after listening to the things that were said befitting the love of Lord Shri Krishna. Silently he went to the forest, then Shri Krishna ji, looking at the clear sky, the moon's moonlight and the well-developed lilies protecting the directions, and the forest khandali, pleasing with the vocal honeyeaters, wished to have fun with the Gopis. That time, Shri Murli Manohar without Balram ji. Those who love women started singing very beautiful, melodious and soft verses in a loud and slow voice. On hearing its sacred sound, all the Gopis immediately came out of their homes and reached the place where Shri Krishna ji was. Some of the Gopis started remembering him in their mind and some of them became shy while saying 'O Krishna' and some of them stood close to him lovingly and some of the Gopas and Kumaris kept thinking about Supreme Brahma Shri Krishna Ji because of the world. In the wretched state, she was freed from the stagnation of life and drink because by the meditation of the Lord, all her full signs were marked and due to the great sorrow of attaining the Lord, all her sins were washed away. Surrounded by Gopis all around, she was excellent for the rasas. Shri Govind honored him by making him the king of Sir Chandra Sushobhit Ratri.

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