श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंध अध्याय 13 का भाग 2



उस समय प्रभु श्री कृष्ण जी के नियंत्रण कहीं और चले जाने पर श्री कृष्णा चेष्टा किया अधीन हुई गोपियों यूथ समूह बनाकर वृंदावन के अंदर घूमने लगे श्री कृष्ण जी में निर्मित चित हुए हुए गोपियों आपस में इस तरह बातचीत करने लगे कोई गोपी कहती मैं श्री कृष्णा हूं देखो मेरे चाल कितनी सुंदर हैं दूसरी गोपी कहती अरे देखो श्री कृष्णा तो मैं हूं मेरा गाना तो सुनो इस तरह सारी गोपिया श्री कृष्ण जी की अनेक प्रकार की चेषताओं में रात होकर साथ-साथ अति सुमित वृंदावन के अंदर घूमने लगे फिर वह समस्त गोपिया श्री कृष्ण दर्शन से निराश होकर लौट आए और यमुना जी के तट पर बैठकर उनके चित्रों को गाने लगे तभी गोपियों ने लीला बिहारी श्री कृष्ण को आते देखकर हर्षित होकर केवल कृष्ण कृष्ण इतना ही कहते रह और कुछ ना बोल सकी कोई प्रैंक क्रॉप वास अपनी लता सी कोड कर प्रभु श्री हरि को देखते हुए अपने नेत्र रूप ब्राह्मणों द्वारा उनके मुख कमल का मरकंद पान करने लगे कोई गोपिया गोविंद को देखकर अपनी आंखें बंद कर कर उन्हें के रूप का ध्यान करती रहे तब श्री कृष्णा किसी से प्रेम पूर्वक बातें करके और किसी का हाथ पकड़ कर उन्हें मानने लग फिर उधर चरित्र प्रभु श्री हरि ने उन प्रशांत चित गोपियों के साथ राष्ट्रमंडल बनाकर आदर पूर्वक रमन किया किंतु उसे समय कोई भी गोपी श्री कृष्ण चंद्र की सानिध्य को नहीं त्याग न चाहती थी इसलिए एक ही स्थान पर स्थित रहने के कारण रसोचित मंडल नहीं बन सकता तब उन गोपियों में से एक-एक हाथ पकड़ कर प्रभु श्री हरि ने रास मंडल की रचना की उसे समय उनके कर स्पर्श हाथों की स्पर्श से प्रत्येक गोपियों की आंखें आनंद से मंद जाती थी इसके पश्चात रस कीड़ा आरंभ हुई उनमें गोपियों के चंचल कर्ण की झंकार होने लगी और फिर क्रमशः शरण धवन संबंधित गीत होने लगे उसे समय श्री कृष्णा चंद्रमा चंद्रिका और कुमुद वन संबंधित गाना करने लगे किंतु गोपियों ने तो बारंबार श्री कृष्ण क कहीं गान किया फिर एक गोपियों ने नृत्य करते-करते थक कर चंचल कर्ण की झंकार से युक्त अपनी लता रूपी भुजाएं श्री कृष्ण जी के गले में डाल दी किसी निपुण गोपियों ने श्री कृष्ण जी के ज्ञान की प्रशंसा करने के बहाने अपने भुज फैलाकर श्री कृष्ण जी का काली लग कर चूम लिया प्रभु श्री कृष्ण जी की भुजाएं गोपियों के काम वालों का चुंबन प्रकार उन कमल में पुलकित रूप धारण की उत्पत्ति के लिए इस श्वेत रूप जल के मेघ बन गई श्री कृष्ण जी जितने ऊंचे स्वर से रसोचित दान करते थे उस दुगुनी शब्द से गोपियों धन्य कृष्णा धन्य कृष्ण की ही ध्वनि लग रही थी श्री कृष्ण जी के आगे जाने पर गोपियों उनके पीछे जाते और प्रति लोग मन गति से श्री कृष्ण जी का साथ देती श्री कृष्ण जी भी गोपियों के साथ इस प्रकार राष्ट्र कीड़ा कर रही थी कि उनके बिना गोपियों को एक क्षण भी करोड़ों वर्षों के सम्मान बीतता था वह समस्त गोपिया अपने पति माता-पिता और ब्रह्म आदि के रोकने पर भी सर्वव्यापी प्रभु श्री कृष्ण जी गोपियों में उनके पतियों में तथा संपूर्ण प्राणियों में आत्म स्वरूप से वायु के समान व्यथित थे जिस तरह आकाश अग्नि पृथ्वी जल वायु और आत्मा संपूर्ण प्राणियों में व्याप्त है इस तरह हुए भी समस्त पदार्थ में व्यापक है

TRANSLATE IN ENGLISH 

At that time, when the control of Lord Shri Krishna went somewhere else, Shri Krishna tried to subjugate the Gopis and started roaming inside Vrindavan by forming a youth group. The Gopis, being engrossed in Shri Krishna, started talking among themselves in this way, some Gopi would say I am Shri Krishna. I am here, look how beautiful my movements are. The other Gopi says, Oh look, Shri Krishna, I am here, listen to my song. In this way, all the Gopias started roaming together inside the very beautiful Vrindavan in the night in various forms of Lord Krishna. Then all the Gopias Disappointed with the darshan of Shri Krishna, he returned and sat on the bank of river Yamuna and started singing about his pictures. Then the Gopis became happy after seeing Leela Bihari Shri Krishna coming. Only Krishna Krishna kept saying only this and could not say anything. Some prank crop dwelled in its creeper. Seeing Lord Shri Hari with his eyes, the Brahmins started drinking the nectar from his lotus mouth, some Gopias, seeing Govind, closed their eyes and kept meditating on his form, then Shri Krishna, after lovingly talking to someone, started talking to someone else. Holding the hand of Shri Krishna Chandra and started obeying him, then on the other hand, the character Lord Shri Hari formed a commonwealth with those peaceful minded Gopis and had fun respectfully, but at that time none of the Gopis wanted to leave the company of Shri Krishna Chandra and hence remained situated at one place. Due to this, Rasochita Mandal could not be formed, then Lord Shri Hari, holding each hand of one of those Gopis, created Rasa Mandal by touching it with his hands. With the touch of his hands, the eyes of each of the Gopis dimmed with joy. After this, Rasa Keeda started. The playful ears of the Gopis started tinkling and then gradually songs related to Sharan Dhawan started being played, at that time they started singing songs related to Shri Krishna, Moon, Chandrika and Kumud Van, but the Gopis started singing about Shri Krishna again and again, then one of the Gopis started dancing - Tired of doing this, she put her creeper-like arms around the neck of Shri Krishna ji with the sound of the playful Karna. Some skilled Gopi, in the pretext of praising the knowledge of Shri Krishna ji, spread her arms and kissed Shri Krishna ji, Lord Shri Krishna. This white form of water became a cloud of water for the origin of the kiss of the servants of the Gopis. In that lotus, the Gopis were blessed with the same loud voice that Lord Krishna used to give the sacred donation, with words that were twice the size of Blessed Krishna, Blessed Krishna. There was a sound that when Shri Krishna ji went ahead, the Gopis followed him and everyone was supporting Shri Krishna ji with all their heart. Shri Krishna ji was also ruining the nation with the Gopis in such a way that without them even for a moment the Gopis would have lost crores of rupees. All the Gopis used to spend years in respect, despite being stopped by their husbands, parents and Brahma etc., the omnipresent Lord Shri Krishna ji was distressed like air in the form of self among the Gopis, their husbands and all the living beings, just as the sky, fire, earth, water, air and The soul is pervaded in all living beings and hence it is pervaded in all matter.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ