शक् कृष्ण संवाद कृष्ण स्तुति
श्री पाराशर जी बोले श्री कृष्ण की यह लीला देखकर इंद्र की भी श्री कृष्ण जी के दर्शन करने की इच्छा हुई देवराज इंद्र गजराज एरावत पर चढ़कर गोवर्धन पर्वत पर आ गए और वहां पर समस्त जगत के पालनहार गोपेश धारी श्री कृष्ण को ग्वाल वालों के साथ गाय चराते देखा देव राजेंद्र ने देखा कि पक्षी श्रेष्ठ गरुड़ अदृश्य भाव से श्री कृष्ण के ऊपर अपनी पंखों से छाया कर रहे थे देवराज इंद्र तुरंत ही रावत से उतरकर श्री कृष्ण के पास गए और बड़े प्रेम पूर्वक भाव से बोले हे श्री कृष्णा माय जी लिए यहां आपके पास आया हूं वह सुनिए आपको इसे अन्यथा ना समझ ही परमेश्वर अपने पृथ्वी का भार उतारने के लिए की पृथ्वी पर अवतार लिया है यज्ञ भांग से विरोध मानकर ही मैं गोकुल को नष्ट करने के लिए महावेजों को आज्ञा दी थी मेरी आज्ञा से भी उन्होंने महा भयंकर वर्षा की थी लेकिन आपने पर्वत उखाड़ कर गोकुल वासियों की रक्षा की थी आपकी इस अद्भुत लीलाओं से मैं बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हूं है कृष्णा आपने जो एक साथ एक हाथ पर गोवर्धन पर्वत धारण किया है इसे मैं देवताओं का प्रयोजन आपके द्वारा सिद्ध हुआ ही समझता हूं गांव वंश की रक्षा द्वारा आपसे रक्षित कामधेनु गायों से प्रेरित होकर ही मैं आपका सम्मान करने के लिए यह गोकुल में आपके समक्ष आया हूं है श्री कृष्णा अब मैं गांव के वहां के अनुसार ही आपका उपेंद्र पद पर अभिषेक करूंगा तथा आप गांव के इंद्र हैं इसलिए आपका एक नाम गोविंद भी हुआ फिर देवराज इंद्र ने अपने वाहन गजराज अरवत का घंटा लेकर उसे पवित्र जल से भरकर उसे पवित्र जल से श्री कृष्ण का अभिषेक किया श्री कृष्ण जी का अभिषेक होते समय गांव में उसी क्षण अपने स्थान से टपकती हुए दूध से पृथ्वी को भिगो दिया इस तरह गांव के कथा अनुसार श्री कृष्ण को उपेंद्र पद पर अभी विस्थापित कर देवराज इंद्र ने बड़े प्रेम भाव से कहा है श्री कृष्णा यह तो मैं गांव का वचन पूरा किया अब पृथ्वी का भार उतारने की इच्छा से मैं आपसे और जो कुछ निवेदन कर रहा हूं आप वह भी सुनिए है पृथ्वी दर अर्जुन नाम के मेरे अंश ने पृथ्वी पर अवतार लिया है आप सदैव उसकी रक्षा करना वह वीर पुरुष पृथ्वी का भार उतारने में आपका साथ देगा प्रभु आप उसके अपने शरीर के सम्मान ही रक्षा करना देवराज इंद्र की बात सुनकर प्रभु श्री कृष्ण जी बोले यह बात मैं जानता हूं कि भारत वंश में प्रजा का पुत्र अर्जुन ने तुम्हारे अंश से अवतार लिया है जब तक मैं पृथ्वी पर रहूंगा सदैव उसकी रक्षा करूंगा यह शत्रु शोध देवेंद्र माय जब तक महिपाल पर रहूंगा तब तक अर्जुन से युद्ध में कोई भी नहीं जीत सकेगा विशाल भुजाओं वाला कंस नमक देते अरस्तोत्तासुर केसरी कुंवर और नरकासुर आदि अन्यथा देवताओं का नाश होने पर या महाभारत का युद्ध होगा इस समय पृथ्वी का बाहर उतरा हुआ समझना अपने अंश अर्जुन के लिए आप निश्चित रहे मेरे रहते हुए अर्जुन का कोई भी अहित नहीं कर सकेगा अर्जुन के लिए ही मैं महाभारत के अंत में युधिष्ठिर आदि सारे पांडवों को आज छात्र शरीर से कुंती को शॉप दूंगा श्री कृष्ण जी की बात सुनकर देव राजेंद्र उनका आलिंगन कर अपने वाहन गजराज अरवत पर चढ़कर स्वर्ग को चले गए
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shak krishna dialogue krishna stuti
Shri Parashar ji said, seeing this leela of Shri Krishna, Indra also desired to have darshan of Shri Krishna. Devraj Indra Gajraj climbed Airavat and came to Govardhan mountain and there cowed Shri Krishna, the protector of the entire world, with cowherds. While grazing, Dev Rajendra saw that the great bird Garuda was shadowing Shri Krishna with his wings in an invisible manner. Devraj Indra immediately got down from the Ravat and went to Shri Krishna and said with great love that Shri Krishna is here for my life. I have come to you, listen to it, do not understand it otherwise, that God has incarnated on the earth to take off the burden of the earth. It was only after accepting opposition to Yagya Bhang that I had ordered the Mahavegas to destroy Gokul. Even on my orders, they did Maha Vejas. There was severe rain but you uprooted the mountain and saved the people of Gokul. I am very happy with your wonderful activities. Krishna, you have held the Govardhan mountain in one hand and the purpose of the Gods has been fulfilled by you. I understand that I have come before you in Gokul to honor you by being inspired by the Kamdhenu cows protected by you by protecting the village clan. Shri Krishna, now I will anoint you as Upendra as per the tradition of the village and you will be the Indra of the village. That's why you also got one name, Govind. Then Devraj Indra took the bell of his vehicle Gajraj Arvat, filled it with holy water and anointed Shri Krishna with holy water. At the same moment during the anointing of Shri Krishna, milk was dripping from its place in the village. In this way, according to the story of the village, after replacing Shri Krishna on the post of Upendra, Devraj Indra said with great love, Shri Krishna, I have fulfilled the promise of the village, now with the desire to take off the burden of the earth, I want to tell you more. Please listen to whatever I am requesting you, Prithvi Dar, my part named Arjun has incarnated on the earth, you always protect him, that brave man will support you in taking off the burden of the earth, Lord, you protect him only by respecting his body. After listening to Devraj Indra, Lord Shri Krishna said, I know that Arjun, the son of the people in the Bharat dynasty, has incarnated from your part. As long as I live on the earth, I will always protect him from the enemy Devendra, as long as I live on Mahipal. Till then, no one will be able to win the battle with Arjun, Kansa with huge arms, Aristottasur, Kesari, Kunwar and Narakasur etc. give salt, otherwise the gods will be destroyed or there will be a war of Mahabharata. At this time, understand that the earth has descended outside, you should be sure for your part Arjun. As long as I am alive, no one will be able to harm Arjun. It is for Arjun's sake that I will give a shop to all the Pandavas like Yudhishthir and others from the student body today at the end of Mahabharata. Hearing the words of Shri Krishna, Dev Rajendra embraced him and mounted his vehicle Gajraj Arvat. gone to heaven
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