इंद्र का कोप और श्री कृष्ण का गोवर्धन धारण
श्री पाराशर जी बोले है मैथिली अपने यज्ञ के रुक जाने से इंद्र ने क्रोध में आकर सर्वस्त्र नामक मेघना के दल को बुलाकर उनसे ध्यान पूर्वक मेरी बात सुनो और बिना कुछ सोच बेचारे उसे तुरंत पूरा करो देखो बुद्धि हैं नंदगोब्बा अन्य गोपी ने श्री कृष्ण की बात मानकर मेरा यज्ञ भंग कर दिया है आता जो उसकी परम जीविका और उसके गुप्त तत्व का कारण है उन लोगों को तुम मेरी आज्ञा अनुसार तेज वर्षा और वायु द्वारा पीड़ित कर दो मैं भी अपने रावत हाथी पर चढ़कर वायु और जल छोड़ने के समय तुम्हारा मदद करूंगा श्री पाराशर जी बोले है बिशन ने इंद्र किया आज्ञा अनुसार गांव को नष्ट करने के लिए अति प्रचंड वायु और घनघोर वर्षा आरंभ कर दी एक ही क्षण में मेघना द्वारा की गई गणगौर वर्ष से पृथ्वी दिशाएं और आकाश एक रूप हो जाए इस तरह मेघना के अनीश बरसाने से संसार के अंधकार पूर्ण हो जाने पर समस्त और संपूर्ण लोग जल मग्न हो गया प्रचूंदो वायु और घनघोर वर्षा होने से गांव की कटी जांघों और गेहूं आदि बिल्कुल शून्य हो गए और कहते हुए मुर्जित हो गए कहीं गए तो अपने वचनों को अपने नीचे छुपाए खड़ी रही और कहीं तेज जल के वेग से वेसल लिया हो गए प्रचंड वायु से काटते हुए बछड़े मंदसौर में भी श्री कृष्ण से रक्षा करो रक्षा करो ऐसा कहने लगे उसे समय गांव गोपी और गोपी गानों सहित समस्त गोकुल को व्याकुल देख श्री कृष्ण जी ने मन ही मन सोचा कि यज्ञ भंग के कारण क्रोध में यह सब इंद्र ही कर रहा है अतः मुझे समस्त ब्रज की रक्षा करनी चाहिए मैं अब बड़ी-बड़ी सनिलाओं वाले इस पर्वत को उखाड़ कर इसके एक बड़े छात्र की तरह बज के ऊपर धारण करूंगा यह सोचकर श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को उखाड़ कर अपनी लीला चमत्कार से उसे अपने उंगली पर उठा लिया और श्री कृष्ण ने समस्त गोपियों से कहा सब लोग सीख रही इस पर्वत के नीचे आ जाओ पर्वत के गिरने का जरा सा भी भाई मत करो मैं तुम सब लोगों का प्राचीन वायु वर्ष से बचने का प्रबंध कर दिया है श्री कृष्ण जी की बात सुनते ही प्राचीन वायु व भयंकर वर्षा से पीड़ित समस्त गोप गोपियों अपने बर्तन आदि को झगड़ों में रखकर गांव को साथ लेकर पर्वत के नीचे पहुंच गए हैं मैथिली रूपों के नाश करता इंद्र की प्रेरणा से नंद जी के गोकुल में साथ रहता तक मूसलाधार महाभारत कर बरसात होती रही लेकिन जब श्री कृष्ण ने पर्वत धारण कर गोकुल की रक्षा की तो देवराज इंद्र ने अपनी प्रतिज्ञा व्याप्त हो जाने से मेघना को रोक दिया आकाश के में ग्रीन हो जाने से इंद्र की प्रतिज्ञा भंग हो जाने पर समस्त गोकुल वाशी गोवर्धन पर्वत के नीचे से निकाल कर सुखी सुखी अपने अपने स्थान पर आ गए और श्री कृष्ण जी ने उन ब्रज वासियों क को देखते-देखते गिरिराज गोवर्धन को अपने स्थान पर स्थापित कर दिया
TRANSLATE IN ENGLISH
Indra's wrath and Shri Krishna's Govardhan Dharaan
Shri Parashar ji has said in Maithili that due to the stoppage of his Yagya, Indra got angry and called the group of Meghna named Sarvastra, listen to me carefully and without thinking anything, complete it immediately. See, Nandagobba is intelligent. Other Gopis talked about Shri Krishna. By believing that my Yagya has been broken, the one who is the source of its supreme sustenance and its secret element, you make those people suffer with heavy rain and wind as per my order, I will also help you by climbing on my riding elephant and releasing the wind and water. Shri Parashar ji has said that Bishan, as per the orders of Indra, started extremely strong winds and heavy rains to destroy the village. In one moment, Meghna did the Gangaur year and the directions of the earth and the sky became one. In this way, Meghna's blessings became one. When the darkness of the world became complete due to the rain, all the people got submerged in water. Due to the strong wind and heavy rain, the harvested thighs and wheat etc. of the village became completely void and they became pale while saying that when they went somewhere, they hid their words under themselves. It remained standing and somewhere else the vessel was taken away by the speed of the strong water. The calves were bitten by the strong wind. Even in Mandsaur, they started saying to Shri Krishna, protect me, protect me. Seeing the village Gopis and the entire Gokul distraught along with the Gopi songs, Shri Krishna ji felt in his heart. I thought in my mind that Indra is doing all this out of anger due to the disruption of Yagya, hence I should protect the whole of Braj. Thinking this, I will now uproot this mountain with huge Sanilas and hold it on top of the ring like a great student of it. Shri Krishna ji uprooted the Govardhan mountain and lifted it on his finger with the miracle of his leela and Shri Krishna said to all the Gopis that everyone is learning, come under this mountain and do not even the slightest fear of the mountain falling, I am all of you. People have made arrangements to save themselves from the ancient wind year. On hearing the words of Shri Krishna Ji, all the Gopas and Gopis suffering from the ancient wind and terrible rain, kept their utensils etc. in fights and reached the bottom of the mountain along with the village. Maithili forms were destroyed. With the inspiration of Karta Indra, Nand ji stayed with Gokul till the time it rained heavily due to Mahabharat, but when Shri Krishna protected Gokul by wearing a mountain, then Devraj Indra stopped Meghna due to his promise to become green in the sky. When Indra's promise was broken due to his departure, all the Gokul residents were taken out from under the Govardhan mountain and returned to their respective places happily and Shri Krishna ji installed Giriraj Govardhan in his place while watching those Braj residents.
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