श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 10 का भाग दो


इस वैन में पर्वत गांड अपनी इच्छा अनुसार रूप धारण करने वाले हैं वह अपनी इच्छा अनुसार रूप धारण करने वाले अपने अपने सिरों पर बिहार करते हैं जब कभी वनवासी गण इस गिरी देव पर्वत को किसी प्रकार की उपाध्याय पहुंचते हैं तो भी हुए सिंह आदि रूप धारण कर उसका वध कर देते हैं इसलिए आज से इस इंद्र यज्ञ की स्थान पर गिरी यज्ञ एवं गांव का प्रचारण होना चाहिए इंद्र से हमें क्या प्रयोजन है हमारे देव तो गए और पर्वत ही है ब्राह्मण लोग मंत्र यज्ञ तथा कृषक गांड सिरी यज्ञ हाल का पूजन करते हैं अतः पर्वत और वनों में वास करने वाले हम लोग को गिरी यज्ञ और गांव यज्ञ करने चाहिए अतः आप लोग विधि पूर्वक में एक पशुओं की बलि देकर विधि वक्त सामग्री से गोवर्धन पर्वत की पूजा करें आज सारे ब्रजमंडल का दूध एकत्रित करके उसे ब्राह्मणों तथा न्याय याचको को योजन करो इस विषय में कुछ भी सोचने विचारन की बात मत करो गोवर्धन की पूजा हम और ब्राह्मण भोज समाप्त होते पर शरद ऋतु के पुष्पों से सजे हुए मस्तक वाले गए गिरिराज की प्राधीक्षण करें हे गोविंद यदि आप लोग प्रेम पूर्वक मेरे कहे अनुसार कार्य करें तो इस गांव को गिरिराज और बहू मुझे बहुत ही ज्यादा प्रसन्नता होगी श्री कृष्ण जी की बात सुनकर नंद आदि ब्रज वासियों गोपन ने प्रसन्नता से खिले हुए मुख से साधु साधु कहा और बोले है वात्सल्य हम सब आपके कहे अनुसार ही कार्य करेंगे आज गिरी यज्ञ किया जाएगा फिर उन समस्त बृजवासी ने गिरी यज्ञ का अनुष्ठान किया तथा दही खीर और मांस आदि से पर्वत को बाली दिया सैकड़ो हजारों ब्राह्मण को भोजन कराया जाता था पुष्पराजित गांव और साजन जलधार की तरह गज वाले शानू ने गोवर्धन की परिक्रमा की है दीजिए उसे समय श्री कृष्ण ने पर्वत के शिखर पर अन्य रूप से प्रगट होकर या दिखाते हुए की माई मुक्ति महान गिरिराज हूं के चढ़ाए हुए अनेक व्यंजनों को ग्रहण किया श्री कृष्ण ने अपने नीचे रूप से गोपियों के साथ पर्वत राज के शिखर पर चढ़कर अपने ही दूसरे स्वरूप का पूजन किया फिर उनके अंतर ध्यान होने पर गुप्त गन अपने अभीष्ट हुआ प्रकार गिरी यज्ञ समाप्त करके फिर आपने अपने गोष्ठो में चले आए 

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In this van, the mountain donkeys take the form as per their wish, they take the form as per their wish and do Bihar on their heads, whenever the forest dwellers reach this Giri Dev Parvat, some kind of Upadhyay also takes the form of lion etc. They kill him, hence from today onwards, in place of this Indra Yagya, Giri Yagya and the village should be propagated. What use do we have for Indra? Our gods are gone and the mountains are the same. Brahmins worship Mantra Yagya and farmers worship Gand Siri Yagya Hall. Therefore, we who live in the mountains and forests should perform Giri Yagya and village Yagya. Therefore, you people should worship Govardhan Parvat with proper time and material by sacrificing an animal in a proper manner. Today, collect the milk of the entire Brajmandal and give it to the Brahmins and Justice. Plan for the petitioners, do not think about anything in this matter, worship Govardhan, we and the brahmins, after the feast is over, go to Giriraj with his head decorated with autumn flowers, take care of Giriraj, O Govind, if you all lovingly do as per my instructions. If you do this then Giriraj and the daughter-in-law of this village will be very happy. After listening to Shri Krishna ji, Nand and other Braj residents Gopan called him Sadhu Sadhu with a happy face and said, 'Vatsalya, we all will do as per your request, today Giri Yagya' Then all those Brijvasis performed the ritual of Giri Yagya and gave food to the mountain with curd, kheer and meat etc. Hundreds of thousands of Brahmins were fed, Pushparajit village and Sajan, like Jaladhar, Ganj's Shanu has circumambulated Govardhan, give him time. Appearing in another form on the peak of the mountain, Shri Krishna accepted many dishes offered by My Mukti, the great Giriraj. Shri Krishna in his lower form along with the Gopis climbed the peak of the mountain kingdom and appeared in his other form. After performing the puja, after meditating within them, the secret gun fell as per its desired form. After completing the yagya, you then went to your meeting.

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