श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंध अध्याय 10

शरद दर्पण तथा गोवर्धन पूजा



श्री पाराशर जी बोले इस तरह बलराम और कृष्ण के वज्र में बिहार करते-करते वर्षा कल बीत गया और प्रफुल्लित कमल से युक्त शरद सर्दी ऋतु आई ब्रजमंडल में निर्मल आकाश और नक्षत्र में शरद कल के आगमन पर श्री कृष्ण जी ने सारे ब्रज वासियों को इंद्र का उत्सव मनाने तैयारी में मगन देखा तो प्रभु श्री कृष्ण जी ने उनको उत्सव की उमंग पूर्ण देख अपने बड़ बूढ़ों से पूछा आप लोग इसके लिए खुशी से फूलित नहीं समा रहे हैं वह यह इंद्र यज्ञ क्या है श्री कृष्ण के पूछने पर गोप बोले मेघ बादल और जल का स्वामी इंद्र है उनकी प्रेरणा से ही में गांड जल रूप रस की वर्षा करते हैं हम और अन्य समस्त प्राणी उसे वर्ष से उत्पन्न हुए आम का ही प्रयोग करते हैं उसे वर्ष से बढ़ते हुए आज से ही तृप्त होकर एक गए फर्स्ट पोस्ट होकर हमें दूध देती है जिस भूमि पर बरसाने वाले मेक दिखाई देते हैं उसे पर कभी भी उन का तीन का भाव नहीं होता है और ना वहां पर कभी लोग भूखे रहते हैं वहां पर सदैव खुशहाली रहती है इसलिए वर्षा ऋतु में सारे राजा लोग हम और अन्य मनुष्य गण देवराज इंद्र की यज्ञ द्वारा पूजा किया करते हैं देवराज इंद्र की पूजा के विषय में नंद जी के ऐसे वचन सुनकर श्री दामोदर देवराज को कुपित करने के लिए इस प्रकार बोले हे टाटना तो हम कृषक किसान हैं और ना ही हम व्यापारी हमारे देवता तो हमारी गए हैं क्योंकि हम लोग तो वंचार हैं कम कमंडल दंड नीति और वार्ता ए चार विद्याएं हैं इनमें वार्ता का विवरण सुनो वार्ता नाम की विद्या कृष्णा वाणिज्य और पशुपालन इन तीन की आश्रय होता है वार्ता के इन बीडी में से कृषि किसान की वाणी वाणिज्य व्यापारी की और गोपालन हम लोग की उत्तम वृद्धि है जो व्यक्ति जिस विद्या से युक्त है वही उसका इष्ट देव है वहीं पूजा अच्छा के योग्य है और वहीं परम उपकारिणी है जो मनुष्य एक व्यक्ति से फल लाभ करके आज की पूजा करते हैं उनका ब्लॉक अर्थात परलोक में कभी भी तुम शुभ नहीं होता खेतों के अंत में सीमा है तथा सीमा के अंत में वन है और वनों के अंत में सारे पर्वत हैं वह पर्वत ही हमारे परम गति है हम लोग ना तो की वाहनों तथा भारती के अंदर रहने वाले हैं और नहीं निश्चित ग्रह अवस्था खेत वाले किसान ही है बल्कि वन पर्वत आदि में स्वच्छ चांद घूमने वाले हम लोग मुनियों की भक्ति समस्त जनसमुदाय में सुखी है अतः गृहस्थ किसने की भांति हमें इंद्र की पूजा करने का कोई प्रयोजन नहीं है कहा जाता है

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Sharad Darpan and Govardhan Puja

Shri Parashar ji said in this way, while Balram and Krishna were doing Bihar in the thunderbolt, yesterday the rain passed and autumn and winter season with blooming lotus came, clear sky in Brajmandal and autumn in the constellation. On the arrival of tomorrow, Shri Krishna ji told all the people of Braj to worship Indra. Seeing them engrossed in preparations to celebrate the festival, Lord Shri Krishna saw them full of enthusiasm for the festival and asked his elders, "You people are not filled with joy for this, what is this Indra Yagya?" On asking Shri Krishna, Gop said, "Clouds and clouds." And the lord of water is Indra. It is due to his inspiration that I shower the essence of water in the form of water. We and all other creatures use only the mangoes produced from year to year. It grows from year to year and gets satisfied from today onwards. First Post The land on which rainmakers are seen gives us milk, but there is never a shortage of food there, nor do people ever go hungry there, there is always prosperity, that is why in the rainy season, all the kings, people, us and others Human beings worship Devraj Indra through Yagya. Hearing such words of Nand ji regarding the worship of Devraj Indra, to anger Shri Damodar Devraj, he said in this way, Tatna, we are farmers and neither are we traders, our gods are We have gone because we are a people of low Kamandal, punishment, policy and dialogue. There are four Vidyas in these, listen to the details of the dialogue, the Vidya named Varta, Krishna, commerce and animal husbandry are the shelter of these three. Out of these BDs of Varta, the voice of the farmer, commerce, businessman. Cow rearing is the best growth for us. The person who is equipped with knowledge is his favorite deity, the worship is worthy of good and he is the ultimate benefactor, the person who worships today after getting fruits from a person, his block i.e. in the next world. It is never auspicious for you. At the end of the fields there is a border and at the end of the border there are forests and at the end of the forests there are all the mountains, those mountains are our ultimate speed, we are neither going to live inside vehicles nor Bharati, nor are we certain. The planetary position is not only the farmers with fields but also we who roam around in the forests, mountains etc., the devotion of the sages is happy among the entire population, therefore, unlike the householders, we are said to have no purpose in worshiping Indra.

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