श्री विष्णु पुराण कथा पांचवा स्कंद अध्याय 1 का भाग 2



श्री ब्रह्मा जी बोले हे देव गण  पृथ्वी ने जो कुछ भी कहा है वह बिल्कुल सत्य है वास्तव में मैं शिवजी और आप समस्त लोग नारायण स्वरूप ही हैं उनकी जीवनियों परस्पर न्यूनतम और अधिकतम ही बाध्य और बाधक रूप से रहा करती है इसलिए आओ हम सब क्षीरसागर के पवित्र तट पर चलकर वहां प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना कर यह समस्त वृतांत उन्हें बताते हैं वह जगत रूप सर्वोत्तम मां सदैव जगत के कल्याण के लिए आवर्त होकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करते हैं श्री पाराशर जी बोले ऐसा कह कर समस्त देवगढ़ व ब्रह्मा जी क्षीरसागर तट पर जा पहुंचे और प्रभु श्री हरि विष्णु जी की इस तरह स्तुति करने लगे श्री ब्रह्मा जी बोले हैं वेद वाणी के अगोचर प्रभु पर और अपर के दोनों विद्याएं आप ही हैं हे नाथ हुए दोनों आपकी एक मुहूर्त और मुहूर्त रूप है है आरती सुषमा है विराट स्वरूप यह सर्वे है सर्व ज्ञान शब्द ब्रह्म और परम ब्रह्म के दोनों आप ब्रह्म में के ही रूप है आप ही ऋग्वेद युग में सामवेद और अथर्ववेद है तथा आपकी शिक्षकल्प निरीक्षक चांद और ज्योतिष शास्त्र है हे प्रभु हे एगो गज इतिहास पुराण व्याकरण निशा न्याय तथा धर्मशास्त्र के समस्त आप ही हैं है हड़पत जीवात्मा परमात्मा स्थल सुषमा दे एवं उनके कारण अभिव्यक्त इन सब के विचार से युक्त जो अंतरात्मा और परमात्मा के रूप का बोधक वाक्य है वह भी आपसे भिन्न नहीं है आप अभी वक्त इस वक्त एवं नाम वाणी से रहित हाथ पांव तथा रूप से हैं शुद्ध संतान और पर से भी पड़े हैं आप कन्हीं होकर भी सुनते हैं नेत्रहीन होकर भी देखते हैं एक होकर भी अनेक रूप में प्रकट करते हैं हस्त पद से रहित होकर भी बहुत विवेकशाली और ग्रहण करने वाले हैं तथा सबके अवैध होकर भी सबको जाने वाले हैं जिस धार मनुष्य की बुद्धि आपके सिस्टम रूप से पृथक अलग और कुछ भी नहीं दिखती आपके अनु से अनु और दृश्य स्वरूप को देखने वाले उसे मनुष्य की अत्यधिक आज्ञा निवृत हो जाती है आप जगत के केंद्र और त्रिभुवन के रक्षक हैं संपूर्ण भूत आप में ही स्थित है तथा जो कुछ भूत भविष्य और अनु से भी अनु है वह सब आप प्राकृतिक से भरे एक मात्रा मनुष्य परम पुरुष ही है आप ही चार प्रकार की अग्नि होकर जगत को तेज और विभूति प्रदान करते हैं है अनंत मूर्ति समस्त और आपके नेत्र हैं एक घाट आप ही तीनों लोकों में अपने पग रखते हैं है ईशा जिस तरह एक ही आविष्कार अग्नि विकृत होकर अनेक प्रकार से प्रज्वलित होता है उसी प्रकार स्वागत रूप एक आप ही अंतर रूप धारण कर लेते हैं एक मात्र जो सर्वश्रेष्ठ परम पद है वह आप ही हैं ज्ञानी पुरुष ज्ञान दृष्टि से देख जाने योग्य आपको भी देख सकते हैं भूत और भविष्यतम जो कुछ स्वरूप है वह आपसे अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है आप अभियत और अभिव्यक्त रूप हैं केमिस्ट्री और मिस्टी रूप है तथा आप ही सर्वश्रेष्ठ सर्वशक्तिमान एवं समस्त ज्ञान बाल और ऐश्वर्या संयुक्त हैं आप हर्ष और वृद्धि से रहित स्नानधित आदि और जितेंद्र है तथा आपके हृदय ग्राम भाई क्रोध और काम आदि नहीं है आप अग्नि प्राण निराधार और अभिव्यक्त गाती है आप सबके स्वामी अन्य ब्रह्मा आदि के आश्रय तथा सूर्य आदि तेजे के तेज एवं अविनाशी है आप समस्त अवधारणा सूर्य आशा हज के पालक और समस्त महाभीढियों के अधिकार है है पुरुषोत्तम आपको प्रणाम है आप किसी कारण का कारण अथवा कारण कारण से शरीर ग्रहण नहीं करते बल्कि धर्म की स्थापना के लिए ही शरीर ग्रहण करते हैं इस तरह स्तुति सुनकर प्रभु आज अपना विश्व रूप प्रकट करते हुए श्री ब्रह्मा जी से बोले श्री भगवान बोले ही ब्राह्मण समस्त देवताओं सहित तुमको मुझसे जिस वस्तु की इच्छा हो वह बोलो श्री हरि विष्णु जी के उसे दिव्या विश्व रूप को देखकर संपूर्ण देवगणों के भाई से विनीत हो जाने पर श्री ब्रह्मा जी पुणे स्तुति करने लगे

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Shri Brahma ji said, Oh Gods, whatever the earth has said is absolutely true, in fact, I Shivji and all of you are the form of Narayan, their lives are bound and hindered by each other's minimum and maximum, so let us all come to the ocean of milk. After walking to the sacred shore of the river and worshiping Lord Shri Hari Vishnu Ji, he tells them all the stories that the best mother of the world always comes back for the welfare of the world and establishes religion on earth. Shri Parashar ji said, saying this, all the Devgarh and Brahma ji reached the shore of Kshirsagar and started praising Lord Shri Hari Vishnu ji in this way, Shri Brahma ji has said that on the invisible Lord of Vedas and both the other knowledge, you are the only one, O Lord, both of you have one auspicious and auspicious form. Aarti Sushma is a vast form, this survey is the word of all knowledge, both Brahma and Param Brahma, you are the form of Brahma in the Rigveda era, you are the Samaveda and Atharvaveda and your teacher is the inspector of moon and astrology, oh Lord, ego, history, Purana, grammar. Nisha, you are the whole of justice and theology, you are the usurper of the living soul, the divine place, Sushma de, and the thought of all these expressed due to him, the sentence which is indicative of the soul and the form of God, is also not different from you, you are right now, at this moment and in the name, speech. You are a pure child, devoid of hands, legs and form, and have wings, you listen even though you are blind, you see, despite being one, you manifest in many forms, despite being devoid of hands and feet, you are very wise and receptive. You are going to be known to everyone even after being illegal to everyone. The edge by which man's intelligence does not see anything separate from your system form, the one who sees the visible form and the subtle form from your side, the extreme command of man gets retired. You are the center of the world and the Tribhuvan. You are the protector, the entire past resides within you and all that is past, future and beyond, all that is filled with nature, you are the one quantity human being, the supreme man, you are the four types of fire and provide brightness and glory to the world, you are infinite. The idol is the whole and your eyes are the one platform, you are the only one who keeps your feet in the three worlds, Isha. Just as the same invention fire gets distorted and ignites in many ways, in the same way you are the one in the form of welcome, you are the only one who is the best. The ultimate position is that you are the wise man, capable of being seen with the sight of knowledge, you can also be seen, whatever form there is in the past and the future, is nothing other than you, you are the realized and expressed form, the chemistry and the misty form and you are the best. You are the almighty and all the knowledge, hair and wealth combined, you are bathed in joy and growth, Adi and Jitendra, and your heart is devoid of anger and lust etc. You are Agni Prana, baseless and manifest, you are the master of all, the shelter of other Brahmas and Surya etc. You are the bright and imperishable concept of Surya, the hope of Hajj and the protector of all the Mahabhidhis. You are the supreme Purushottam. Salutations to you. You do not take the body for the sake of any reason but take the body only for the establishment of religion. Hearing this praise, the Lord revealed His world form today and said to Shri Brahma Ji, Shri God said, Brahmin along with all the Gods, tell me whatever you desire from me. Seeing this divine world form of Shri Hari Vishnu Ji, I am humble to the brother of all the Gods. After it was done, Shri Brahma ji started praising Pune.

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