श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंध अध्याय 9 भाग 2


इस तरह सतगुरु की इंद्र पद पर आसीन हुआ फिर राजीव ने स्वर्गवासियों होने पर देवर्षि नारद जी की प्रेरणा से राजी के पुत्रों ने अपने पिता के पुत्र भाव को पालन पालने वाले शब्द क्रोध ने व्यवहार अनुकूल अपने पिता का राज मांगा किंतु जब उसने ना दिया तो उन शक्तिशाली राजीव पुत्रों ने इंद्र पर विजय प्राप्त कर स्वयं ही गति पर हसीन हो गए फिर काफी समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन बृहस्पति जी को एकांत में बैठे देखी लौकी के यज्ञ भाग से वंचित हुए सतगुरु ने उनसे कहा क्या आप मुझे मेरी तृप्ति के लिए एक बर के समान पूर्व खंड मुझे दे सकते हैं यह सुनकर बृहस्पति जी बोले यदि ऐसी बात है तो तुमने पहले क्यों नहीं कहा भला मैं तुम्हारी लिए एक क्या नहीं कर सकता कुछ दिनों के पश्चात मैं तुमको अपने पद पर आसान कर दूंगा ऐसा कहा कर बृहस्पति जी राजीव पुत्रों की बुद्धि को मोहित करने के प्रयोजन से अभी चार तथा इंद्र की तेज वृद्धि के लिए हवन करने लगे बुद्धि को मोहित करने वाले उसे विचार कम से अभिभूत हो जाने के कारण राजीव पुत्र ब्राह्मण विरोधी धर्म त्यागी और वेदों के विपक्षी बन गए उनके धर्माचार्य हैं हो जाने के कारण इंद्र ने उनका संघार कर दिया और पुरोहित जी से तेज प्रताप कर वर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया इस प्रकार इंद्र ने अपने पद से गिरकर पुणे फिर से उसे पर हसीन होने की इस कथा को सुनने से मनुष्य अपने पद से प्रतीत नहीं होता और उसमें कभी दूसरा नहीं आती आयु का दूसरा पुत्र रजम्भा संतानहीन बिना संतान था छात्रवृत्ति का पुत्र प्रतीक्षा हुआ प्रतिष्ठा का पुत्र संजय हुआ संजय का जय जय जय का विजय विजय का कृति प्रीत का हर धन अर्धन का सहदेव सहदेव का आदम आदम का जय सिंह जय सिंह का संस्कृति और संस्कृति का पुत्र छात्र धर्म हुआ यह समस्त छात्र वृद्धि के वंशज हुए आप मैं तुम्हें ना हो उसे वंश का वर्णन सुनाता हूं

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In this way, Indra ascended to the post of Satguru, then Rajiv, after his death, with the inspiration of Devarshi Narad ji, Raji's sons nurtured their father's filial feelings, anger, behavior-appropriate words and asked for the secret of their father, but when he did not give it, Those mighty sons of Rajiv, after conquering Indra, themselves became beautiful in speed, then after a lot of time, one day they saw Brihaspati ji sitting alone, who was deprived of the yagya part of the gourd, the Satguru asked him, can you help me for my satisfaction? Hearing this, Brihaspati ji said, "If it is so, then why did you not say it earlier? Well, what can't I do for you? After a few days, I will make you easy on my post, saying this." With the purpose of captivating the intellect of Rajeev's sons, Brihaspati Ji started performing havan for the rapid growth of Char and Indra. Due to being overwhelmed by the thoughts that captivated his intellect, Rajeev's sons renounced the anti-Brahmin religion and became opponents of the Vedas. Due to his becoming the religious leader, Indra destroyed him and by becoming more powerful than the priest, he established his authority over the class. In this way, by listening to this story of Indra falling from his position and Pune becoming beautiful again, people lose their position. The second son of age, Rajhambha, was childless, the son of scholarship, the son of waiting, the son of prestige, Sanjay became Sanjay, Jai Jai Jai, Vijay, Vijay's work, Preet's Har Dhan, Ardhaan's Sahadev, Sahadev's Adam, Adam. Jai Singh Jai Singh's culture and culture's son became student's religion, all these students became the descendants of Vriddhi, you, I may not be you, but I will tell him the description of the lineage.

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