सत्वत की सन्तति का वण॔न और स्यमन्तकमणि की कथा
श्री पाराशर जी बोले शत व्रत के भजन भजमन दीप अंधक देवव्रत महाभोज अरविंद नामक सात पुत्रों ने जन्म लिया भजमन के निमी क्रिकेट और विभिन्न तथा उनके तीन सौतेली संजीत सहस्राजित और आयुक्त जीत नामक छह पुत्र हुए देवव्रत के एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम ब्रह्म था इन दोनों पिता पुत्र के विषय में यह प्रसिद्ध है वह तो प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है और देवव्रत तो देवताओं के समान है वरुण और देवव्रत के उपदेश किए हुए मार्ग का अवलंबन करने से 674 मनुष्यों ने अमर पद प्राप्त किया था महाभोज अत्यंत धर्मात्मा था उसकी संतान में भोजवंशीय तथा मृतक का और निवास मारुति का कवर रजागन हुए वृत्त के सुमित्रा और युद्ध जीत नामक दो पुत्र हुए उसमें से सुमित्रा के अमृत तथा अमृत के नियर ने जन्म लिया निक के प्रश्न और सत्राजित उत्पन्न हुए सत्राजित के मित्र भगवान आदित्य हुए एक दिन समुद्र तट पर बैठे हुए छत्रजीत ने सूर्य देव किया आराधना की एक आग्रह चित होकर आराधना करने से सूर्य थे उसकी शाम मुक्त प्रकट हुए उसे समय उसको स्पष्ट मूर्ति धारण किए हुए देखकर शास्त्री जी ने सूर्य देव से कहा आकाश में अग्नि पिंड के सामान मैंने आपको जिस प्रकार देखा है वैसा ही मैं आपको समझ सामने आने पर देख रह प्रसाद स्वरूप यहां आपकी कुछ विशेषता मुझे नहीं दिखती सूर्य देव ने छात्र जीत की बात सुनकर अपने गले से स्मार्ट रुक नमक उत्तम महामानी उतार कर अलग कर दी तब छत्रजीत ने सूर्य देव को देखा उनक शरीर दमणिक ताम्रवण की अत्यंत उज्जवल और लघु था तथा उसके नेत्र कुछ पिंगलवान के दिखाई दे रहे थे फिर सत्यजीत ने उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया और उसकी स्तुति की तब सूर्य देव बोले तुम मुझसे क्या वरदान चाहते हो मांग को सूर्य देव के मुख से वर्ग की बात सुनकर सत्यजीत ने उसे समान तक मनी को मांगा तब सूर्य देव उसे श्याम स्वयं मां तक मानी देकर अंतर ध्यान हो गए फिर सत्यजीत ने उसे स्वयं अंत तक मनी को अपने गले में डाल सूर्य के समान समस्त दिशाओं को प्रकाशित करते हुए द्वारिका में प्रवेश किया द्वारिका वासियों ने उसे आते हुए देखकर पृथ्वी का भार उतारने के लिए अंश रूप से "अवतार हुए मनुष्य रूप धारी आदि पुरुष प्रभु पुरुषोत्तम से प्रणाम करके कहा है भगवान आपके दर्शन के लिए निश्चय ही सूर्य देव आ रहे हैं इनकी ऐसी कहना पर प्रभु ने उनसे कहा है सूर्य देव नहीं सत्राजित है यह सूर्य देव से प्रातः समांतक माणिक धारण कर यहां आ रहे हैं तुम समस्त जान आप इसे विश्वास होकर देखो प्रभु के ऐसा कहने पर समस्त द्वारिका वास उसे विश्व वक्त होकर देखने लगे
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Description of Satvat's progeny and the story of Syamantakamani
Shri Parashar ji said, Bhajans of Shat Vrat, Bhajaman Deep Andhak, Devvrat Mahabhoj, seven sons named Arvind were born, Bhajman had six sons named Nimi Cricket and Vaishya and his three step-daughters Sanjit, Sahasrajit and Commissioner Jeet, Devvrat had one son named Brahm. It is famous about both the father and the son that he is the best among the living beings and Devavrata is equal to the gods. By following the path preached by Varun and Devavrata, 674 human beings had attained immortality. Mahabhoj was a very religious person and among his children were the Bhoj dynasty. And the cover of the deceased and the residence of Maruti, Rajagan Vritta was born and two sons were born named Sumitra and Yudh Jeet. Out of them, Sumitra's Amrit and Amrit's Near were born. Nick's question and Satrajit was born. Satrajit's friend Lord Aditya was born. One day on the beach. Sitting Chhatrajit worshiped the Sun God with a strong urge to worship. By worshiping, the Sun appeared free in the evening. Seeing him wearing a clear form, Shastri ji said to the Sun God, The way I saw you like a ball of fire in the sky. It is the same way I understand you. I am looking forward to seeing you in the form of Prasad. I don't see any specialty of yours here. Surya Dev, after listening to the student's victory, took off smart salt and Uttam Mahamani from his neck and separated it. Then Chhatrajit saw Surya Dev and his body. Damanik was very bright and small of copper color and his eyes looked like those of Pingalvan. Then Satyajit bowed to him with folded hands and praised him. Then Sun God said, what boon do you want from me? Mang spoke about class from the mouth of Sun God. Hearing this, Satyajit asked for money till the end, then Surya Dev gave it to Shyam Swayam Maa and became inner mind, then Satyajit himself put the money around his neck till the end and entered Dwarka, illuminating all the directions like the sun. Seeing him coming, the people, in order to take off the burden of the earth, have paid obeisance to Lord Purushottam, the first man incarnated in human form, and said, Lord, the Sun God is definitely coming for your darshan. On saying this, the Lord said to them. He is not the Sun God, he is satrajit, he is coming here in the morning wearing a ruby equal to the Sun God, you all know, you see him with faith. When the Lord said this, the entire Dwarka city started looking at him like the world.
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