ससत्यभामा से यह सब का कर श्री कृष्ण जी द्वारिका में आए और श्री बलदेव जी को एकांत में ले जाकर उनसे बोल वन में शिकार करने के लिए गए हुए प्रसेन को शेर ने मार डाला आप साथ दुआ ने सत्यजीत को भी मार डाला इस तरह उन दोनों के मर जाने पर सोमांतक मणि पर हम दोनों का समान अधिकार होगा अतः तुम रात पर चढ़कर शत्रु दुआ को मार डालो श्री कृष्ण जी के यह सब कहने पर श्री बलदेव जी ने बहुत अच्छा कहा कर यह बात स्वीकार कर ली श्री कृष्णा और बलदेव जी को अपने वाद के लिए उगत जानकर शत्रु दुआ ने प्रीत वर्मा से सहायता मांगी तथा घृत और वह ने शत्रुघ्न से कहा मैं बलदेव और कृष्ण का सामना करने योग्य नहीं हूं फिर शत्रु दुआ ने आकृष से सहायता मांगी तो क्रूर बोला जो अपने चरण पद से प्रहार से तीनों लोक को कमियां कर देते हैं और देवताओं के शत्रु गानों की स्त्रियों को विधवा बना सकते हैं अतः अति प्रबल शत्रु सेन से भी जिनके चक्र प्रवाहित रहता है उन चक्रधारी प्रभु श्री वासुदेव जी से युद्ध करने में कोई भी समर्थ नहीं है फिर मेरे तो बात ही क्या है इसलिए तुम किसी अन्य की शरण को ठाकुरों के पास सुनकर सतवर्धन बोला यदि आप अपने आप को मेरी रक्षा में समर्थ समझते हैं तो मैं आपको यह इस मात्रक मनी देता हूं आप इसे लेकर इसकी रक्षा कीजिये शत्रु दुआ की बात सुनकर अक्रूर बोला मैं इस मणि को तुमसे तभी ले सकता हूं जब ही अंत काल उपस्थित होने पर भी तुम किसी यह बात मत बताना शत्रु दुआ ने कहा अब निश्चित रहे ऐसा ही होगा शत्रुत्व की बात सुनकर वह उसका मंत्र कुमारी आकृद ने अपने पास रख ली फिर शत्रु दुआ 100 युआन तक भोगने वाले एक अत्यंत वेगवती घोड़ी पर चढ़कर भाग और सेवा सुग्रीव में पुष्पा और बलहक नामक चारों घोड़े वाले रथ पर चढ़कर बलदेव और श्री कृष्ण ने भी उसका पीछा किया 100 युआन मार्ग पर पर कर जाने पर उसे घोड़ी से मिथिला देश के वन में प्राण त्याग दिया तब शत्रु दुआ उसे छोड़कर पैदल ही भाग लिया तब श्री कृष्ण जी बलदेव से बोले आप अभी रात में बैठे रहिए मैं इस दोस्त का पैदल जाकर ही बात करता हूं क्योंकि घोड़ी के मरने से रात के घोड़े भयभीत हो रहे हैं इसलिए आप इन्हें और आगे ना बढ़ाएंगे बलदेव जी अच्छा कह कर हरत में ही बैठे रहे तब श्री कृष्ण जी ने दो कोष्टक उनका पीछा करके अपना चक्र फेक दूर होने पर शत्रु दुआ का सर उसके धड़ से अलग कर दिया फिर श्री कृष्ण जी ने उसके शरीर और वस्त्र आदि में उसे समान तक मनी को बहुत ढूंढ पर वह मनी नहीं मिलती अतः श्री कृष्ण बलदेव से बोले हमने व्यर्थ की स्वतंत्रता का वध किया क्योंकि इस मां तक मानी तो उसके पास नहीं मिली श्री कृष्ण जी की बात सुनकर बलदेव जी ने समझा कि श्री कृष्णा उसे माली को मुझे नहीं देना चाहते हैं क्रोध में बलदेव जी श्री कृष्ण से बोले तुम्हें अधिक है तुम तो बहुत ही अर्थ लोग भी हो किंतु भाई होने के कारण ही मैं तुमको क्षमा करता हूं तुम खाक्सी से इस मंत्र कुमारी लेकर खुशी से जा सकते हो मुझे अब द्वारिका से तुमसे और समस्त सगे संबंधियों से कोई कार्य नहीं है बस मेरे आगे इन थोड़ी सपनों का आप कोई प्रयोजन नहीं है यह कहकर बलदेव जी चल दिए श्री कृष्ण जी ने बलदेव से कहा मेरे पास मनी नहीं है तुम मुझ पर विश्वास करो और मेरे साथ द्वारिका चलो लेकिन बलदेव जी उनकी बात को काट कर वहां न रुके और विदेह नगर को चले गए
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After doing all this from Sasatyabhama, Shri Krishna ji came to Dwarka and took Shri Baldev ji alone and told him that Prasen, who had gone for hunting in the forest, was killed by the lion along with you and Dua also killed Satyajit, in this way both of them After Shri Krishna's death, both of us will have equal rights on Somantak Mani, hence you climb at night and kill the enemy. On Shri Krishna ji saying all this, Shri Baldev ji said very well and accepted this thing. Shri Krishna and Baldev ji accepted this. Knowing that there was a fight for his cause, Shatru Dua asked for help from Preet Verma and Ghrit and he said to Shatrughan that I am not worthy of facing Baldev and Krishna. Then Shatru Dua asked for help from Aakrish and the cruel one said by hitting him with his feet. They make the three worlds weak and the enemies of the Gods can make the women of the songs widows, hence no one is capable of fighting with Lord Shri Vasudev Ji, the Lord of the Chakras, whose chakra keeps flowing, even with the most powerful enemy, Sen. What is it, that's why you seek someone else's refuge with the Thakurs, Satvardhan said, if you consider yourself capable of protecting me, then I give you this amount of money, you take it and protect it. Hearing the prayer of the enemy, Akrur said, I I can take this gem from you only if you do not tell this to anyone even when the end time is present. Shatru Dua said, now be sure that this will happen. Hearing the words of enmity, Kumari Akrida kept that mantra with herself. Then Shatru Dua 100 He ran and served Sugriva on a very fast mare, who could bear up to 100 yuan, and mounted on a four-horse chariot named Pushpa and Balhak, Baldev and Shri Krishna also chased him and after crossing the 100 yuan route, he was taken away from the mare in the forest of Mithila country. Gave up his life, then the enemy left him and ran away on foot, then Shri Krishna Ji said to Baldev, you just sit in the night, I will go and talk to this friend on foot because the horses of the night are getting scared due to the death of the mare, so you Baldev ji said ok and will not take it further and remained sitting in the green, then Shri Krishna ji chased him for two blocks and threw his chakra. When he got away, he separated the head of enemy Dua from his torso. Then Shri Krishna ji destroyed his body and clothes etc. I searched a lot for money to get the same amount but could not find it, hence Shri Krishna said to Baldev that we have killed the freedom in vain because even if we obeyed this mother, we could not find it with her. After listening to Shri Krishna ji, Baldev ji understood that Shri Krishna had given him the money. Baldev ji angrily said to Shri Krishna that he does not want to give the gardener to me. You are more than that. You are also a very mean person but because I am a brother, I forgive you. You can go happily with this mantra Kumari from Khaksi. Now from Dwarka, I have no business with you and all my relatives. You have no use for these few dreams in front of me. Saying this, Baldev ji left. Shri Krishna ji said to Baldev, I do not have money, you trust me and my Let's go to Dwarka with him but Baldev ji interrupted him and did not stop there and went to Videha Nagar.
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