श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंद अध्याय 13 का भाग 3



इधर गुफा के भीतर आती श्रद्धा पूर्वक दिए हुए विशिष्ट पत्रों सहित उसके अंत और जल से युद्ध करते समय श्री कृष्ण के बल और प्राण की पुष्टि हो गई तथा कठोर प्रहार पढ़ने के कारण जामुन की शक्ति बिना हर निराहार लड़ने के कारण छेद हो गई अंत में जामवन भगवान कृष्ण से पराजित होकर बोला भगवान आपको तो देवता असुर गंधर्व यक्ष राक्षस आदि कोई भी नहीं पराजित कर सकता फिर पृथ्वी पर वास करने वाले को मनुष्य अथवा मनुष्यों के अवयव भूत हम जैसे ट्रायक यौनिगत जिओ की तो बात ही क्या आप अवश्य ही हमारे प्रभु श्री रामचंद्र जी के समान भगवान नारायण के ही हमसे प्रकट हुए हैं जामुन कैसे कहने पर भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी का भार उतारने के लिए अपने अवतार लेने का संपूर्ण वृतांत उस की सुनता था प्रेम पूर्वक अपने हाथ का उसके शरीर पर स्पर्श करके युद्ध की थकावट उसके शरीर से दूर कर दी फिर जमुना ने उसे प्रणाम करके प्रशांत किया तथा गुफा घर पर आए हुए भगवान श्री कृष्ण के लिए आचार्य स्वरूप अपने जामवंती नमक कमियां देती और उन्हें प्रणाम करके स्वयं अंत तक मानिक को भी दे दिया सुमन तक मनी वह जामवंती को लेकर श्री कृष्ण जी द्वारिका आए श्री कृष्ण को देखते ही समस्त यादव का और उसकी स्त्रियां खुशी से पुकार उठी अहो भाग्य हो भाग्य ऐसा कह कर उसका अभिवादन करने लगे जिया जिया घटनाएं जैसे-जैसे हुई थी वह श्री कृष्ण जी ने उन्हें विस्तार पूर्वक सुना दिया और सत्यजीत को स्वयंवर तक मानी देकर मिथ्या झूठ कलम से मुक्ति प्राप्त कर ली और जामवंती को अपने महल में पहुंचा दिया सत्यजीत भैया सो कर कि मैं ही श्री कृष्ण जी को विद्या झूठा कलम लगाया था डरते डरते अपनी कन्या सद्भामा उन्हें पत्नी स्वरूप में प्रदान कर दी सत्यजीत की कन्या सद्भावना को अक्रूर कृत वर्मा और शत्रुघ्न आदि यादों पहले वर्ण किया था अतः श्री कृष्ण के साथ उसका विवाह कर देने से उन्होंने इसे अपना अपमान जान कर सत्राजित से पैर बांध लिया फिर अक्रूर और मृत वर्मा आदि शत्रुघ्न से बोले यह सत्यजीत अत्यंत दुष्ट है हमारे मांगने के पश्चात भी हमें नाह देकर अपनी कन्या सद्भामा श्री कृष्ण को दे दी इस दुष्ट को मारकर उसे स्वमंडक महामानी छीन लो सतवर्धन ने भारी निद्रा में सोते हुए सत्राजित को मार कर वह सुमन तक मनी ले लिया अपने पिता सत्राजित की मृत्यु से दुखित सद्भामा उसी क्षण भारत पर सवार होकर कृष्ण के पास वर्णन वाट नगर में पहुंची और श्री कृष्ण से बोले हे प्रभु मेरे पिता श्री ने मेरा विवाह आपके साथ कर दिया इस बात पर किड कर सतराधन ने सोते हुए मेरे पिता श्री को मार्ग सौरमंडल मनी लेकर भाग गया यह कार्य करके उसने अपने प्रयास किया है इसलिए सब बातों को सोच विचार कर आप जो उचित समझे करें सद्भामा की बात सुनकर मन ही मां श्री कृष्णा प्रसाद होने पर भी क्रोध से अपने नेत्र लाल करके बोल ही सत्य अवश्य ही मेरे हंसी उड़ाई जाएगी उसे दोस्त ने इस को कम को माय सहन नहीं कर सकता क्योंकि बड़े आदमियों से पर न पाने पर उसके आश्रितों को नहीं दबाना चाहिए तुम शौक त्याग कर माल वापस लौट जाओ मैं इसका बदला अवश्य लूंगा

TRANSLATE IN ENGLISH 

Here the strength and life of Shri Krishna got confirmed while coming inside the cave along with the special letters given with devotion and while fighting with the water and due to hard blow, the power of Jamun got pierced due to fighting without any food in the end. Jamvan got defeated by Lord Krishna and said, Lord, no one can defeat you, God, Asura, Gandharva, Yaksha, Rakshasa, etc. Then, the one who resides on the earth is a human being or a part of human beings, a ghost, let alone a triad sexual life like us, you are definitely our Lord. Like Shri Ramchandra ji, Lord Narayan's own berries have appeared to us. On telling how, Lord Shri Krishna used to listen to him lovingly by touching his body with the entire story of his incarnation to take away the burden of the earth and the tiredness of war. Removed it from his body, then Jamuna calmed him down by paying obeisance to him and gave her Jamwanti salt as an acharya for Lord Shri Krishna who had come to the cave house and after paying obeisance to him, she herself gave it to Manik till the end and she gave it to Jamwanti till the end. Shri Krishna ji came to Dwarka with Shri Krishna. As soon as they saw Shri Krishna, all the Yadavs and their women shouted with joy that they started greeting him by saying, Oh good luck, good luck, live long, the incidents happened as they happened. Shri Krishna ji narrated them in detail. And by obeying Satyajit till the time of Swayamvara, she freed herself from the false pen and sent Jamwanti to her palace. Satyajit Bhaiya, thinking that it was I who had falsely applied the Vidya pen to Shri Krishna, fearfully gave him his daughter Sadbhama as his wife. Satyajit's daughter Sadbhavana had been described as Akrur Krit Varma and Shatrughan etc. memories earlier, hence by marrying her to Shri Krishna, he considered it an insult and tied the feet of Satrajit, then Akrur and dead Varma etc. Shatrughan said that Satyajit is extremely He is evil, he refused us even after our requests and gave his daughter Sadbhama to Shri Krishna. Kill this evil man and take away his pride. Satvardhan killed Satrajit while sleeping in heavy sleep and took away the money from his father Satrajit due to his death. Sad Sadbhama at that very moment, riding on Bharat, reached Krishna in Varshan Vat city and said to Shri Krishna, O Lord, my father Shri got me married to you. Kidding on this, Satradhan, while sleeping, took my father Shri with money on the way to the solar system. By running away, he has done his best by doing this work, therefore, after thinking everything over, do whatever you deem appropriate, after listening to Sadbhama, in your mind, even with Maa Shri Krishna Prasad, with your eyes red with anger, speak the truth, I will definitely be laughed at. His friend told him that he cannot tolerate this because his dependents should not be suppressed if he does not get control from big people. You should give up your hobby and return the property, I will definitely take revenge for this.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ