श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंध अध्याय 10

ययाति का चरित्र 



श्री पाराशर जी बोले ना हो उसके अतीत या अतीत का साम्यती व्यतीत और मृत नमक छह पराक्रमी पुत्र हुए जेटीईटी ने राज्य की इच्छा नहीं की इसलिए अतीत ही राजा बना या अतीत का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवानी और वृष प्राप्त की पुत्री सेमेस्टर से हुआ था अतीत को शुक्राचार्य ने श्राप दिया था अतः असमय ही उन्हें वृद्धावस्था में घेर लिया था पिछले शुक्राचार्य जी के प्रश्न होकर कहने पर उन्होंने अपने वृद्धावस्था को ग्रहण करने के लिए बड़े पुत्र यदि से कहा पुत्र तुम्हारे नाना जी के श्राप से मुझे आशा में ही बुढ़ापे में घेर लिया है आप उन्हीं की कृपा से मैं उसे बुढ़ापे को तुम्हें देना चाहता हूं मैं अभी विषय भोग से तृप्त नहीं हूं इसलिए 1000 वर्ष तक मैं तुम्हारी युवावस्था जवानी से उन्हें भोगने की इच्छा रखता हूं अतः तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए लेकिन यह दूध ने पिता की बात नहीं मानी तो पिता ने उन्हें शराब दिया कि तेरे संतान भी राजपथ के योग्य नहीं होंगे फिर राजा जेटीईटी ने दुर्वासा रुद्र और अनु सबसे यह बात कही लेकिन किसी ने उसकी बात को नहीं माना तथा उनमें से प्रत्येक ने और स्वीकार करने पर उन सभी को श्राप दे दिया अंत में सबसे छोटे सेमेस्टर के पुत्र पूर्व से भी यह बात कहीं तो उसने तुरंत अपने पिता की बात मान ली और पूर्व ने अपने पिता की वृद्धावस्था ग्रहण कर उन्हें अपना जीवन जवानी दे दी पूर्व का युवान जवानी लेकर राजा जेटीईटी ने समय अनुसार धरमपूर्वक भोग और प्रजा का भी वीर प्रकार पालन किया फिर विश्वास किया और देवरानी के साथ विधायक भोगों को भोंकते हुए माई इच्छाओं का अंत कर डालूंगा ऐसा सोचकर हुए प्रतिदिन भोगों के लिए तृप्ति रहने लगे और निरंतर भोग तेरा ते रहने से उन कामनाओं को अत्यंत प्रिय माननीय मिलेगी इसके पश्चात उन्होंने इस तरह अपना विचार प्रकट किया भोगों के ड्रेन उनको भोगने से कभी भी शांत नहीं होती बल्कि घृत से अग्नि के सामान वहां तेजस्वी से बढ़ती ह ही जाती समस्त पृथ्वी में जितने ही धन्य पशु और स्त्री है वह समस्त एक मनुष्य के लिए भी संतोषजनक नहीं है अतः ट्रिपन को सर्वदा त्याग देना चाहिए जब कोई प्राणी किसी भी प्राणी के लिए पाप में भावना नहीं रखना उसे समय उसे समदर्शी एक समान देखने वाले के लिए समस्त दिशाएं सुख में हो जाती है दुर्बुद्धि के लिए जो अत्यंत दुष्ट और वृद्धावस्था बुढ़ापे में भी जो शिथिलता नहीं हुआ करती बुद्धिमान ज्ञानी पुरुष उसे त्याग का त्याग कर सुख से परिपूर्ण हो जाता है अवस्था के जिन होने पर कैसे और दांत भी जीव हो जाते हैं लेकिन जीवन तथा धन्य की आशा उसके जिन होने पर भी जीने नहीं होती विषयों में हा तरह आते हुए मुझे एक 1000 वर्ष व्यतीत हो गए तब भी प्रतिदिन उनमें मेरी कामना रहती है अतः अब मैं इसको त्याग कर अपने मन को प्रभु श्री हरि विष्णु जी में ही स्थिर कर वन में जाकर रहूंगा सिर्फ पाराशर जी बोले फिर राजा जेटीईटी ने पूर्व से अपनी वृद्धावस्था बुढ़ापा लेकर उनका युवान जवानी दे उसे राज पाठ शॉप वन को चले गए उन्हें अंताक्षरी पूर्व दिशा में दुर्वासा को पश्चिम में दूसरा को दक्षिण में यादून को और उत्तर में अनु को तथा पूर्व को संपूर्ण भूमंडल का राज देकर स्वयं वन को चले गए

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Yayati's character

Shri Parashar ji said, may be his past or past's Samyati is spent and dead salt, six valiant sons were born, JTET did not desire the kingdom, hence past became the king or past was married to Shukracharya's daughter Devani and Taurus's daughter Semester, past Shukracharya had cursed him, hence he was surrounded by untimely old age. When the previous Shukracharya ji was questioned, he said to his elder son, if he wanted to accept his old age, son, due to the curse of your maternal grandfather, I was surrounded by old age in hope. You have taken it by His grace, I want to give it to you in old age, I am not satisfied with sexual pleasures right now, therefore, I wish to enjoy them from your youth for 1000 years, so you should accept my words, but this milk has given father If they did not listen to him, the father gave them wine that even their children will not be worthy of the royal path. Then King JTET told this to Durvasa, Rudra and Anu but no one listened to him and on each of them accepting it, all of them At last, the youngest Semesh's son told this to Purva also, he immediately agreed to his father's words and Purva took his father's old age and gave him his life and youth. Taking Purva's youth and youth, King JTET took the time. According to him, he followed the religious orders and the subjects in a brave manner, then he believed and by barking out the indulgences along with the sister-in-law, he will put an end to my desires. Thinking this, he started feeling satisfied for the pleasures every day and by continuously enjoying the pleasures, those desires became extremely satisfying. Dear Honorable Milegi, after this he expressed his views in this way, the drain of pleasures never subsides by enjoying them, but like the fire of ghee, it keeps on increasing with brilliance. All the blessed animals and women in the entire earth are all one human being. It is not satisfactory even for a human being, hence Trypan should always be abandoned when no creature has any feeling of sin for any creature. All directions become happiness for the one who sees him as equal. For the foolish who are extremely evil and Old Age: Even in old age, there is no lassibility; an intelligent and wise man gives up the renunciation and becomes filled with happiness; when he is in the state of old age, even his teeth and teeth become alive, but the hope of life and happiness does not remain alive even in his old age. Even after 1000 years have passed since I started getting involved in things like this, I still have a desire for them every day, so now I will give up this and fix my mind only on Lord Shri Hari Vishnu Ji and will go to the forest and live only Parashar ji. Then King JTET said. He took his old age and old age from the East and gave him the youth and youth and gave him the kingdom's lesson and went to the Forest Antakshari in the East, Durvasa in the West, Dosa in the South to Yadun and in the North to Anu and to the East he gave the rule of the entire earth to the forest itself. gone

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