इक्ष्वंकु के कुल का वर्णन तथा सौभिर चरित्र
श्री पाराशर जी बोले जिस समय रेवत काकोरी ब्रह्मलोक से लौटकर अपनी नगरी में नहीं पहुंचे थे उसी समय पूर्ण ज्ञान नाम के राक्षस ने उसकी पूरी कुछ स्थल को नष्ट कर दिया उनके 100 भाई पूर्ण जान राक्षसों के भाई से दसों दिशाओं में भाग गए उन्हें के वश में उत्पन्न हुए क्षत्रिय संपूर्ण दिशाओं में फैल गए गेस्ट नमक छतरियां उत्पन्न हुआ दृष्ट के ना भाग भाग नामक पुत्र हुआ नाबार्ड का अमरीश और अमरीश का पुत्र वीरू हुआ भी रूप से ब्रीफ दश जन्म हुआ और उनके द्वारा रचित तार से जन्म लिए राठी तार के विषय में यह प्रसिद्ध है रति तार के वंशज क्षत्रिय संतान होते हुए भी अंगीरथ कहलाए इसलिए वे छात्रों पर ब्राह्मण बन चीन के के समय मनु की गंधिवेंद्रियां से इसरारुक नमक का पुत्र उत्पन्न हुआ उसके 100 पुत्रों में से व्यक्ति में दंड नामक तीन पुत्र प्रधान हुए तथा उनके शकुनी आदि 50 पुत्र पुत्र पद का तथा शेष 48 दक्षिण पद का शासन करने लगे इजराऊ के अस्त्र का श्रद्धा का आरंभ कर अपने पुत्र को आज्ञा दी की श्रद्धा के लिए मांस लेकर आओ वर्षों किया पिता का आदेश सुनकर धनुष बाण लेकर वन में जाकर मरीजों का वध करने लगा परंतु अत्यधिक थक और भूखा होने के कारण विस्तृत में पूर्ण वध किए हुए जानवरों में से एक शक खरगोश को खा लिय और बाकी बचा हुआ मांस लाकर अपने पिता के सामने रख दिया इस राहु वंश के कुल पुरोहित वशिष्ठ जी ने मांस को देखकर कहा इस आ पवित्र मास की क्या आवश्यकता है क्योंकि तुम्हारे पुत्र ने इनमें से एक खरगोश खाकर इन्हें भ्रष्ट कर दिया है गुरु के ऐसा कहने पर उस दिन से भिक्षुक नमक साथ पड़ा और पिता ने उनका त्याग दिया पिता की मृत्यु के पश्चात उसने इस धरती का धर्म अनुसार शासन किया उसे श्रद्धा ने पूर्वज नामक पुत्र पूर्वज का भी यह एक दूसरा नाम पड़ा पूर्व काल में त्रेता युग में देवता हुआ और में भीषण युद्ध हुआ उसमें मा बलशाली दैत्य से देवता पराजित हो गए फिर देवगणों ने प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना की जगत प्रतिपल प्रभु श्री हरि विष्णु जी देवताओं से प्रसन्न होकर बोले आप लोग के साथ जो कुछ भी हुआ है वह सब मैं जान लिया है उसके विषय में अब तुम मेरी यह बात सुनो राज ऋषि श्रद्धा का पूर्व जान पूर्व जय नाम जो पुत्र है उसे छतरी श्रेष्ठ के शरीर में अंश मात्र से स्वयं अवतरित होकर उन समस्त देश का वध करूंगा अतः तुम लोग जाकर पूर्व जया को देता हूं केवट के लिए तैयार करो प्रभु श्री हरि विष्णु जी की बात सुनकर देवता उन्हें प्रणाम कर पूर्व जय के पास जाकर उससे बोल ही क्षत्रिय श्रेष्ठ आप लोग अपने शत्रुओं का वध करने में आपकी सहायता चाहते हैं अतः आप हमारी अवश्य ही सहायता करें हमें निराश ना करें यह सुनकर पूर्व जैन ने कहा यह त्रिलोकनाथ आप लोगों के इंद्र हैं मैं इसकी कंधे पर चढ़कर अपने शत्रुओं से युद्ध कर सकूंगा पूर्वज्या की बात सुनकर समस्त देवगन व इंद्र ने ठीक है यह कहकर उनकी बात मान ली फिर इजराबुक रूप धारी इंद्र की पीठ पर चढ़कर प्रभु श्री हरि विष्णु जी के देश से परिपूर्ण होकर राजा ने रूम में समस्त व्यक्तियों को मार दिया उसे राजा ने बेल के कंधे पर बैठ कर देते सेवा का वध किया था इसलिए उसका नाम का क था पढ़ा का कुत्ता पड़ा
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Description of Ikshvanku's clan and noble character
Shri Parashar Ji said, at the time when Revat Kakori had not returned to his city from Brahmalok, at the same time a demon named Purna Gyan destroyed his entire place and his 100 brothers Purna Jan ran away in ten directions from the brother of demons under his control. The Kshatriyas were born in 1500, the guests spread in all directions, the salt umbrellas were born, Drisht's son named Na Bhaag Bhaag was born, Amrish of NABARD and Amrish's son Veeru was also born, Brief Das was born and Rathi was born from the strings composed by him, subjects of the strings. It is famous in India that the descendants of Rati Tar, despite being children of Kshatriya, were called Angiratha, hence they became Brahmins on the students. During the reign of China, a son of Israruk Namak was born from Manu's Gandivendriyas. Out of his 100 sons, three sons named Dand were prominent among them and they Shakuni etc. 50 sons started ruling the Putra Pada and the remaining 48 Dakshina Pada, started the Shraddha of Ijrau's weapon and ordered his son to bring meat for Shraddha. After listening to the father's order, he went to the forest with a bow and arrow and took care of the patients. He started killing, but due to being extremely tired and hungry, he ate one of the slaughtered animals, a Saka rabbit, and brought the remaining meat and placed it in front of his father. Vashishtha ji, the clan priest of Rahu dynasty, seeing the meat, He said, what is the need of this holy month because your son has corrupted them by eating one of these rabbits. On this being said by the Guru, from that day onwards the beggar salt remained with him and the father abandoned him. After the death of the father, he left this earth. He ruled according to the religion, he had a son named Ancestor by faith, Ancestor also had another name. In the ancient times, there was a god in Treta Yuga and there was a fierce war in which the gods were defeated by the powerful demon Maa. Then the gods worshiped Lord Shri Hari Vishnu. Every moment of the world, Lord Shri Hari Vishnu Ji became pleased with the Gods and said, I have come to know everything that has happened to you people, now you listen to me about it, the son of Raj Rishi Shraddha is named Purva Jaan Purva Jai. I myself will incarnate in a small part of Chhatri Shrestha's body and will kill that entire country, hence you all go and give it to Purva Jaya. Prepare for the boatman. After listening to Lord Shri Hari Vishnu ji, the gods bow down to him and go to Purva Jaya and say to him. O great Kshatriya, you people want your help in killing your enemies, hence you must help us, do not let us down. Hearing this, the former Jain said, this Triloknath is the Indra of you people, I will be able to climb on his shoulders and fight with my enemies. Hearing Purvjya's words, all the Devgans and Indra accepted her saying that it was okay, then after climbing on the back of Indra in the form of a book, being filled with the devotion of Lord Shri Hari Vishnu ji, the king killed all the people in the room and the king killed him with a vine. He had killed Deta Seva by sitting on his shoulder, hence his name was Padha's dog.
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