श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंद अध्याय1 का भाग दो




राजा रेवत की बात सुनकर ब्रह्मा जी मुस्कुराते हुए बोले तुमको जो वह अच्छे लगे उनमें से तो आप पृथ्वी पर पुत्र पुत्र की संतान भी नहीं है क्योंकि तुम्हें यह गंधर्व का ज्ञान सुनते हुए अनेक चतुर युग बीत चुके हैं इस समय पृथ्वी पर 28 में मनु का चतुर युग प्रयास समाप्त हो चुका है तथा कलियुग प्रारंभ होने जा रहा है आप तुम केवल ही रह गए हो इसलिए इस कन्या को किसी अन्य कुमार को दे दो इतने समय में तुम्हारे पुत्र मित्र कलंत्र मंत्री भाई बंधु सेवा एवं उप आदि भी नष्ट हो सके हैं तब राजा रेवत भयभीत होकर ब्रह्मा जी को पुनः प्रणाम कर बोले हे प्रभु यदि आप ऐसी बात है तो आप मैं इस कन्या को किसको दूं तब सर्व लोक गुरु भगवान कमल यानी अपना सिर झुकाए हाथ जोड़कर बोल श्री ब्रह्मा जी बोले जी अजवाइन सर्वे में विधाता परमेश्वर का आदि मध्य अनंत स्वरूप इस स्वभाव और सर हम नहीं जा पाए तो जन्म मरण से परे हैं तो संतान वन और सर्वदा एक रूप है तथा जो नाम और रूप से रहित है जिसकी दया के द्वारा मैं प्रजापति बना दूं जिसके क्रोध से उत्पन्न हुआ रूद्र सृष्टि का अंत करता है तथा जिससे परमात्मा से मध्य में जगत स्थिरकारी विष्णु रूप पुरुष प्रवास हुआ है जो मेरा रूप बनकर संसार की रचना करता है जगत की स्थिति के समय जो पुरुष स्वरूप है और जो भी अपने रूद्र रूप द्वारा समस्त संसार को भाषण कर जाता है तथा अपने अनंत रूप द्वारा समस्त संसार को धारण करता है इंद्र आदि रूप से जगत का पालन करता है और सूर्य तथा चंद्र रूप होकर समस्त अंधकार का नाश करता है जो शाश्वत प्रशस्विक रूप से जीवन में चेष्टा करता है जल तथा अनुरूप द्वारा लोगों को तृप्त किया करता है तथा जगत की स्थिति में चलना रहकर जो आकाश रूप से सबको अवकाश देता है जो सृष्टि करता होकर भी विश्व रूप से आप ही अपने रचना करता है जगत का पालन करता बंद कर भी स्वयं ही फलित हुए करता है और संघार करता बंद कर भी स्वयं ही संघर्ष हुआ करता है तथा इन तीनों से अलग इन अविनाशी आत्मा है जिससे यह जगत स्थिर है जो आदि पुरुष जगत स्वरूप है और इस जगत के ही आश्रित द्वारा प्रचूत नृत्य संपूर्ण भूतों का उद्गम स्थान या विष्णु ने धरातल में बने अंश द्वारा अवतार लिया हे राजन आदिकाल में तुम्हें जो अमरावती के समान उसे स्थल नमक की नगरी थी वह आप द्वारिका पुरी बन गई है वही हुए बलदेव नमक प्रभु श्री हरि विष्णु जी के वंश विराजित हैं है नरेंद्र तुम इस कन्या को मा मानव श्री बलदेव जी को पत्नी रूप में प्रदान कर दीजिए श्री बलदेव जी जगत में प्रसंसनीय हैं और तुम्हारी यह कन्या भी स्त्रियों में रात में स्वरूप है आता है इनका योग उन्हीं के उपयुक्त है सिर्फ पाराशर जी बोले भगवान ब्रह्मा जी के यह कहते ही प्रजापति रेवत जी पृथ्वी पर लौट आए तो उन्होंने देखा की समस्त मनुष्य छोटे-छोटे से कुरूप जो तेजो में अल्प वीर्य तथा विवेक हिंद हो गए हैं उन्होंने अपनी पूरी भी दूसरे प्रकार की ही अच्छी और उन्होंने अपने कन्या भगवान भला युद्ध को दे दी भगवान बलदेव जी ने पत्नी को बहुत ऊंची देखकर अपने हाल की आग्रह भाग से दबाकर नीचे कर ली तब रेवत भी अन्य स्त्रियों के समान छोटे शरीर ही हो गए फिर बलराम जी ने राजा रेवत की कन्या रेवती से विधि पूर्वक विवाह किया अपनी कन्या रेवती का कन्यादान करने के पश्चात राजा रेवत तपस्या करने के लिए हिमालय पर्वत पर चले गए

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Hearing the words of King Revat, Lord Brahma smiled and said, whatever you like, you are not even the son of a son on earth, because many clever ages have passed since you heard this knowledge of Gandharva. At this time, 28 years of Manu are on earth. Chatur Yuga effort is over and Kali Yuga is about to start, you are the only one left, hence give this girl to some other Kumar. In this time, your sons, friends, Kalantra Minister, brother, brothers, service and deputy etc. may also get destroyed. Then King Revat got scared and bowed to Lord Brahma again and said, O Lord, if this is so, then to whom should I give this girl? Then Lord Kamal, the Guru of all the people, bowed his head and folded his hands and said, Lord Brahma, the creator God in celery survey. If we are unable to go beyond this nature and head, then we are beyond birth and death, then the child is one and always one form, and who is without name and form, by whose mercy I can make him a Prajapati, from whose anger Rudra creation was born. It brings an end to God and due to which the world-stabilizer Vishnu, the male form, has arrived in the middle of God, who creates the world by becoming my form, who is the male form at the time of the state of the world and who speaks to the entire world through his Rudra form. And through his infinite form he holds the entire world, Indra in his original form maintains the world and destroys all darkness in the form of Sun and Moon, who strives for life with eternal praise, satisfies people with water and analogs. He does this and while walking in the state of the world, who gives rest to everyone in the form of the sky, who, despite being a creator, creates the world himself, who, even after ceasing to follow the world, still comes to fruition and even after ceasing to destroy, There is a struggle within itself and apart from these three, there is this indestructible soul by which this world is stable, which is the form of the Adi Purush world and through the dependent of this world itself, the profuse dance is the origin place of all the ghosts or Vishnu incarnated through a part formed in the earth. O king, in the ancient times, the place which was like Amaravati was a city of salt, you have become Dwarka Puri, the same Baldev Salt, the descendants of Lord Shri Hari Vishnu ji are seated, Narendra, you have given this girl as a mother to Shri Baldev ji as a wife. Please grant me Shri Baldev ji, he is praised in the world and this daughter of yours is also a night form among women, her yoga is suitable only for them, only Parashar ji said. As soon as Lord Brahma ji said this, Prajapati Revat ji returned to the earth and saw that That all the human beings, even small and ugly, who have become hindrances due to lack of luster and wisdom, have become as good as any other kind and they have given their daughters to God for the good war. Lord Baldev ji, seeing his wife very tall, is worried about his condition. Pressed down from the urge portion and then Revat also became small in body like other women. Then Balram ji married King Revati's daughter Revati in a formal manner. After marrying his daughter Revati, King Revat went to the Himalayan Mountains to do penance. gone

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