श्री विष्णु पुराण तीसरा स्कंद अध्याय 18 का भाग दो



हे थिस मोहकारी मया म ने और भी आने का अनेक व्यक्तियों को विभिन्न विभिन्न प्रकार विविध पाखंडों से मोहित कर दिया इस तरह कुछ ही समय में माया मोह के द्वारा मोहित होकर अनुसरण में वैदिक धर्म की बातचीत करना भी छोड़ दिए है बी उन असुरों में से कोई वेदों की बुराई करता और कोई देवताओं की निंदा करना कोई ब्राह्मण की निंदा करता हुए कहने लगे हिंसा से ही धर्म होता है यह किसी तरह से युक्त संगत नहीं है अग्नि में हवन सामग्री की आहुति देने से मिल सकता है यह भी बच्चों की सी बात है विभिन्न यज्ञों के द्वारा व्यक्तियों प्रकार यदि इंद्र को भी समय आदि कास्ट का ही भजन करना पड़ता तो इससे तो पत्ते खाने वाले पशु ही अच्छा है यदि यज्ञ में बाली किए गए पशुओं को स्वर्ग की प्राप्ति होती है यजमान अपने पिता को ही क्यों बाली नहीं दे डालते यदि किसी दूसरे मनुष्य के भोजन करने से भी किसी मनुष्य की तृप्ति हो सकती है तो विदेश यात्रा करते समय खाद्य पदार्थ ले जाने की क्या आवश्यकता है पुत्र घर पर ही श्रद्धा क्यों नहीं कर दिया करते यह जानकर कि यह श्रद्धा आदि कर्मकांड लोगों की आगम श्रद्धा ही है इसके प्रति उपेक्षा करनी चाहिए और अपने श्रेष्ठ साधनों के लिए मैंने जो कुछ बताया है उसे रुचि लेने चाहिए या असुरों स्तुति आदि आप वाक्य पूछ आकाश से नहीं गिर सकते हम तुम और अन्य सबको भी मुक्ति में वाक्य को ग्रहण कर लेना चाहिए श्री पाराशर जी बोले इस तरह अनेक व्यक्तियों से माया मोह ने बेटियों को विचलित कर दिया जिससे उनमें से किसी की भी वेट्रीय में रुचि नहीं रही इस तरह दैत्यों के विपरीत मार्ग में प्रज्वलित हो जाने के कारण देवता अच्छी तरह तैयारी करके उनके सामने युद्ध करने के लिए आ गए हैं बीच फिर तो देवताओं और असुरों में पुनः युद्ध शुरू हो गया उसमें देवताओं द्वारा सम मार्ग विरोधी देते मार्ग मारे गए पहले व्यक्तियों के पास जो स्वाधार एम रूपी कवच था उसी से व्यक्तियों की रक्षा हुई थी इस बार उसके कवच नष्ट हो जाने के कारण हुए भी नष्ट हो गए क्योंकि व्यक्तियों ने वितरिया रूपी वस्त्र को त्याग दिया था इस कारण वह नॉन कहलाए इसके पश्चात ब्रह्मचारी गृहस्थ वानप्रस्थ और संन्यासी के चार आश्रय हैं इसके अतिरिक्त पांचवा कोई आसार नहीं है है मैथिली जो मनुष्य गृहस्थ आश्रम को छोड़ने के पश्चात वानप्रस्थ या सन्यासी नहीं होता तो वह पापी भी नॉन कहलाता है हैप्पी पर समर्थक होते हुए भी जो मनुष्य विहित कर्मों नहीं करता वह उसी दिन पापी हो जाता तथा उसे दिन रात में ही उसके समस्त नित्य कर्मों नष्ट हो जाते हैं मैथिली आपातकाल को छोड़कर और किसी समय एक पक्ष तथा नित्य कर्म का त्याग करने वाला मनुष्य प्राचीन से ही शुद्ध हो सकता है जो मनुष्य एक वर्ष तक नित्य क्रिया नहीं करता उसके ऊपर दृष्टि पड़ जाने से साधु जन को सदैव सूर्य देव का दर्शन करना चाहिए है महामति ऐसे मनुष्य का स्पर्श होने पर वस्त्र सहित स्नान करने से शुद्ध हो सकती है और उसे पाप आत्मा की शुद्धि तो किसी भी प्रकार से नहीं हो सकती

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O this deluding Maya, more to come, I have deluded many people with various types of hypocrisies, thus in a short time, being deluded by the illusion of Maya, they have given up even talking about the Vedic religion and following it. Some criticize the Vedas and some criticize the Gods. Some criticize the Brahmins and say that religion is achieved only through violence. This is not compatible with any means. This can also be achieved by offering havan material in the fire. This also sounds like childish talk. Through various yagyas, if even Indra had to worship only the caste of time, then it would be better for the animals that eat leaves. If the animals sacrificed in the yagya attain heaven, then why did the host not sacrifice his own father? If a person can be satisfied by eating another person's food, then what is the need to carry food items while traveling abroad? Why don't you pay homage to your son at home, knowing that this devotion etc. rituals are for the people. Aagam is faith itself, we should ignore it and should take interest in whatever I have told for our best means or we cannot fall from the sky by asking sentences like praising demons etc. We, you and everyone else should also accept the sentence in order to attain salvation. Shri Parashar ji said that in this way the daughters got distracted by the illusion of attachment to many people due to which none of them had any interest in Vetriya. In this way, due to the demons being set on the opposite path, the gods prepared well and fought against them. Then the war started again between the gods and the demons, in which the gods were killed while giving the path opposite to the right path. The first people were protected by the armor in the form of Swadhar M, this time the armor was destroyed. Due to this, they were also destroyed because people had given up the clothes of Vitariya, hence they are called non. After this, there are four shelters for the celibate householder, Vanaprastha and Sanyasi. Apart from this, there is no possibility of the fifth one, Maithili, which after leaving the householder's ashram. If he is not a Vanaprastha or a Sanyasi, then he is also called a non-sinner. But a person who does not perform the prescribed rituals despite being happy, becomes a sinner on the same day and all his daily deeds are destroyed in the day and night. A person who sacrifices time and daily activities can become pure from ancient times. A person who does not do daily activities for a year, when his eyes fall upon him, a saint should always have darshan of Sun God. Mahamati, after touching such a person, But one can be purified by taking bath along with clothes and one's sinful soul cannot be purified in any way.

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