श्री विष्णु पुराण कथा तीसरा स्कंध अध्याय 17 का भाग दो



है पुरुषोत्तम जो कुर्ता और माया से भरा पीयूष रक्षा रूप को प्रणाम करते हैं है जनार्दन योग स्वर्ग में रहने वाले धर्म को एवं सुख आदि प्राप्त करता है आपके धर्म नमक उसे रूप को प्रणाम है जो जल अग्नि आदि धामनिया स्थान में जाकर भी सदैव प्रसन्न और लिप्त रहा करता है आपके इस सिद्ध नमक स्वरूप को प्रणाम है है हर जो अक्षर आश्रय आती क्रूर और केमोन उपभोग में समर्थ आपका दो जब वाला रूप है आपके उसे नाथ स्वरूप को प्रणाम है है वैष्णो जो ज्ञान में शांति दोष रहित और कप प्रशांत आपके उसे मनी में रूप को प्रणाम है जो कल पर्वत में आवश्यक रूप से समस्त भूतों का भाषण कर जाता है पुंडरी साक्षर आपके इस कालस्वरूप को प्रणाम है जो प्रलय काल में देवता आदि समस्त प्राणियों को एक समान भाव से भाषण करके नृत्य करता है आपके उसे रूद्र रूप को प्रणाम है रजोगुण की प्रवृत्ति के कारण जो कर्मों का कारण स्वरूप है है आपके उसे मनुष्य आत्मक रूप को प्रणाम है जो 28 व 20 सितंबर और उन मार्ग में आपके उसे पशु रूप को प्रणाम है प्रधान और यज्ञ का अंगूठी है और वृक्ष लता गुलमर विरुद्ध और गिरी इंच हाईवे 2 से युक्त है आपके उसे उदित रूप को प्रणाम है तिरक मनुष्य तथा देवगन आदि आकाश आदि पांच भूत एवं शब्द आदि उनके गुण के सब आदि भूत आपकी के स्वरूप हैं अतः आप सर्वोत्तम को प्रणाम है हे प्रभु प्रधान और महत्व आदि रूप की समस्त जगत से जो पड़े हैं सबका आदि कारण है और जिसके समान कोई अन्य रूप नहीं है आपके उसे प्राकृतिक आदि कर्म के भी कारण स्वरूप को हम प्रणाम करते हैं जो हमारे सिरों में अन्य प्राणियों के सिरों में तथा सारी वस्तुओं में वर्तमान है आदमी और अविनाशी है तथा जिनके अतिथि अन्य कोई भी नहीं है उसे ब्रह्म स्वरूप को हमारा प्रणाम है श्री पाराशर जी बोले है मैथिली स्रोत के संपूर्ण कोर्ट की देवगणों में प्रभु श्री हरि विष्णु जी को हाथ में टांग चक्र और गधा लिए गरुड़ पर सवार में समझ विराजमान देखा प्रभु श्री हरि को देखते ही समस्त देवता अगर उन्हें प्रणाम कर बोले हे नाथ हमने प्रसन्न हुए और हम सारा नगर की बेटियों से रक्षा करो हे प्रभु हे परमेश्वर के हृदय प्रभृति देशों ने ब्रह्मा जी की आज्ञा का भी उल्लंघन करके हमारे एवं त्रिलोक के भाव का हरण कर लिया है यद्यपि हम तथा हुए सर्वभूत आपकी के उल्टे हैं फिर भी अभी दिया आवश्यक हम जगत को परंपरा पर विभिन्न विभिन्न देखते हैं हमारे शत्रुघ्न अपने वन धर्म का पालन करने वाले वेद मला नवी और तमु निष्ठा है हे प्रभु हमें ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे हम उन असुरों का वध कर सकें श्री पाराशर जी बोले हैं मैथिली देव गानों की गिनती सुनते ही प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने तुरंत अपने शरीर से माया मोह को उत्पन्न किया और उसे देवताओं को देखकर कहा मेरा दिया हुआ यह माया मोह उन समस्त देते घरों को मोहित कर देगा फिर वह वेद मार्ग का उल्लंघन करने से तुम लोगों से मारे जा सकेंगे फिर देवगढ़ जो कोई देवता या आदित्य ब्राह्मण जी के कार्य में विधान डालता है वह प्रीति की रक्षा में लगे मेरे द्वारा बाध्य हो जाते हैं अतः यह देवगन आप तुम लीडर होकर जाओ या मोह माया तुम्हारा उपकार करेगा श्री पाराशर जी बोले हैं मैथिली प्रभु श्री हरि विष्णु जी की ऐसी आजा मिलते ही समस्त देवगन उनके परिणामों पर जिस स्थान से आए थे उसी चले गए तथा उनके साथ माया मोह की जहां असुरगढ़ देते थे वहां गया

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Hai Purushottam who salutes the form of Piyush Raksha full of kurta and illusion. Janardan Yoga is the religion that lives in heaven and attains happiness etc. The salt of your religion salutes the form that is always happy and happy even after going to places like water, fire etc. I salute this perfect salt form of yours. Every letter that shelters you is cruel and capable of consuming the poison. Your two-day form is yours. Salutations to your Nath form. Vaishno, who is the one who is peaceful in knowledge, without any defect and who is at peace with you. In Mani, I salute the form which essentially speaks to all the ghosts in the mountain. Pundari Saakhar. Salutations to this form of time of yours, which in the time of doomsday speaks to all the creatures like Gods and dances in the same manner. You call it Rudra form. Due to the tendency of Rajoguna, which is the cause of actions, I salute you to your human spiritual form, which is on 28th and 20th September and on those paths, you salute to your animal form, which is the ring of yagya and the tree, creeper and gulmar. And Giri Inch Highway is full of 2, I salute you for your rising form, the sky, the sky, five ghosts, gods, etc., all the primitive ghosts of their qualities are your forms, hence, I salute you for being the best, O Lord, the main and important form. That which is the original cause of everything that exists in the entire world and which has no other form like it, we salute the original form of yours which is present in our heads, in the heads of other living beings and in all the things as well as the cause of our natural actions and deeds. Our salutations to the form of Brahma who is immortal and whose guest is no one else. Shri Parashar ji has said that in the entire court of Maithili source, Lord Shri Hari Vishnu ji was seen seated astride Garuda, holding a leg, chakra and a donkey in his hands. As soon as all the gods saw Lord Shri Hari, they bowed down to him and said, O Nath, we are pleased and protect us from the daughters of the entire city. O Lord, O God's heart, the nations have violated the orders of Lord Brahma and have harmed us and the three worlds. Although we and everything that has happened are contrary to yours, still it is necessary that we see the world in different ways based on tradition, our enemies follow their forest religion, we have faith in the Vedas and you, O Lord, please tell us such a solution. So that we can kill those demons, Shri Parashar ji has said that on hearing the counting of Maithili Dev songs, Lord Shri Hari Vishnu ji immediately created the illusion of illusion from his body and looking at the deities, he said that this illusion of illusion given by me will give away all of them. He will fascinate the houses, then he will be killed by you people for violating the Vedas, then Devgarh, any god or Aditya who puts rules in the work of Brahmin ji, they become bound by me to protect the love, hence this Devgan you. You go as a leader or Maya and Maya will do you a favor. Shri Parashar Ji has said that as soon as Maithili Lord Shri Hari Vishnu ji received such a visit, all the gods, following his consequences, went to the same place from where they had come and along with them, they went to the place where the Asurgarh of Maya and Moha was given. Went

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