विष्णु पुराण कथा तीसरा स्कंद अध्याय 17

नाग बिशक प्रश्न देवताओं की पराजय उनका भगवान विष्णु जी की शरण में जाना और भगवान का माया मोह को प्रकट करना



श्री पाराशर जी बोले एवं मैथिली पूर्व काल में महात्मा सागर से उसके पूछने पर वार ने इस तरह गृहस्थी के सदाचारों का वर्णन किया था यह दीजिए मैं भी तुम्हें उनका पूर्णता वर्णन कर दिया कोई भी पुरुष सदाचार का उल्लंघन करके सद्गति प्राप्त नहीं कर सकता श्री मैथिली जी बोले हे भगवान ना पुरुष अपवित्र और आरजी सवाल आदि को तो मैं जानता हूं किंतु यह नहीं जानता की नग्न किसको कहते हैं अतः मैं आपसे नॉन के विषय में जानना चाहता हूं इसलिए आप मुझे नॉन की व्यवस्था सुनने की कृपा करें श्री पाराशर जी बोले ही बी इस रक्षा राम याजू या वेद यात्री वनों का आवरण रूप है जो पुरुष मुंह से इसका त्याग कर देता है वह पापी नाग नागिन कहलाता है है ब्राह्मण संपूर्ण वाहनों को ढकने वाले वस्त्र वेद प्रिया होता है अतः इनका त्याग कर देने पर पुरुष नॉन हो जाता है हमारे पितामह धाम यज्ञ वशिष्ठ जी ने इस संबंध में महात्मा भीष्म चीज से कुछ वर्णन किया था वह श्रवण करो है मैथिली तुमने नॉन के विषय में जो मुझसे पूछा था इस संबंध में भीष्म के प्रति वर्णन करते समय मैं भी महात्मा वशिष्ठ जी का कथन सुना था पूर्व काल में एक बार देवता और असुरों में 100 दिव्य वर्ष तक युद्ध होता रहा उसमें दैत्य द्वारा देवता पराजित हुए और फिर देवताओं ने क्षीरसागर से उतरी तट पर जाकर तब किया और प्रभु श्री हरि विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए उसका समय इस स्थान का दान किया देवगढ़ बोले हम लोग प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना के लिए जिसकी वाणी का उच्चारण करते हैं उनसे वह आघात पुरुष प्रभु श्री हरि विष्णु की कृपा करके प्रसन्न हो क्योंकि जिन पर महात्मा से संपूर्ण भूत उत्पन्न हुए हैं तथा अंत में जीवन में हुए समस्त लिंग हो जाएंगे जगत में उनकी स्तुति करने में कौन समर्थ है हे प्रभु यद्यपि आपका स्वागत वास्तविक रूप वाणी का विषय नहीं है फिर भी असुरों के हाथ से पराजित होकर पराक्रम्हीं हो जाने के कारण हम अभय प्रताप के लिए आपकी स्तुति करते हैं पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश अंतकरण मूल प्राकृतिक और प्राकृतिक से भर पुरुष से समस्त आप ही हैं ब्रह्मा से लेकर इस महबूब पर्यटन स्थल और कला आदि वेद युक्त मूलतः पदार्थ में का शरीर है आपके नाभि कमल से जगत के कल्याण अर्थात प्रगट हुआ जो आपका प्रथम रूप है हे प्रभु उसे ब्रह्म स्वरूप को प्रणाम है इंद्रदेव सूर्य देव रूद्र देव वासुदेव अग्नि कुमार मारू दुल्हन और सम आदि वेद युग हम लोग आपका एक ही रूप है इसलिए आपके उसे देवता रूप को प्रणाम है हे गोविंद जो दम भाई आज्ञा में कथा तीज का और दम से शून्य है आपकी उसे देखकर मूर्ति को प्रणाम है जिस मां सरकार स्वरूप में हृदय की नदी आती ज्ञान वाहिनी नहीं हुआ करती है तथा जो शब्द आदि विषय का लोभी हुआ करती है आपके इस यक्ष रूप को प्रणाम है

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Nag Bishaka Question: Defeat of the Gods, their going to the shelter of Lord Vishnu and revealing the illusion of Maya.

Shri Parashar ji said and Maithili, in earlier times, when asked by Mahatma Sagar, Vaar had described the virtues of a householder in this way, give me this, I have also described them completely to you, no man can attain salvation by violating the virtues, Shri Maithili. He said, O God, I know about men being impure and RG questions etc. but I don't know what is called naked, hence I want to know from you about non, so please listen to me about the system of non, Shri Parashar ji said. B. This Raksha Ram is the covering form of the Yaju or Veda Yatri forests. The man who renounces it with his mouth is called a sinful snake. The Brahmin is the one who covers all the vehicles. The clothes that cover the entire vehicle are the Vedas. Hence, by renouncing them, the man becomes a non-serpent. Our grandfather Dham Yagya Vashishtha ji had described something to Mahatma Bhishma in this regard, listen to it. Maithili, you had asked me about non, while describing this to Bhishma, I also heard the statement of Mahatma Vashishtha ji. Once in ancient times, there was a war between the gods and the demons for 100 divine years, in which the gods were defeated by the demons and then the gods went to the banks of Kshirsagar and to please Lord Shri Hari Vishnu, they settled at this place. Donated Devgarh and said, the voice of which we chant for the worship of Lord Shri Hari Vishnu ji, may that affected person be pleased by the blessings of Lord Shri Hari Vishnu, because on whom entire ghosts have been born from the Mahatma and in the end in life Who in the world is capable of praising Him? O Lord, although Your welcome is not a matter of speech in actual form, still because of becoming mighty after being defeated by the hands of the demons, we praise You for the fearless glory of the earth and water. Fire, Air, Sky, Antakaran, the original natural and natural, from the Purusha, everything is you, from Brahma to this favorite tourist place and art etc., the body is basically a substance, the welfare of the world is manifested from the lotus in your navel, which is your first form. Lord, I salute him in the form of Brahma, Indradev, Sun God, Rudra Dev, Vasudev, Agni Kumar, Maru, Dulhan and Sam etc. Veda Yuga, we are your only form, therefore, I salute him in the form of your deity, O Govind, who tells the story of Teej in Dum Bhai Aagya and with Dum Se. Seeing her is void, I salute your idol, in whose form the river of heart comes in the form of mother government, is not a channel of knowledge and who is greedy for words etc., I salute this Yaksha form of yours.

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