श्री विष्णु पुराण कथा तीसरा स्कंद अध्याय 9 का भाग दो



गृहण के लिए अतिथि का अपमान करना अहंकार तथा गृह घमंड का आचरण करना उसे देखकर पछताना उसे पर प्रहार करना या उसके कटु वचन कहना अनुचित है इस प्रकार जो गृहस्ट अपने परम धर्म का पूर्ण प्रकार से पालन करता है वह समस्त बंधनों से मुक्त होकर उत्तम लोगों को प्राप्त करता है है राजन इस प्रकार ग्रह स्थित कार्य करते हुए जिन व्यक्तियों गई हो उसे गृहस्थ को चाहिए की अपनी स्त्री को पुत्रों पर छोड़कर अथवा अपने साथ लेकर वन को चला जाए वहां वन में पत्र मूल फल आदि का आहार करता हुआ दाढ़ी मूंछें लॉन्ग श्रम और जताए रखकर पृथ्वी पर संयंत करें और मनी वृद्धि दर सब प्रकार से अतिथियों को सेव करें उनको चाहिए कि वह बीच होने तथा उड़ने का वस्त्र चर्मकश और कुशवाहा का बना उसे मुनि के लिए त्रिकाल स्नान का विधान है इस तरह देव पूजन हम समस्त अतिथियों का सत्कार भिक्षा और बाली वैश्य देव भी उसके विहित कर्म है है राजन वन्य तेल आदि को शरीर देह में मलाणा और शीतल सर्दी उसका गर्मी को सहन करते हुए ताप में लगे रहना उसके प्रस्ताव कम करना जो वानप्रस्थ मनी इन नित्य कर्मों का पालन करता है उनके समस्त दोस्त अग्नि के समान भ्रम हो जाते हैं और नित्य लोगों को प्राप्त कर लेता है हे राजा एन तृतीय आश्रम के स्थानांतरण पुत्र धन द्रव्य और स्त्री पत्नी के इसने प्रेम को सर्वदा त्याग करता था मत्स्य को छोड़कर चतुर्थ आश्रम में जिसे पंडित गण भिक्षु आश्रम कहते हैं प्रतिष्ठित होना चाहिए हम पृथ्वी पति भिक्षु को उचित है कि अर्थ धन धर्म और कामरूप त्रिवर्ष संबंधित समस्त कर्मों को छोड़ दें शत्रु मित्र आदि मैं सम्मान भाव रखें तथा सभी जीवो का सोहत हो फिर निरंतर सबके हित की भावना हृदय में रखते हुए जरयु अखंड जी और उसने आदि समस्त जीवों के मानवादी तक था कम द्वारा कभी भी द्रव ना कर रे तथा समस्त प्रकार की आसक्तियों को त्याग दें ग्राम गांव में एक रात और पूर्व में पांच रात तक वास रहे तथा इतने दिनों भी इस तरह रहे जिससे किसी से प्रेम या द्वेष ना हो जिसका समय घरों में अग्नि शांत कर दिया जाए और घर के समस्त प्राणी भोजन कर चुके तब भिक्षु को उत्तम वर्णों के घरों में भिक्षा के लिए जाना चाहिए परिवाजक को चाहिए कि काम क्रोध मत लोभ आदि समस्त दुर्गुणों को छोड़कर ममता हैं हो जाना चाहिए जो मन ए समस्त प्राणियों को भाई दान देकर बिछरत है उनको कभी किसी से किसी प्रकार का भय नहीं होता जो ब्राह्मण चतुर्थ आश्रम में अपने शरीर में स्थित प्राण आदि सहित चैप्टर अग्नि के उद्देश्य से अपने मुंह में भी ज्यादा अन्य रूप हेवी से हवन करता है वह ऐसा अग्निहोत्र करके अग्नि हो तो के लोगों प्राप्त हो जाता है और अंत में ब्रह्म लोक प्राप्त करता है

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It is inappropriate for a householder to insult the guest, to behave arrogantly, to behave arrogantly, to regret seeing him, to attack him or to say bitter words to him. The householder who has gone to work in this way, Rajan, should leave his wife to his sons or take him with him to the forest, eat leaves, roots, fruits, etc. By keeping labor and cobwebs on the earth, save the guests in every way and increase the rate of money; Worshiping alms and Bali Vaishya Dev is also his canonical work. All friends become illusions like fire and eternally attains people. O king, the son of the third ashram, the transfer of wealth and wife, he always renounced the love of his wife, leaving Matsya in the fourth ashram, which is called Pandit Gana Bhikshu Ashram. We should be prestigious, it is appropriate for the husband of the earth, the monk to leave all the deeds related to money, religion and lust for three years, respect the enemy, friend etc. And he said that he should never liquidate all living beings and give up all kinds of attachments, stay in the village for one night and in the east for five nights and remain in this way for so many days that he does not love anyone. There should be no malice, when the fire in the house is extinguished and all the living beings in the house have eaten, then the monk should go for alms in the houses of the best castes; The mind that is scattered by giving brotherly donations to all living beings, never has any kind of fear from anyone who, in the Brahmin IV ashram, performs Havan in his mouth with a more heavy form than any other form, for the purpose of chapter fire, including the life etc. in his body. If he does such a fire offering, he attains the people of the fire and finally attains the world of Brahma.

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