ब्रह्मचर्य आदि आश्रमों का वर्णन
और वह बोल ही भोंकते बालक को चाहिए कि उपनयन संस्कार के पश्चात वेद के अध्ययन में तैयार होकर ब्रह्मचर्य का आश्रय लेकर सावधानी पूर्वक गुरु गृह में निवास करें वहां रहकर उसे सोच एवं आचार व्रत का पालन करते हुए गुरु की सेवा करनी चाहिए तथा व्रत आदि का आचरण करते हुए स्थिर बुद्धि द्वारा वेदों का अध्ययन करना चाहिए है राजन प्रातः काल और स्वयं कल दोनों संध्या काल में कागज होकर सूर्य तथा अग्नि क्यों उपासना करें तथा गुरु का अभिवादन करें गुरु के खड़े होने पर उसको चाहिए कि वह भी तुरंत खड़ा हो जाए गुरु के चलने पर उनके पीछे-पीछे चलने लगे गुरु को बैठ जाने पर नीचे बैठ जाना चाहिए है राजन इस तरह का भी गुरु के विरुद्ध कोई आचरण ना करें गुरु के आने पर उनके सामने बैठकर एकाग्रचित होकर वेद अध्ययन करें और उनकी आजा मिलने पर ही भिक्षा से प्राप्त भोजन करें पहले गुरु जल में स्नान कर ले उसके पश्चात उसे स्नान करना चाहिए तथा प्रतिदिन प्रात काल गुरु जी के लिए समाधि जल कोष और पुष्प आदि लाकर दें इस तरह अपना वेद पाठ समाप्त कर चुकाने पर शिष्य गुरु जी की आज्ञा से गुरु को गुरु दक्षिणा देकर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें है राजन फिर विधि पूर्वक पानी ग्रहण कर अपनी वर्ण अनुकूल वृद्धि से धन उपार्जित करते हुए उसे समर्थ के अनुसार समस्त ग्रह कार्य करता रहे पिंडदान आदि द्वारा पितृगन की आज्ञा आदि से देवताओं की आमद द्वारा अतिथियों की इस स्वाध्याय से ऋषियों की पुत्र उत्पत्ति द्वारा प्रजापति की बोलियां अन्य भाग से बोधगरण की तरह वर्ष लिया भाग द्वारा समस्त जगत की पूजा करते हुए पुरुष अपने कर्मों द्वारा मिले हुए उत्तम लोगों को पा लेते हैं जो केवल भिक्षा मांग कर निर्वहन करते हैं ऐसे परिवाजक तथा ब्रह्मचारी आदि का एल्बम भी गृहस्थ आश्रम ही है अतः या सर्वश्रेष्ठ है है राजन जो भी प्रण वेद अध्ययन तीर्थ स्थान और देश के दर्शन के लिए पृथ्वी धरती पर्यटन ब्राह्मण किया करते हैं उसमें से उनका कोई निश्चित घर या भोजन का प्रबंध नहीं होता और जो जहां स्वयं कल हो जाता है वहीं रुक जाते हैं उन सब का आदर और मूल गृहस्थ आश्रम ही है हे राजन ऐसे व्यक्ति जब घर पर जाएं तो उनका मधुर वचनों से स्वागत करें तथा संयंत्र आसान और भोजन के द्वारा उसकी यथाशक्ति आदर्श सत्कार करना चाहिए जिस व्यक्ति के घर से पीस लाउड जाता है उनको अपने संपूर्ण दुष्कर्म बुरे कर्म देकर वह आई थी उनके पूर्ण कर्मों को स्वयं ले जाता है
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Description of celibacy etc. ashrams
And it should be said to the child that after getting ready for the study of the Vedas after the Upnayan Sanskar, take shelter of celibacy and stay in the Guru's home carefully, while staying there, he should serve the Guru by following the vow of thought and conduct and observe the fast etc. One should study the Vedas with a steady mind while conducting himself. Rajan, both in the morning and tomorrow in the evening, why worship the sun and fire by being paper and greet the Guru, when the Guru stands up, he should also stand up immediately. Rajan should sit down when the Guru sits down. Take the food obtained from the Guru, first take a bath in the water, after that he should take a bath and every morning bring Samadhi Jal Kosh and flowers etc. to the Guru ji. Rajan enters the householder's ashram by giving Guru Dakshina, then by taking water according to the method, earning money by increasing according to his character, all the planets keep working according to his ability, by Pinddan etc. by the order of Pitrgan etc. By the arrival of the gods, this study of the guests The words of Prajapati by the origin of the sons of the sages, from the other part like Bodhgaran, worshiping the whole world, men get the best people they have got by their deeds, who discharge only by asking for alms. The album is also Grihastha Ashram, so it is the best Rajan, whatever Prana Veda study pilgrimage place and darshan of the country, Brahmins do earth tour, they do not have any fixed house or food arrangement and they themselves go there tomorrow. Whatever happens, they stay where they are respected and the original householder's ashram is only O king, when such a person goes home, welcome him with sweet words and plant easy and food, he should be treated as ideal as possible, the person from whose house Peace goes to them by giving them all their misdeeds, bad deeds, she came, takes away all their deeds.
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