श्री विष्णु पुराण कथा तीसरा स्कंध अध्याय 7

यम गीता का वर्णन



श्रीमाली जी बोले हे गुरु मैंने आपसे जो कुछ पूछा था वह आप मुझे बता चुके हैं अब आप मुझे वह कर्म बतलाए जिससे करने से मनुष्य यमराज के वशीभूत नहीं होता मैं आप आपसे यही सुनना चाहता हूं श्री पराशर जी बोले हैं मनु यही प्रश्न महात्मा ना कुल कितने भीष्मा पितामह से पूछा था उसके उत्तर में उन्होंने जो कुछ कहा था मैं तुम्हें वह सुनाता हूं भीष्मा पितामह ने कहा है वात्सल्य पूर्व काल में मेरे यहां कलिंग देश का ब्राह्मण मित्र आया और मुझे बोला मेरे पूछने पर एक जाति स्मरण मनु ने बताया था कि समस्त बातें अमुक अमुक तरह की होगी सेवा शल्य उस प्रखर बुद्धिमान ने यो यो बातें जिस प्रकार होने को कही कही थी वह समस्त उसी तरह हुए इस तरह श्रद्धा भाव हो जाने के कारण उससे मैंने कुछ और भी प्रस्तुत किया उन प्रश्नों के उत्तर में वह ब्राह्मण ने जो भी बातें बतलाए उन के विपरीत मैंने कभी कुछ नहीं देखा जो बातें तुम मुझसे पूछते हो वही बात मैंने 1 दिन उस कालीन भ्रमण से पूछा उस समय उसे मुनि के वचनों को याद करके उसे ब्राह्मण ने यह और उसके दूधों के मध्य आपस में जो बातें हुई थी वह गोपनीय बातें उन्होंने मुझे बताई वह मैं तुम्हें सुनाता हूं ब्राह्मण बोला आपने अनुचर के हाथ में पास देखकर यमराज उसके कान में बहुत धीरे से बोले प्रभु श्री हरि विष्णु जी की शरण में आए हुए मानव को कुछ नहीं खाना क्योंकि मैं वैष्णो का छोड़कर समस्त प्राणियों का स्वामी है विधाता ने मुझे यह नाम देकर लोगों के पाप पुण्य के विषय में नियुक्त किया है मैं स्वच्छ एवं स्वतंत्र नहीं हूं मैं अपने प्रिय गुरुवार प्रभु श्री हरि विष्णु के अधीन हो प्रभु श्री हरि विष्णु जी के मायने नियंत्रण में हूं जिस तरह वायु के रुके होने पर उस में उड़ते हुए परमाणु पृथ्वी के साथ मिलकर एक हो जाते हैं उसी तरह गुणों से उत्पन्न हुए सारे देवगढ़ मानव एवं पशु आदि अंत हो जाने पर उस परमात्मा में लीन हो जाते हैं जो प्रभु के चरण कमलों के सच्चे मन से वंदना करता है संस्कृत की आहुति शिव सहित अग्नि के समान सारे पापों के बंधन से मुक्त हुए उस प्राणी को तुम छोड़कर दूर से ही निकल जाना यमराज के यह वचन सुनकर उसके यमदूत ने उससे पूछा है प्रभु सबके विधाता प्रभु श्री हरि विष्णु जी का सेवक कैसा होता है वह आप मुझे बताएं यमराज बोले जो भी प्राणी अपने वर्ण धर्म से भी विचलित नहीं होता तथा अपने विपक्षियों के प्रति प्रेम भाव रखता है कभी किसी का द्रव्य हरण नहीं करता वह किसी जीव की हत्या नहीं करता वह जीव पर अत्याचार नहीं करता ऐसे निर्मलचित वाला प्रभु श्री हरि विष्णु का प्रिय भक्त होता है जो किसी एकांत स्थान में किसी अन्य के पड़े हुए स्वर्ण और गाने देखकर भी उसे तुच्छया समझता है वह उनमें अपना मन न लगाकर सिर्फ प्रभु श्री हरि विष्णु का सच्चे मन से स्मरण करते रहते हैं ऐसे प्राणियों को प्रभु का सच्चा भक्त जनों जो प्राणी पवित्र मन समस्त जीवों के प्रति मन में दया भाव अभियान घमंड एवं माया से सदैव दूर रहता है उसे प्राणी के मन मे सदैव प्रभु श्री हरि विष्णु जी विराजमान रहते हैं ओम प्रभु के हृदय में विराजमान होने पर प्राणी इस जगत के लिए शांत रूप बन जाता है जिस तरह नवीन साल वृक्ष अपनी सुंदरता से ही अंदर भरे हुए अतिसुंदर पथिक रस को प्रगट कर देता है

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The description of Yama Geeta

Shrimali ji said, O Guru, whatever I had asked you, you have already told me. Now you tell me that deed, by doing which a man does not get under the control of Yamraj. I tell you what Bhishma Pitamah had said in response to how many times Bhishma Pitamah had said that in the past, a Brahmin friend of Kalinga country came to my place and told me that when I asked a caste memory, Manu had told that All things will be of such and such type of service surgery, the way Yo Yo things were said to happen by that intense intelligent, everything happened in the same way, due to the feeling of devotion, I also presented something else in answer to those questions, that Brahmin. I have never seen anything contrary to whatever things have been told by me. The talks were held, those secret things, he told me that I will tell you, Brahmin said, looking at the pass in the hand of the retainer, Yamraj said very softly in his ear, the human who has come in the shelter of Lord Shri Hari Vishnu ji should not eat anything because I am of Vaishno. The creator is the master of all the living beings except that by giving me this name, he has appointed me in the matter of sins and virtues of the people. I am not clean and free. Just like the atoms flying in the air when it stops, unite with the earth, in the same way, all the Gods born of virtues, humans and animals, etc., when they come to an end, get absorbed in that God, who is the true heart of the lotus feet of the Lord. Worships the sacrifice of Sanskrit, like fire, leaving that creature free from the bondage of all sins. Hearing these words of Yamraj, his Yamdoot has asked him, Lord, the servant of Lord Shri Hari Vishnu, the creator of all. You tell me how it happens Yamraj said that any creature who does not deviate from his caste and religion and has love for his opponents, never steals anyone's money, he does not kill any living being, he does not torture the living being. Nirmalchit wala is a dear devotee of Lord Shri Hari Vishnu, who even after seeing other's gold and songs lying in a secluded place, considers them to be insignificant; The true devotee of the Lord to the creatures, the creature who has a pure mind, kindness towards all the living beings, always stays away from pride and illusion, Lord Shri Hari Vishnu ji always resides in the heart of the creature. The creature becomes a calm form for this world, just as the New Year tree reveals the exquisite pathic juice filled inside by its beauty.

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