जातकर्म नामकरण एवं विवाह संस्कार की विधि
सागर बोल दिज श्रेष्ठ आपने मुझे चारो आश्रम और चारों वनों के कर्मों के विषय में बताया अब आप मुझे मनुष्यों के षोडश संस्कार रूप कर्मों को सुनाइए आप सर्वस्व हैं आप मनुष्यों के नित्य नियमितिक और कर्म आदि समस्त प्रकार के कर्मों का निवारण कीजिए ओवर बोले हे राजन पुत्र के उत्पत्ति होने पर पिता को उसके जाट कर्म आदि शक्ल क्रिया कांड और आयुक्त श्रद्धा कार्य ने उचित है बी पूर्व अभिमुख बैठक युग्म ब्राह्मणों को भजन कराया तथा बी जातियों के व्यवहार के अनुसार प्रीत तथा देव की तृप्ति के लिए श्रद्धा करें और प्रसन्नता पूर्वक उंगलियों के अग्र भाग द्वारा नदी मुख पितृगन को दही जाओ और बद्री फल मिलकर बनाएं हुए पिंड दें अथवा प्रजापत तीर्थ कनिष्ठता के मूल द्वारा समस्त उपचार द्रव्य का दान करना चाहिए इस तरह का नया या पुत्रों के विवाह आदि समस्त विधि कलाओं में भी करें पुत्र उत्पन्न होने के दसवें दिन पिता को पुत्र का कहां नामकरण संस्कार करना चाहिए पुरुष का नाम वाचक होना चाहिए नाम के आरंभ में देव वाचक शब्द हो तथा पीछे शर्मा वर्मा होना चाहिए ब्राह्मण के नाम के अंत में शर्मा छतरी के अंत में वर्मा और वेश्या के अंत में गुप्त और शुद्र के अंत में दास शब्द का होना आवश्यक है नाम अठारहीन अभिहित अपशब्द युक्त आम मांगलिक और निंदनीय नहीं होना चाहिए तथा उनके अक्षर समान हो अतीत दिव्या अति लघु या अति कठिन अक्षरों से युक्त नाम ना रखें जो उच्चारण किया जा सके और इसके पीछे के वर्णन लघु को नाम ऐसा होना चाहिए इसके पश्चात उपनयन संस्कार को जाने पर गुरु ग्रह में रहकर विधि पूर्वक विद्या अध्ययन करें है भोपाल फिर विद्या अध्ययन करने के पश्चात गुरु को दक्षिणा देकर यदि गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने की इच्छा हो तो विवाह कर लेना चाहिए या दिन संकल्प देता ब्रह्मचर्य ग्रहण कर गुरु की सेवा करता रहे या स्वच्छ इच्छा अनुसार वानप्रस्थ या सन्यास ग्रहण ले लो है राजन पहले जैसा संकल्प किया हो वैसा ही करें
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Method of caste naming and marriage ceremony
Sagar Bol Dij Shrestha, you told me about the deeds of the four ashrams and the four forests, now you tell me about the deeds in the form of sixteen rituals of humans, you are everything, you stop all kinds of deeds, daily routine and deeds etc. On the birth of a son, it is appropriate for the father to perform his Jat Karma etc. Shakal Kriya Kand and Commissioner Shraddha Karya B east oriented meeting pair Brahmins got bhajan done and according to the behavior of B castes do reverence for the satisfaction of Preet and Dev and fingers happily Go to the head of the river mouth and offer curd to Pitrigan and give a pind made of Badri fruit or Prajapat Tirtha by the root of juniority, donate all the healing liquid. On the tenth day, where should the father perform the naming ceremony of the son, the name of the man should be the reader, the word Dev should be at the beginning of the name and the name should be followed by Sharma Verma, Sharma at the end of the name of the Brahmin, Verma at the end of Chhatri and Gupta at the end of the courtesan. And it is necessary to have the word Das at the end of the Shudra. The name should not be common manglik and condemnable with eighteen designated abuses and their letters should be similar. The name of the minor should be like this, after that, after going to Upnayan Sanskar, stay in Guru Graha and study education according to Bhopal, then after studying education, giving dakshina to Guru, if you want to enter Grihastha Ashram, then you should get married or The day gives a resolution to continue serving the Guru by assuming celibacy or according to the pure desire, take Vanprastha or retirement, Rajan should do the same as he had resolved before.
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