श्री विष्णु पुराण कथा दूसरा स्कंध अध्याय 8 का भाग 3



इस तरह उत्तर और दक्षिण सीमाओं के मध्य मंडल आकार घूमते रहने से सूर्य देव की गति दिन या रात के समय मान दिय तीव्र हो जाती है जी आयन में सूर्य देव की गति दिन के समय मंद होती है उसमें रात के समय तेज होती है तथा जिस समय रात्रि काल में शीघ्र होती है वह समय दिन में मान हो जाती है यदि सूर्य देव को सदैव एक समान मार्ग ही पार करना पड़ता है एक दिन में ही समस्त राशियों का भोग कर लिया करते हैं सूर्य देवता 6 राशियों को दिन के समय भोंकते हैं के समय भोंकते हैं राशियों के परिणाम अनुसार ही दिन का घटना हुआ बढ़ना होता है तथा रात भी इसी प्रकार से घटित बढ़ती है राशियों के भोग के अनुसार ही दिन और रात घटते या बढ़ते हैं उत्तरायण में सूर्यदेव की गति रात्रि में तेज और दिन में धीमी होती है दक्षिण में सूर्यदेव की गति इसके विपरीत होती है रात्रि को उस्मा कहते हैं तथा दिन को बूस्ट प्रभात कहा जाता है इस ऊष्मा तथा बिष्ट प्रभात के मध्य समय को संज्ञा कहते हैं इस अति दा रोड में और भयंकर संध्याकाल के उपस्थिति होने पर मंदिरा नामक भयंकर राक्षस गण सूर्य देवता को खाना चाहते हैं ए मेटल आयन प्रजापति का उन राक्षसों को यह श्राप है कि उसका शरीर अच्छे रहकर भी मरण नित्य प्रति हो इसलिए संध्याकाल में उन राक्षसों का सूर्य देव से अति भीषण युद्ध होता है यह महामुनि उस समय ब्राह्मण गण जो ब्रह्म स्वरूप ओमकार तथा गायत्री से अभिमंत्रित जल छोड़ते हैं उस ब्रज स्वरूप जल से वे दुष्ट राक्षस मारे जाते हैं अग्निहोत्र के समय जो सूर्य ज्योतिष आदि मंत्र से प्रथम आहुति दी जाती है उसे सहस्त्र अंशु दीनानाथ देवी ज्ञान हो जाते हैं यह मंत्र प्रभु श्री हरि विष्णु जी ही और संपूर्ण वेदों के अधिपति हैं अतः उन मंत्रों के उच्चारण मात्र से ही वह राक्षस नष्ट हो जाते हैं सूर्य प्रभु श्री हरि विष्णु का अति श्रेष्ठ हंस और विकार रहित अंत ज्योतिष स्वरूप है ओमकार उसका वाचक है और वह उससे उन राक्षसों के बाद में अत्यंत प्रेरित करने वाला है उस ओंकार की प्रेरणा से आती प्रदीप होकर वह ज्योतिष मांगने नामक पापी दुष्ट राक्षस का नाश कर लेते हैं तथा समझो उपरांत अवश्य करनी चाहिए जो भक्ति व्यक्ति संध्या उपासना नहीं करता वह सूर्य देव का घात करता है उन राक्षसों का वध करने के पश्चात सूर्य देव जब पालन में प्रवेश होकर ब्राह्मणों द्वारा सुरक्षित होकर अस्त हो जाया करते हैं 15 निवेश की एक कास्ट होती है तथा 30 कास्ट का एक काल गिनी जाती है 30 कलाओं का एक मुहूर्त होता है और तीन मुहूर्त के संपूर्ण दिन होते हैं दिनों का घटना या वृद्धि क्रमशाह प्रातः काल मध्यकाल आदि दीवानों के हाथ वृद्धि के कारण होते हैं किंतु दिनों के घटते बढ़ते रहने पर सानिया सर्वदा समान भाव से मुहूर्त की होती है सूर्योदय से लेकर सूर्य के तीन मुहूर्त की गति के काल को प्रातः काल कहते हैं यह समस्त दिन का पांचवा भाग होता है इस प्रात काल के बाद तीन मुहूर्त वाले काल को चमक कहते हैं और सहवाग काल के पश्चात तीन मुहूर्त का ध्यान होता है मध्य अंतराल के पीछे के काल को अपराहन कहते हैं इस काल को भी दूर विद्वान गण तीन मुहूर्त वाला ही कहते हैं अपराहन के बीते समय सहायक आता है इस तरह पूरे दिन में 15 मुहूर्त और प्रत्येक देवांश में तीन मुहूर्त होते हैं

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In this way, due to moving in a circular shape between the north and south boundaries, the speed of the Sun God becomes faster during the day or night. In G ion, the speed of the Sun God is slow during the day, it is fast during the night and the time when it is fast during the night, then the time becomes equal to the day. Day and night increase or decrease according to the enjoyment of the zodiac signs. In Uttarayan, the speed of the sun god is fast in the night and slow in the day. Ayan Prajapati has cursed those demons that even if their body is good, they will die everyday, so in the evening, those demons have a very fierce battle with the Sun God. At that time, the Brahmins who release the water consecrated by Brahma Swaroop Omkar and Gayatri, those evil demons are killed by that Braj Swaroop water. He is the ruler of the entire Vedas, so those demons are destroyed just by uttering those mantras. Surya Prabhu Shri Hari Vishnu's supreme swan and disorderless end is astrological form. When the deities enter the Palan and set down after being protected by the brahmins, 15 castes are considered as a cast and 30 castes are counted as a period, 30 castes are counted as a Muhurta, and three Muhurtas are complete days. This is called Pratah Kaal, it is the fifth part of the whole day. After this Pratah Kaal, the period of three Muhurts is called Chamak and after Sehwag Kaal, three Muhurts are meditated. The period after the middle interval is called Prahaan.

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