इसी इस प्रकार है ब्राह्मण दिन के समय अग्नि का तेज सूर्य में प्रविष्ट हो जाता है अतः अग्नि के सहयोग से सूर्य अत्यंत तेज स्वरूप से प्रकाशित होते हैं इस प्रकार सूर्य और रागिनी के प्रकाश तथा उस माता युक्त तेज एक दूसरे से मिलकर दिन रात्रि में वृद्धि को प्राप्त होते रहते हैं मेरु पर्वत के दक्षिणी और उत्तरी पुरवा में सूर्य के प्रकाशित होते समय अंधकारमय रात्रि और प्रकाश में और प्रकाश में दिन क्रमशाह जल में प्रवेश कर जाते हैं दिन के समय रात के प्रवेश करने से ही जल्द कुछ राम रावण दिखाई देता है लेकिन सूर्यास्त पर उसमें दिन का प्रवेश के कारण ही रात के समय या सुख लवण हो जाता है इस तरह जिस समय सूर्य देव पुष्कर दीप के मध्य में पहुंचकर पृथ्वी का तीसरा भाग पार कर लेते हैं तो उनकी वह गति 41 मुहूर्त हो जाती है अर्थात उसने भाग को सूर्य देवता को पार करने में जितना समय लगता है वही मुहूर्त कहलाता है यदि कुम्हार के चाक के सिर पर घूमते हुए प्राणी के समान भ्रमण करते हुए सूर्य देव पृथ्वी के तीनों भागों का परी भक्षण कर लेने में 1 दिन राज लेते हैं यदि उत्तरायण के आरंभ में सूर्य देवता सबसे पहले मकर राशि में जाते हैं उनके पश्चात वाह कुंभ और मीन राशि में एक से दूसरी में जाते हैं इन तीनों राशियों में मकर कुंभ एवं मीन को भोग चुकाने पर हुए रात और दिन को सम्मान करता है और हुए भूमध्य रेखा के बीच में ही चलते हैं उनके पश्चात नित्य प्रतिदिन रात्रि 6:00 होने लगती है और दिन बढ़ने लगता है फिर मैं तथा वृषभ राशि से चलकर मिथुन राशि से निकलकर उतरायण की अंतिम सीमा पर पहुंचकर वह कर्क राशि में पहुंचकर दक्षिणायन का आरंभ करते हैं जिस प्रकार उल्लाल चक्र के सिर पर स्थित जीवो अति शीघ्रता से घूमता है उसी तरह सूर्य देवता भी दक्षिण को पार करने में अति शीघ्र तक करते हैं इसलिए वह शीघ्रता पूर्वक वायु वेग से चलते हुए अपने मार्ग को थोड़े समय के ही पार कर लेता है है हे डीज दक्षिणायन में दिन के समय शीघ्रता पूर्वक चलने से पूछ समय के 13:30 नक्षत्रों को सूर्य देव 12 मुहूर्त में पार कर लेते हैं लेकिन रात के समय मंगनी होने से उतने ही नक्षत्रों को 18 मुहूर्त में पार करता है गुलाल चक्र के मध्य में स्थित प्राणी जिस प्रकार धीरे धीरे चलता है उस प्रकार उत्तरायण के समय सूर्य देव मन गति से चलता है उस समय वह थोड़ी सी भूमि भी दीर्घकाल में पार्क करता है इसलिए उत्तरायण का अंतिम दिन 18 मार्च का होता है उस दिन भी सूर्यदेव बहुत मन गति से चलता है और सूर्य देव ज्योतिष चक्र के साडे 13 छात्रों को एक दिन में पास करते हैं लेकिन रात के समय वह उतने ही साडे 13 नक्षत्रों को 12:00 मुहूर्त में ही पार कर लेते हैं अतः जिस तरह ना विदेश में चक्र के मन भेद घूमने से उस स्थान का वृद्धि मंद गति से घूमता है उसी तरह ज्योतिष यात्रा के मध्य में स्थित ध्रुव बहुत ही मन गति से घूमता है मैथिली जिस प्रकार उल्लाल चक्र की नाभि आपने ही स्थान पर घूमती रहती है उसी तरह ध्रुवा भी अपने स्थान पर ही घूमता रहता है
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In the same way, Brahmin, the light of fire enters the sun during the day, so with the help of fire, the sun shines in a very bright form, in this way, the light of Sun and Ragini and the light of that mother keep increasing day and night, when the sun appears in the south and north east of Mount Meru, the dark night and the light and the light of the day gradually enter the water. Time or happiness becomes salt. In this way, when Sun God reaches the middle of the Pushkar Deep and crosses the third part of the earth, then his speed becomes 41 Muhurta, that is, the time it takes to cross the Sun God is called Muhurta. After that Vaah moves from one to the other in Aquarius and Pisces. In these three zodiac signs, Capricorn respects the night and day after paying for Aquarius and Pisces, and walks in the middle of the equator. After that, every night starts at 6:00 pm and the day starts increasing. Then, moving from I and Taurus, leaving Gemini and reaching the last limit of Uttarayan, he reaches Cancer and starts Dakshinayan, as at the head of the Ullal Chakra. The living beings move very quickly in the same way, the sun god also moves very quickly in crossing the south, so he moves quickly with the speed of the wind and crosses his path in a short time. O Dej, walking quickly during the day in Dakshinayan, the sun god crosses 13:30 constellations in 12 Muhurtas, but due to engagement at night, he crosses the same number of constellations in 18 Muhurtas of the Gulal Chakra. The way the creature in the center moves slowly, in the same way, at the time of Uttarayan, Sun God moves at the speed of his mind, at that time he parks even a little land for a long time, so the last day of Uttarayan is on March 18, on that day also Sun God moves at a very fast pace and Sun God passes 13 and a half stars of the astrological cycle in a day, but at night, he passes the same number of 13 and a half constellations in 12:00 auspicious time. Due to rotation of mind, the growth of that place rotates at a slow speed, in the same way, the pole situated in the middle of the astrological journey, Maithili, rotates very slowly, just as the navel of the Ullal Chakra keeps on rotating at its own place, in the same way, Dhruva also keeps on rotating at its own place.
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