हे मैथिली इस प्रकार मैंने तुमको साथ लोग और साथ पताल का ब्रिटेन कहा है इस ब्रह्मांड का विस्तार बस इतना ही है कि अब ब्रह्मांड के थे के बीच की तरह ऊपर नीचे सब तरफ से आंड कटा से घिरा हुआ है हे मैथिली या आंड अपने से 10 गुना जल से घिरा हुआ है और उज्जवल का संपूर्ण भाग अग्नि से घिरा हुआ है अग्नि वायु से वायु आकाश से गिरा है तथा खास भूतों के कारण ताम्रकार और अहंकार महत्व से गिरा है इसलिए सातों परस्पर एक दूसरे से 10 गुने हैं महत्व को भी प्रधान अमृत कर रखा है वह अनंत है और उनका ना कभी अंत होता है और वह संख्या हीन है क्योंकि वह अंत असहयोग और समस्त जगत का कारण है वहीं पर आ प्राकृतिक है जिसमें ऐसे ऐसे हजारों लाखों एवं करोड़ों ब्रह्मांड है जिस तरह फास्ट में अग्नि और तिल में तेल रहता है उसी तरह सुबह प्रकाश चेतन आत्मक व्यापक पुरुष प्रधान में स्थित है जिस प्रकार जल के संगम से वायु सैकड़ों जल के कारणों को धारण कर लेता है उसी तरह प्रभु श्री हरि विष्णु जी की शक्ति भी प्रधान रूप में जगत को धारण करती है अपने 20 से अन्य वृक्ष के उत्पन्न होने से जिस प्रकार पूर्व पक्षी की कोई क्षति नहीं होती उसी प्रकार अन्य प्राणियों के उत्पन्न होने से उनके जन्मदाता प्राणियों का हाथ नहीं होता जिस प्रकार आकाश और काल आदि संधि मात्र से ही वृक्ष श्री हरि विष्णु जी भी बिना परिणाम के ही 20 व के कारण होते हैं ऐमोनी सत्तम जिस तरह धान के बीज में मूल नाल पत्ते अंकुर मैं थाना पोस्ट पोस्ट श्री डांडुपुर और कर्ण सभी रहते हैं और जल भूमि आदि के मिलते ही वे सब प्रकट हो जाते हैं उसी प्रकार आपने अनेक पूर्व कर्मों में स्थिर देवता आदि विष्णु शक्ति का आश्रय पाने पर प्रकट हो जाते हैं जिनके द्वारा यह समस्या उत्पन्न हुआ है जो स्वयं जगत स्वरूप में स्थित है जिसमें यह स्थित है तथा जिसमें यह लीन हो जाए वह परम ब्रम्ह श्री प्रभु श्री हरि विष्णु जी है ब्रह्मा जी विष्णु का परम धाम है वह पद सत्य एवं असत्य दोनों का विलक्षण है तथा उसमें अभिन्न हुआ कि यह समस्त चराचर जब उससे उत्पन्न हुआ है वही अध्यक्ष मूल प्राकृतिक है वही अध्यक्ष रूप संसार है यह समस्त संसार अंत में उसी में लीन हो जाता है तथा उसी के आश्रय स्थित है वह परम ब्रह्मा हे भगवान हरि है
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O Maithili, thus I have called you the people and the Britain of Patal, the expansion of this universe is only that now like the center of the universe, it is surrounded by egg cut from above and below. Pradhan Amrit has kept it eternal and it never ends and it is numberless because that end is the cause of non-cooperation and the whole world, whereas it is natural in which there are thousands of millions and crores of universes, just as there is fire in a fast and oil in a sesame seed, in the same way the morning light conscious soul is situated in the vast Purusha Pradhan, just as the air from the confluence of water holds the causes of hundreds of waters, similarly the power of Lord Shri Hari Vishnu ji also holds the world as the main form by the birth of 20 other trees from it. Just as there is no harm to the former bird, in the same way, the birth of other creatures does not affect the creatures that give birth to them, just as the tree Shri Hari Vishnu ji also becomes 20th without any result due to the combination of sky and time etc., just as in the seed of paddy, the roots, leaves, sprouts remain in the police station, post post, Shri Dandupur and Karna, and they all appear as soon as they get water, land etc., in the same way, when you get the shelter of Vishnu Shakti, stable in many past deeds, they appear. by whom this problem has arisen who is situated in the form of the world itself in which it is located and in whom it is absorbed that is Param Brahma Shri Prabhu Shri Hari Vishnu ji Brahma ji is the supreme abode of Vishnu that post is singular of both true and untruth and it is inseparable that all this pastimes when it is born from it is the same presiding deity, the presiding form is the world.
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