मैथिली जी बोले हे मुन्नी आपने जो प्रभु श्री हरि विष्णु जी का परम पद कब्रिस्तान कहां है वह चार प्रकार का कैसा है कृपया करके आप मुझे विधि पूर्वक कहें श्री पराशर जी बोले हैं मैथिली समस्त वस्तुओं का जो कारण होता है वह उनका साधन भी है तथा आपने निश्चित वस्तुओं की सीधी की जाती है वह शादी होती है मुक्ति प्राप्ति की इच्छा वाले योगी जन के लिए प्राणायाम आदि साधन है एवं भ्रम परब्रह्मा श्री सत्य है जहां से फिर लौटना नहीं पड़ता यमुने जो योगी की मुक्ति का कारण है वह साधन आलम ज्ञान ही उस परम पद का पहला भेद है क्लेश बंधन से मुक्ति पाने के लिए योग अभ्यासी योग का संध्या स्वरूप जो ब्रह्मा है उसका ज्ञान ही आमला वन विज्ञान नामक दूसरा भेद है इन दोनों साहब यह साधनों का अवैध पूर्वक जो आदित्य मन ज्ञान है वही मैंने तीसरा वेद बताया है यह महामुनि इस बातें की गई तीनों ज्ञानो की विशेषताओं का निराकरण करने के बाद अनुमत होने वाले आत्मा रूप के सदृश्य ज्ञान में प्रभु श्री हरि विष्णु जी हैं वह ब्रह्मा नाम का ज्ञान उसका चौथा वेद है एफबी पर जो योगी जन अन्य ज्ञानो को छोड़कर इस चौथे भेद में लीन हो जाते हैं वह संसार के अंदर बीजारोपण रूप कर्म करने में वसंत रहित होती है अर्थात वह लोक संग्रह के लिए कर्म किया करते हैं तभी भी उनको कर्मों का कोई पाप पुण्य नहीं मिलता इस तरह का वह निर्मल नित्य पावक आश्रय और संपूर्ण के गुणों से रहित विष्णु नामक परम पद है पुणे पाप का नाश और क्लेश की निर्मित होने पर जो अति निर्मल हो जाया करता है वही योगी उस परम ब्रह्मा का आश्रय लेता है जहां से फिर लौटना नहीं पड़ता उस ब्रह्मा के मुहूर्त और अमूर्त दो रूप है जो अक्सर और अक्षर स्वरूप से संपूर्ण प्राणियों में स्थित है अक्षर कि वह परमब्रह्मा एवं समस्त जग है जिस तरह एक देसी आदमी का प्रकाश सर्वत्र फैला रहता है उसी तरह समस्त जग परम ब्रह्मा विष्णु की ही शक्ति है हे मैथिली आदमी की संप्रभुता और धूर्तता के भेद से जिस प्रकार उसके प्रकाश में भी अधिकता और न्यूनता का वेद रहता है उसी तरह ब्रह्मा शक्ति से भी तार माय ब्रह्मा विष्णु और शिव ब्रह्मा प्रधान सत्य है उसे न्यूज़ देवगढ़ है तथा उसमें दक्ष आदि प्रजापति गण है उनसे भी न्यून नीचे मानव पशु पक्षी मरीज और सिर्फ आदि है उनसे भी अधिक नींद वक्त गुलाम एवं लता दी है अता हे मुनिवर उत्पन्न होना छुप जाना जन्म और ना शादी विकल्प युक्त भैया समस्त जगत वास्तव में नित्य और अक्षय है सर्वशक्तिमान प्रभु श्री हरि विष्णु जी की ब्रह्मा के स्वरूप हैं मुहूर्त रूप है जिसका चिंतन योगी जन योगाभ्यास से पूर्व करते हैं हे मुनि जिसमें मन को इस प्रकार से निरंतर एकाग्र करने वाले का अल्प माय युक्त स्विच महायोग की प्राप्ति होती है हे मां भाग वह सर्व भ्रम हमारे प्रभु श्री हरि विष्णु जी संपूर्ण परा शक्तियों में प्रधान और ब्रह्मा के अति निकटवर्ती मुहूर्त ब्रह्म स्वरूप है यह मुनि उन्हीं में तो यह समस्त जगत hot.pot है उन्हीं से उत्पन्न हुआ है उन्हीं में स्थिर है और वही वही समस्त जगत है सरासर मैं प्रभु श्री हरि विष्णु जी इस मनुष्य प्रकृति में समस्त जब को अपने आभूषण और आयुध रूप से धारण करते हैं हे दिज मैंने इस तरह तुमसे इस पुराण के प्रथम और अंश का वर्णन किया है जो भी मनुष्य का श्रवण करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है 12 वर्षों तक कार्तिक माह में पुष्कर क्षेत्र में स्नान करने से जोक फल प्राप्त होता है वह समस्त मनुष्यों को मात्र इसके श्रवण करने से ही मिल जाता है देव ऋषि गंधर्व प्रीत और यक्ष आदि की उत्पत्ति का श्रवण करने वाले मनुष्य को हुए देव आदि वर प्रदान करते हैं
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Maithili ji said, O Munni, where is the graveyard of Lord Shri Hari Vishnu ji, what are the four types, please tell me methodically. Certain things are straightened by you, that is marriage, Pranayama etc. is the means for the Yogi who wants to attain liberation, and illusion is Parabrahma Shri Satya, from where there is no return, Yamune, which is the reason for the salvation of the Yogi, that means is Alam Gyan. The first distinction of that ultimate position is the practice of yoga to get freedom from the bondage of tribulation. The knowledge of Brahma, which is the evening form of yoga, is the second distinction called Amla forest science. It has been told that this Mahamuni is Lord Shri Hari Vishnu ji in the knowledge similar to the form of the soul, which is allowed after eliminating the characteristics of the three knowledge, that the knowledge of the name of Brahma is his fourth Veda. They get engrossed in this fourth difference, they are springless in doing work in the form of sowing seeds inside the world, that is, they do work for public collection, even then they do not get any sin and virtue of their deeds. Vishnu, who is devoid of the qualities of the whole, is the supreme post, the one who becomes very pure after the destruction of sin and the creation of tribulation, the same Yogi takes shelter of that Supreme Brahma, from where he does not have to return again, the two forms of that Brahma's auspicious and abstract. which is situated in all beings often and in Akshar form Akshar that he is the Parambrahma and the whole world just as the light of a native man pervades everywhere, in the same way the whole world is the power of Param Brahma Vishnu O Maithili man of sovereignty and slyness Just as there is a Veda of superiority and inferiority in its light, in the same way, in the same way, Brahma Vishnu and Shiva are Brahma Pradhan Satya. And only Adi is more sleepy than that, Time has given me a slave and a creeper, Ata O Munivar to be born, to hide birth and no marriage option brother, the whole world is in fact eternal and inexhaustible, Almighty Lord Shri Hari Vishnu's form of Brahma is an auspicious form Whom the yogis contemplate before the practice of yoga, O sage, in which the one who concentrates the mind continuously in this way, the switch with little illusion, Mahayoga is attained. This Muni is the form of Brahma, this Muni is in him only, this whole world is hot. And wearing the form of weapon, I have thus described to you the first and part of this Purana, whoever listens to the man becomes free from all sins by bathing in the Pushkar area in the month of Kartik for 12 years. Joke fruit is obtained, it is available to all human beings only by listening to it. Dev Rishi Gandharva, who listens to the origin of Preet and Yaksha etc.
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