श्री विष्णु पुराण कथा अध्याय 17 भाग 3



श्री पाराशर जी ने कहा हे मैथिली वाला पहलाद के मुख से यह शब्द सुनते ही सारे देते गण अर्थशास्त्र क पर चारों तरफ से प्रहार करने लगे लेकिन प्रभु भक्त बाला बाला 10 सत्रह का आघात होने पर भी उनको तनिक भी सी भ वेदना ना हुए तो वैसे के वैसे ही नवीन बाल संपन्न खड़े मुस्कुराते रहे तू बोला रे दुर्बुद्धि आप तो मेरी भी पक्षी की सूती करना छोड़ दें या माइक को अभय दान प्राण दान देता हूं आप और अधिक नादान ना बन पहलाद जी बोले हे तात जिनके मात्र स्मरण से ही जन्म सहारा एवं मृत्यु आदि संपूर्ण भारत दूर हो जाते हैं और समस्त बिहारी के हृदय में स्थित रहते हुए मुझको किसी प्रकार का भय रह सकता है देते राज हिरण का सबसे सुला रह अरे सर पर इस अज्ञानी और दुराचारी बालक को अपने 20 आदमी संतृप्त में से काट कर डांस कर शीघ्र ही जान से मार दो श्री पराशर जी बोले देखते राज की आज्ञा सुनते ही अति क्रूर अति निर्दई गिरधर तक्षक आदि संतों ने पहलाद के समर्थकों को अंडर्सा किंतु उन्हें तो प्रभु श्री हरि विष्णु जी का स्वागत रहने के कारण उन सड़कों के धरने पर भी अपने शरीर की कोई सुधि ना रह पाए सर बोले हे देवराज देखो हमारी गाड़ी टूट गई उमरिया सटक गई हमारे फन फूटने लगे और हिर्दय कांपने लगे लेकिन इनकी त्वचा चमड़ी तो जरा भी नहीं कटपड़ी हम या कार्य नहीं कर सकते आप हमें कोई और कार्य बताएं हिरण कश्यप शिशु बोला है क्या जो तुम सब आपने पहने नुकीले दातों के इस बालक को शीघ्र ही मार डालो श्री पराशर जी बोले देते राज किया गया सुनते ही पर्वत शिखर के सामने विशाल काया हाथियों ने उस बालक पहलाद को पृथ्वी पर पटक कर आपने धातु व पैरों से रौंदा किंतु प्रभु श्री हरि विष्णु जी की कृपा से मन ही मन उनका स्मरण करते रहने से 1 हाथियों के हजारों दांत पहलाद जी के वक्षस्थल से टकराकर टूट गए तब बालाजी अपने पिता हिरण कश्यप जी सूजी से बोले पिता श्री ए इन विशालकाय आदमियों के वजीर समान कठोर दांत जॉब मुझ से टकराकर टूट गए हैं इसमें मेरी कोई शक्ति काम नहीं कर रही है यह तो प्रभु श्री हरि विष्णु जी को सच्चे मन से स्मरण करने वाले का ही प्रभाव है किरण कश्यप शिशु बोला अरे धीरज तुम सब यहां से चले जाओ इधर गानों तुम अग्नि जलाओ और है पवन देव तुम अग्नि को लपट दाल बनाओ जिससे या अग्नि इस पापी को जला डाले सिलपरा सर जी बोले हैं मैथिली तीर्थराज का आदेश सुनते ही समस्त दानव गढ़ ने काट के एक बड़े से ढेर से बालाजी को बिठा कर आग लगा दिया पहलाद जी बोले हे तात पवन से प्रेरित हुए यह अग्नि मुझे नहीं चला पा रही है मुझे तो समस्त दिशाएं ऐसी शीतल ठंडी प्रतीत हो रही है जैसे मेरे चारों तरफ कमल ही कमल पीछे हुए हो श्री पराशर जी बोले इसके पश्चात सूरज जी के बड़े पुत्र वागनी महात्मा पुरोहित का सम्मान निधि द्वारा वैद्यराज की प्रशंसा करते हुए बोले

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Shri Parashar ji said, O Maithili Wala, on hearing these words from the mouth of Pahlad, all the devotees started attacking the Arthashastra from all sides, but Lord devotee Bala Bala did not feel the slightest pain even after being hit by 10 seventeen. Just like that, you kept smiling while having new hair, you said, you fool, you should stop cottoning my bird too, or I will donate my life to Mike, don't be more innocent, Pahlad ji said, O father, whose birth is supported only by remembering And death etc., the whole of India goes away and while being situated in the heart of all Biharis, I can have any kind of fear. Dete Raj Deer may be the most sleepy. Dance and kill immediately, Mr. Parashar said, as soon as he heard the order of the king, very cruel, very merciless, Girdhar Takshak, etc. saints underpowered the supporters of Pehlad, but because of the welcome of Lord Shri Hari Vishnu, they were on strike on those roads. Couldn't even remember his body Sir said, O Devraj, look, our car broke down, Umaria got stuck, our hair started bursting and heart started trembling, but their skin was not cut at all, we can't work or you can tell us some other work. Deer Kashyap baby has said, what all of you are wearing this child with sharp teeth, kill this child soon. Trampled by the feet, but by the grace of Lord Shri Hari Vishnu ji, by remembering him in the mind, 1 thousand teeth of elephants collided with Pahlad ji's chest and broke. Job's hard teeth like a minister have been broken after colliding with me, no power of mine is working in this, this is only the effect of one who remembers Lord Shri Hari Vishnu ji with a true heart. Here you sing songs, you light the fire and you are the wind god, you turn the fire into a light pulse, so that the fire can burn this sinner. Silpara sir ji has said that on hearing the order of Maithili Tirtharaj, all the demons cut the fortress and put Balaji on fire from a big pile. Pahlad ji said, O father, inspired by the wind, this fire is not able to burn me, I am feeling such coolness in all the directions, as if there are lotuses all around me, Shri Parashar ji said, after this Suraj ji's big Son Vagni Mahatma Purohit's Samman Nidhi spoke in praise of Vaidyaraj

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