श्री पराशर जी बोले थे मैथिली या सुनकर दैत्य राज हिरण कश्यप शिशु क्रोध से आगबबूला होकर पोत से नेत्र लाल कर पहला हाथ के गुरु की और देख कर कहते हुए होठों से बोला अरे दुर्बुद्धि ब्राह्मण यहां क्या है तूने मेरी आज्ञा इस बालक को मेरे दीपक जी की स्तुति की शिक्षा दी है गुरु ने कहा देते राज आप मुझ पर व्यर्थ ही कॉल कर रहे हैं क्योंकि आपका पुत्र हूं मेरी सिखाई हुए बात आपको नहीं बता रहा है किरण कश्यप शिशु बोला पुत्र पहलाद तुम्हारे गुरु जी कह रहे हैं कि उन्होंने तुम्हें यह शिक्षा नहीं दी फिर तुम सच सच बताओ कि तुमको यह शिक्षा किसने दी पहलाद बोले यह पित मन में स्थित प्रभु श्री हरि विष्णु जी ही तो मेरा संपूर्ण जगत के उपदेशक हैं उन परम पिता परमेश्वर को छोड़कर और अन्य कौन किसी को कुछ सिखा सकता है हिरण कश्यप सुसु बोला अरे मूर्ख कौन है वह भी सुनो जिसका तू जगदीश्वर के सामने ऐसा बारंबार वर्णन कर रहा है बालाजी बोले जो योगियों के ध्यान करने योग्य है जो स्वयं जगत रूप हैं जिनसे इस जगत की उत्पत्ति हुई है और जो स्वयं भी स्वरूप है वह परमपिता परमेश्वर ही श्री विष्णु भाई हिरण कश्यप शिशु बोला रे मूर्ख मेरे जीवित रहते हुए कौन दूसरा परमेश्वर कहा जा सकता है तो फिर भी मौत के मुंह में जाने की इच्छा से बार-बार ऐसा उल्टा सीधा बक रहा है पहलाद जी बोले हे तात आप क्योंकि व्यर्थ स्रोत करते हैं आप तो प्रसन्न होइए वह ब्रह्म भूत प्रभु श्री हरि विष्णु जी केवल मेरे ही नहीं वहां तो संपूर्ण प्रजा तथा आपके भी करता है हिरण कश्यप स्वीटू बोला अरे कोई पापी इस दुर्बुद्धि बालक के हृदय में आसींद हो गया है जिसके प्रभाव से या ऐसा अशुभ वचन बोलता है पहलाद जी बोले हे पिता श्री प्रभु श्री हरि विष्णु केवल मेरे मन में ही नहीं बल्कि संपूर्ण लोकों में स्थित है वह स्वर्ग हमें तो मुझको आप सबको तथा समस्त प्राणियों को अपने अपने प्रयत्नों में प्रयुक्त करते रहते हैं हिरण कश्यप जी सो बोला इस पापी को और इसके गुरु दोनों को यहां से ले जाकर इसकी भली प्रकार शासन करो इस बुक दुर्ग दुर्ग मति को ना जाने किस ने मेरी विपक्षी की प्रशंसा करने सिखा दिया है श्री पराशर जी बोले हैं मैथिली उसके ऐसे काम होते ही देखते गाना बालक पहलाद को फिर से गुरु के यहां ले गए और वे वहां गुरु जी की सेवा शुरू से करते हुए विद्या अध्ययन करने लगे बहुत काल व्यतीत हो जाने पर दैत्य राज किरण कश्यप शिशु जी ने अपने पुत्र पहलाद को फिर महल में बुलाया और कहा पुत्र आज कोई कथा सुनाओ पहलाद जी बोले जिन से प्रधान पुरुष तथा इस चराचर विश्व उत्पत्ति हुई है वह प्रभु श्री हरि विष्णु जी हम पर प्रसन्न हो हिरण कश्यप शिशु मौला हरे यह बालक बड़ा दुरात्मा है महा डालो इसे आप इस के जीने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि आपने पक्ष की हनी करने वाले होने से यह तो आपने उसके लिए अंगार रूप हो गया है श्री पराशर जी बोले थे 13 हिरण कश्यप शिशु की आज्ञा सुनते ही सैकड़ों हजारों देते गण विशाल अस्त्र शास्त्र लेकर पहलाद को मारने के लिए तैयार हो गए उन सब देते गणों के हाथ में विशाल अस्त्र-शस्त्र देखकर पहलाद जी जरा बिना विचलित हुए और उन देते गांव से बोले अरे देश क्यों प्रभु श्री हरि विष्णु जी तो शास्त्रों में तुम लोगों में और मुझ में सब जगह बसते हैं इस सत्य के प्रभाव से तुम्हारे इन विशाल अस्त्रों शास्त का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं होगा
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Mr. Parashar ji had said Maithili or listening to the demon king deer Kashyap, the child became furious with anger, turning his eyes red with the vessel and looking at the first hand guru, he said with his lips saying, O foolish Brahmin, what are you here, my order to this child, my Deepak ji Kiran Kashyap Shishu said son Pahlad your teacher is saying that he taught you this lesson Did not give, then you tell the truth, who gave you this education? Prahlad said, this father, Lord Shri Hari Vishnu ji, who is present in the mind, is my preceptor of the whole world, except that Supreme Father Supreme God and who else can teach anything to anyone? Hiran Kashyap Susu said, oh who is the fool, listen to that which you are describing so repeatedly in front of Jagadishwar. Hi Shri Vishnu Bhai Hiran Kashyap Shishu said O fool, who can be called another God while I am alive, yet with the desire to go to the mouth of death, Pahlad ji said this again and again, O Tat, because you are a useless source. If you do, then be happy that Brahma Bhoot Prabhu Shri Hari Vishnu ji is not only for me, but the whole people and you also do it. Pahlad ji said, O father Shri Prabhu Shri Hari Vishnu is not only in my mind but in all the worlds, that heaven keeps on using us, me, you, all of you and all the living beings in their own efforts. Hiran Kashyap ji said this Take away both the sinner and his teacher from here and rule him well. This book Durg Durg Mati don't know who has taught me to praise my opponent. Again he was taken to the Guru's place and he started studying education while serving the Guru from the beginning. After a long time, the demon King Kiran Kashyap Shishu ji again called his son Pahlad to the palace and said, "Son, tell me a story today." Pahlad ji said, Lord Shri Hari Vishnu ji, from whom the prime man and this charachar world originated, be pleased with us. Shri Parashar ji had said that being the one who does honey, 13 thousands of Dete Ganas got ready to kill Pahalada with huge weapons as soon as they heard the orders of Hiran Kashyap Shishu. Seeing huge weapons in me, Pahlad ji did not get distracted and said to the village, Oh Lord, Lord Shri Hari Vishnu ji; won't affect me
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