श्री विष्णु पुराण कथा अध्याय 15 का भाग 4



हे प्रभु बाल विधवा होने के कारण मेरा जन्म व्यर्थ है हे परमपिता परमेश्वर मैं इतनी अभागिन हूं कि पुत्र हिंद ही उत्पन्न हुई अतः हर जन्म में मेरे बड़े प्रशंसनीय पति को और पुत्र ब्रह्मा जी के समान हो आपके प्रसाद से मैं भी पुल सील अवस्था सत्य कार्यकुशलता अविश्वास खेता उल्टा ना कहना शीघ्र करता कृत करता तत्व और बुद्धि सेव आदि गुणों से तथा दिव्य रूप संपत्ति से संपन्न तथा सर्वप्रिय तथा माता के गर्भ से जन्म लिए बिना उत्पन्न होंगे सोमदेव बोले उसके ऐसा कहने पर वर दायक देवाधिदेव प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने प्रणाम के लिए झुकी उस बाला को उठाकर कहा भगवान भोले तेरे एक ही जन्म में बड़े पराक्रमी तथा विख्यात कर्मवीर दस्पति होंगे फिर सुबह ने उस समय तुझको प्रजापति श्री ब्रह्मा जी के समान महावीर अत्यंत बलशाली पुत्र भी प्राप्त होगा जो इस संसार में अनेकों वंशजों को चलाने वाला होगा तथा उसकी संताने संपूर्ण तीन लोक में फैल जाएंगे तू भी मेरी कृपा से उदार रूप गुण वाली सुशील संपन्ना तथा मनुष्य के चिंतन मन को प्रसन्न करने वाली माता के गर्भ से जन्म लिए बिना आयोजित आ ही उत्पन्न हो गई है राजपूतों उस बाला को यह वरदान देकर प्रभु श्री हरि विष्णु जी अंतर्ध्यान होगी तथा वहीं यह मारिसा के रूप में उत्पन्न हुए तुम्हारे पत्नी श्री पराशर जी बोले टापरा चेतावनी सोमदेव के यह सब कहने पर अपना क्रोध शांत किया तथा उस मारिशा को वृक्ष से पत्नी रूप में ग्रहण किया उन दसों प्रचेता ओं द्वारा मारिसा के गर्व से महाभारत प्रजापति पुत्र पुत्र हुए जो पहले ब्रह्माजी से उत्पन्न हुए थे यह महत्वपूर्ण दक्ष प्रजापति ने श्री ब्रह्मा जी की आज्ञा का पालन करते हुए स्वर्ग रचना के लिए उधर तयार होकर उनकी स्वयं अपनी दृष्टि बढ़ाने और संतान उत्पत्ति के लिए ऊंच नीच तथा द्विपद चतुर पद नाना प्रकार के जीवो को पुत्र रूप से उत्पन्न किया दक्ष प्रजापति ने पहले मन से ही सृष्टि करने के पश्चात फिर स्कूलों की उत्पत्ति की उनमें से 10 धर्म को तथा 13 कश्यप को दिए 27 स्त्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ कर दिया फिर उन्हीं से देवता देवता नाथ गांव पक्षी गंधर्व अप्सरा नाग तथा दानव आधी उत्पन्न हुए हे मैथिली दक्ष के समय अर्थात दक्ष काल से ही प्रजा का महत्व अर्थात कि स्त्री-पुरुष संबंध द्वारा उत्पन्न होना आरंभ हुआ उनसे पूर्वा तो अत्यंत तपस्वी प्राचीन सिद्ध पुरुषों के तपोबल से उनके संकल्प दर्शन या स्पर्श मात्र से ही प्रजा उत्पन्न होती थी श्री मैथिली जी बोले हे महामुनी मैने तो यह सुन रखा था कि दक्ष का जन्म तो श्री ब्रह्मा जी के दाय अंगूठे से हुआ था फिर दक्ष सदस्यों के पुत्र किस प्रकार बने तथा हुए सोमदेव के ढकेल से होकर भी हुए उनके चतुर किस प्रकार हुए मुझे बताने की कृपा करें श्री पराशर जी बोले हैं मैथिली प्राणियों की उत्पत्ति दशनाक प्रवाह रूप में निरंतर हुआ करके इस विषय में पेशियों तथा अन्य दिव्य दृष्टि पुरुषों को जरा सा भी मुंह नहीं होती है कि मुनि श्रेष्ठ दत्त आदि युग युग में होते हैं और अंत में फिर लीन हो जाते हैं इस में विद्यमान को किसी भी प्रकार का कोई भी संडे नहीं होता है इनमें पहले किसी तरह की जेस्टर अथवा कटिंग का भी नहीं थी उस समय तपस्या और प्रभाव ही उसके जैसा का कारण होता था श्रीमती जी बोले हैं ब्राह्मण गंधर्व स्टार तथा राक्षस की उत्पत्ति का विस्तार से बताने की कृपा करें

TRANSLATE IN ENGLISH 

O Lord, because of being a child widow, my birth is in vain, O Supreme Father God, I am so unfortunate that only son Hind was born, so in every birth, my praiseworthy husband and son should be like Brahma ji. Unbelief Kheta does not say the opposite, works quickly, does good deeds and is blessed with divine qualities, divine form and wealth, and will be born without taking birth from the mother's womb. He raised the girl who bowed down and said, Lord Bhole, you will be very mighty and famous Karmaveer Daspati in one birth, then at that time in the morning, you will also get a Mahavir very strong son like Prajapati Shri Brahma ji, who will run many descendants in this world. Rajputs, this boon has been born to that boy, without taking birth from the womb of a mother who pleases the mind of a human being. Prabhu Shri Hari Vishnu ji will be enlightened by giving and there your wife Shri Parashar ji was born in the form of Marisha. Tapra warned Somdev to calm his anger on saying all this and took that Marisha from the tree as his wife. Mahabharat Prajapati's son was born from the pride of Marisa by Marisa, who was born from Brahmaji, this important Daksh Prajapati obeying the order of Shri Brahma ji, getting ready there to create heaven, he himself went up and down to increase his vision and progeny. And Dwipad Chatur Pad created different types of creatures in the form of a son. Daksh Prajapati, after first creating from the mind, then created schools, out of which 10 were given to Dharma and 13 to Kashyap, then married 27 women to the moon. It is from them that the deities, deities, villages, birds, Gandharvas, Apsaras, snakes and half-demons were born. At the time of Maithili Daksha, that is, from the time of Daksha itself, the importance of people, that is, the creation of man-woman relationship started before them, because of the penance of extremely ascetic ancient proven men. Subjects used to be born only by his resolution, Darshan or touch Shri Maithili ji said O great sage, I had heard that Daksh was born from the right thumb of Shri Brahma ji, then how Daksh became the son of the members and Somdev. Shri Parashar ji has said that the origin of Maithili creatures has been continuous in the form of Dashnak flow, in this subject the muscles and other divine vision men do not even face that Muni Shrestha Dutt etc. exist in every era and merge again in the end. In this there is no Sunday of any kind. Earlier there was no jester or cutting. The reason used to be Mrs.ji said please tell in detail the origin of Brahmin Gandharva Star and Rakshasa

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ