श्री विष्णु पुराण कथा अध्याय 15 का भाग 3



यह महर्षि ओ सुंदरी प्रतियोगिता से जब तक होश में क्रोध युक्त वचन कहते रहे तब तक वह भाई के कारण पसीने से थक हरा कर कहती रही उपविजेता सुंदरी से ऋषि कांडू अपने क्रोध पूर्वक कहा अरे मेरे सामने से चली जा चली जा सोम ने कहा ऋषि कांडू द्वारा बार-बार फटकारे जाने पर वह उस आश्रय से बाहर निकली और आकाश मार्ग से जाते हुए उसने अपना पसीना वृक्ष के पत्तों से पूछा हुआ प्रचेता अप्सरा वृक्षों के नए लाल-लाल पत्तों से अपने पसीने से भीगे हुए शरीर को पुष्टि हुई एक वृक्ष से दूसरे भी छत पर चलती चली गई ऋषि ने उसके शरीर में जो गर्व स्थापित किया था वह भी निकाले हुए पसीने के रूप में उसके पेट से बाहर निकल गया पेट से निकलते हुए गर्व को भिक्षुओं ने ग्रहण कर लिया उनको वायु में एकत्रित कर दिया तथा मैंने अपनी किरणों द्वारा उसे घोषित किया जिससे वह धीरे-धीरे बढ़ने लगा वृक्ष आगरा से उत्पन्न हुए वह मारिसा नामक सुमुखी कन्या तुमको वृक्ष गण प्रदान करेंगे इसलिए अब आप अपने क्रोध को शांत कीजिए इस तरह वृक्षों से उत्पन्न हुए व कन्या प्रतियोगिता की पुत्री है तथा कांडू कमीनी कि मेरी तथा वायु की भी संतान है श्री पराशर जी बोले तब यह सोच कर कि प्रचेता गण योग भ्रष्ट की कन्या हो जाने से मरीजों को अग्र ना समझें सोमदेव ने कहा साधु में श्रेष्ठ कंदूक प्रभु की तपस्या मीणा हो जाने से प्रभु श्री हरि विष्णु जी की पुरुषोत्तम क्षेत्र नामक निवास भूमि को गया है राजपूतों वहां पर वह महायोगी एक निष्ठा होकर एकाग्र चीन से ब्रह्मा मंत्र को जाते हुए उद्धव बहू रहकर प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना करने लगे प्रचेता गण बोले हम पंडित मुनि का प्रवाह नामक हुआ मंत्र सुनाना चाहते हैं जिसको तब जब करते हुए कंधों अपने प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना की थी सोमदेव बोले हे राजपुत्रो वह इस मंत्र इस प्रकार है प्रभु श्री हरि विष्णु जी अनंत है सत्य रूप है प्रभु श्री हरि विष्णु जी संसार मार्ग की अंतिम अवधि है उसका पार पाना कठिन है तथा निष्ठा महात्मा वे को ही वे प्राप्त हो सकते हैं और भक्तों के पालक एवं उनके अवस को पूर्ण करने वाले हैं क्योंकि वे कारण पंचभूत के कारण पंचामृत के हेतु ताम्रकार और उनके ही हेतु महत्व के हेतु प्रधान के भी परम हेतु हैं और इस प्रकार संपूर्ण कार्य और करता आदि के सहित रूप से स्थिर शक्ल रजिता का पालन करते हैं ब्रह्मा श्री प्रभु है ब्रह्मा ही सर्व जीव रूप है और ब्रह्मा है शक्ल प्रजा के रक्षक अविनाशी एवं विष्णु रूप है वह ब्रह्मा अब यह नित्य तथा आजम है और वही छाए आधी सारे विकारों से रिक्त विष्णु है हुए अक्षय अजय तथा नित्य ब्रह्म ही पुरुषोत्तम प्रभु श्री हरि विष्णु जी हैं उनका भक्त होने के कारण मेरे रोग आदि दो शांत हो ब्रह्मा पार नामक परम स्रोत का जाप करते हुए प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना करने से उनका मुनीश्वर ने परम सिद्धि प्राप्त हुई जो व्यक्ति प्रतिदिन इस स्रोत को पड़ता या सुनता है वह हमारी शक्ल दोषों से मुक्त होकर अपना मनोवांछित फल प्राप्त पता है मैं अब तुम्हें यह बतलाता हूं कि मारिया पूर्व जन्म में कौन थी यह बता देने से तुम प्रजापति रूप फल प्राप्त कर सकोगे मारिसा अपने पूर्व जन्म में एक महारानी थी पुत्र हिंद अवस्था में ही इसके पति का देहांत हो गया था पति के देहांत के पश्चात इस महा भाग्य ने अपने भक्ति भाव से प्रभु श्री हरि विष्णु जी की आराधना की उनकी आराधना से प्रसन्न होकर प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने उसे साक्षात दर्शन देकर कहा यह सुबह मैं तेरी आराधना से प्रसन्न हूं वर मांगो उसने प्रभु श्री हरि विष्णु जी को अपने मन की अभिलाषा को इस प्रकार कहे

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As long as this Maharishi O Sundari kept on uttering angry words in her senses, till then she kept on saying out of sweat because of her brother; Reprimanded again and again, she came out of that shelter and on her way to the sky, she shed her sweat from the leaves of the tree. The other also went on walking on the terrace. The pride that the sage had established in his body also came out from his stomach in the form of sweat. Declared it by his rays, so that it started growing slowly. The tree originated from Agra, that beautiful girl named Marisa will give you the status of a tree, so now calm your anger. Shri Parashar ji said that the rascal has children of mine and Vayu too. Then thinking that Pracheta Gana Yoga has become the daughter of the corrupt, do not consider the patients ahead. The Rajputs have gone to the abode of ji's Purushottam Kshetra, there that Mahayogi concentrated with one devotion, while going from China to Brahma Mantra, Uddhav started worshiping Lord Shri Hari Vishnu ji by remaining daughter-in-law. Whom do you want then when you worshiped your Lord Shri Hari Vishnu ji with your shoulders, Somdev said, O princes, this mantra is as follows Lord Shri Hari Vishnu Ji is infinite, the true form is Lord Shri Hari Vishnu Ji, the last period of the path of the world is his It is difficult to cross and they can be attained only by the faithful Mahatma and he is the protector of the devotees and fulfills their avas because he is the cause of Panchabhoot, for the Panchamrit, for the Tamrakar and for the importance of him, the prime minister is also the supreme. And in this way, the form of complete work and actions etc. follow the stable form of Rajita. The same Vishnu is free from half all the disorders, Akshay Ajay and Nitya Brahm is the Supreme Lord Shri Hari Vishnu ji, being his devotee, let my diseases etc. be cured, worshiping Lord Shri Hari Vishnu ji while chanting the supreme source named Brahma Paar By doing this, Munishwar attained the ultimate perfection. The person who recites or listens to this source every day, he gets his desired fruit by getting rid of our facial defects. I now tell you that by telling who Maria was in the previous birth, you You will be able to get the fruit of the form of Prajapati. Being pleased, Lord Shri Hari Vishnu ji appeared to him and said, this morning I am pleased to worship you, ask for a boon.

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