महाराज श्री के अभिषेक के लिए संपूर्ण समुद्र तथा नदिया समस्त प्रकार के रत्न और जल लेकर उपस्थित हुए उसी समय पितामह ब्रह्माजी ने अंगिरा देव गणों सहित और समस्त एतवार जहां प्राणियों ने वहां आकर महाराज वेन का पुत्र का राज्याभिषेक उत्पन्न कराया महाराज वेन का पुत्र के दाहिने हाथ तीन देखकर पिता मां श्री ब्रह्मा जी जान गए कि वह कि यहां प्रभु श्री हरि विष्णु जी का अंश है उन्हें परम आनंद हुआ या प्रभु श्री हरि विष्णु जी के चक्र का चिन्ह सभी चक्रवाती राजाओं के हाथ में होता है जिसका प्रभाव कभ देवताओं में उचित नहीं कर सकते इस प्रकार महा तेजस्वी एवं परम प्रतापी 1 पुत्र धर्म कुशल महात्माओं द्वारा विधिपूर्वक अति महान राज राजेश्वर पद पर आसीन हुए जिस प्रजा को उसके पिता ने ऑपरेशन किया था उसी प्रजा को उसने प्रसन्न किया है इसी कारण प्रसन्न अर्थात अनु राजन करने से उसका नाम राजा हुआ जब वे समुद्र में चलते थे तो पानी का प्रभाव बहना रुक जाता था पर्वत पहाड़ काटकर उसे मार्ग देते थे तथा उनकी ध्वजा कभी बंद नहीं हुए उनके राज की पृथ्वी बिना रोते हुए ही केवल चिंतन मात्र से ही अत्यंत उत्पन्न कर पाया देती है काहे कामधेनु रूप थी तथा पत्ते पत्ते में मधुर भरा रहा करता था राजा प्रीत में उत्पन्न होते ही पिता महायज्ञ किया जिससे शोभा दिवस के दिन सोफा भी वस्तु में से महामति स्थिति उत्पन्न हुई उसे महायज्ञ में मां का भी जन्म हुआ तब रिसीवर वरुण ने सूत्र और मांगो से कहा कि तुम प्रताप 114 महाराज प्रीत की स्तुति करो वहीं इसी योग्य है और तुम्हारे योग्य ही कार्य है मध्य और शुद्ध हाथ जोड़कर समस्त दृश्यो से बोले हे महाराज तो आज ही उत्पन्न हुए हैं हम इसके किसी भी धर्म को नहीं जानते और ना ही इसके कोई गुण प्रकट हुए हैं और ना इनका यस की ही फैला हुआ है फिर हम किस आधार पर इसकी स्तुति करें तब ऋषि बोले हैं महाबली चक्रवर्ती महाराज जियो जियो भविष्य में कर्म करेंगे तथा इनके जियो जियो भावी गुण होंगे उन्हीं के द्वारा तुम इनका इस दौरान करोगे श्री पराशर जी बोले यह सुनकर राजा प्रीत को परम संतोष हुआ और उन्होंने सोचा कि सद्गुणों के कारण ही मनुष्य प्रशंसा करने योग्य होता है अतः मुझको भी जोड़ उपार्जन करने चाहिए इसलिए अब यह जिन गुणों की स्थिति के द्वारा वर्णन करेंगे मैं भी सावधानीपूर्वक जैसे ही पुण्य कार्य करेंगे यदि ए यहां पर कुछ त्याग करने योग्य अवगुणों को भी कहेंगे तो मैं उन्हें अवश्य ही त्याग दूंगा राजा प्रीत ने अपने मन में निश्चय किया इसके पश्चात सूट और मग में महाराज प्रीत के भावी कर्मों के आश्रम से स्वर सहित भली प्रकार इस नामित किया उन्होंने कहा हे महाराज सत्यवादी दान शील पराक्रमी नौजवान और दुष्टों का दमन करने वाले हैं के धर्म यज्ञ कृतज्ञ दयावान मांगों का सम्मान करने वाले यज्ञ पर आसान साधु समाज में मानव प्रतिष्ठित पाने वाले तथा शत्रु तथा मित्र के प्रति एक समान व्यवहार करने वाले हैं इस तरह सूत्र और मग द्वारा कहे गए गुणों को राजा प्रीति ने अपने चीन में धारण कर लिया तथा उसी प्रकार के कार्य किए तब उन पृथ्वी पति राजा प्रीत ने पृथ्वी का पालन करते हुए बड़ी-बड़ी दक्षिणी वाले अनेक विशाल महायज्ञ के अराजकता के समय औषधियों अन्य आदि के नष्ट हो जाने के कारण प्रजा भूख से व्याकुल होकर पृथ्वीनाथ पृथ्वी के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लग राजा बोली है प्रजापति अराजकता के समय समस्त औषधियां अनादि कृति में आपने में विलीन कर ली है आपकी समस्त रजत क्षीण हो रही है हम लोग इस प्रकार जीवित रहेंगे विधाता ने हमको हमारा समस्त प्रजा का जीवन दायक प्रजापति बनाया है अतः भूख रूपी महा रोग से पीड़ित हम समस्त प्रजा को राजन आप जीवन रूप औषधि प्रदान करने की कृपा करें श्री पराशर जी को ले प्रजा जनों की विनती सुनकर राजा पृथ्वी पति प्रीत अपना आज भवन नामक दिव्य धनुष तथा द्वितीय भाग लेकर अत्यंत क्रुद्ध होकर पृथ्वी के पीछे दौड़े तब भय से अत्यंत व्याकुल हुए पृथ्वी गाय का रूप धारण कर दौड़ी और रक्षा के लिए ब्रह्म लोक आदि समस्त लोगों में कई समस्त भूतों को धारण करने वाले पृथ्वी जहां जहां भी पहुंची वहीं वहीं कुछ महाराज प्रीत को धनुष के बाढ़ लिए अपने पीछे आते हुए देखा तब उन प्रबल पराक्रमी महाराज प्रीत के बाहर के प्रहार से बचने की कामना से थरथर आती हुई पृथ्वी ने राजा से इस प्रकार कहा पृथ्वी ने कहा हे राजन आप मुझे मारने पर क्यों उतरे हो क्या आप इस्त्री वक्त का महत्व नहीं लगेगा राजा प्रीत बोले जहां एक अनार कारी का वध करने से अनेकों को सुख प्राप्त होता है तो उसे मार देना ही पूर्ण कार्य होता है पृथ्वी बोली हे राजन यदि आप अपनी प्रजा के हित के लिए कि मुझे मारना चाहते हैं तो मेरे मर जाने के पश्चात आपकी प्रजा किसके सहारे जीवित रहेंगे राजा प्रीत बोले अरे वाह सुंधरी आज्ञा को ना मानने वाले तुझे मार कर अपने योग बल से ही इस प्रजा को धारण करूंगा श्री पराशर जी बोले तब अत्यंत व्यथित एवं थरथर कांपते हुए पृथ्वी ने महाराज पृथ्वी पति को दुबारा प्रणाम करके कहा
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For the consecration of Maharaj Shree, the entire oceans and rivers appeared with all kinds of gems and water. At the same time, Pitamah Brahmaji along with Angira Dev Ganas and all the Atwars where the creatures came there and produced the coronation of the son of Maharaj Ven. Seeing three hands, father mother Shri Brahma ji came to know that there is a part of Lord Shri Hari Vishnu ji here, he was very happy or the symbol of Lord Shri Hari Vishnu ji's cycle is in the hands of all the Chakravati kings, whose effect is sometimes appropriate in the deities. In this way, Maha Tejasvi and Param Pratapi 1 son, who was lawfully installed on the post of great Raj Rajeshwar by religious skilled Mahatmas, he has pleased the same people who were operated by his father, that is why by making Anu Rajan happy The name became king, when he used to walk in the sea, the effect of water used to stop flowing, mountains used to cut mountains and give way to him and his flag never stopped, the earth of his rule, without crying, could generate a lot just by mere contemplation. Why Kamdhenu was in the form and the leaves used to be sweet in the leaves, as soon as the king was born in Preet, the father performed Mahayagya, due to which even the sofa on the day of Shobha day created Mahamati status. Said to Mango that you praise Pratap 114 Maharaj Preet, only this is worthy and only work is worthy of you. No virtues have manifested in him and neither his fame has spread, then on what basis should we praise him? King Preet was very satisfied after hearing this said Shri Parashar ji and he thought that a man is praiseworthy only because of his virtues, so I should also earn a lot, so now I will describe the qualities through which I will also be as careful as I am. Will do good deeds, if A says some demerits worth sacrificing here, then I will definitely sacrifice them. Did he say, O Maharaj, truthful charity, modesty, mighty youth and suppressor of the wicked, religious sacrifice, grateful, merciful, respecting the demands, a saint easy on the sacrifice, attaining human status in the society and treating the enemy and friend equally. Similarly, King Preeti imbibed the qualities said by Sutra and Maga in his china and did the same kind of work, then that husband of the earth, King Preet, following the earth, during the chaos of many huge mahayagyas of great south, medicines and other things. Due to the destruction of Adi, the people were distraught with hunger, Prithvinath went to the earth with folded hands and said, "Prajapati Prajapati, at the time of chaos, you have merged all the medicines in the eternal work, all your silver is getting depleted, we are like this. We will live, the creator has made us the creator of the life of all our subjects, therefore, Rajan, please provide medicine in the form of life to all the people who are suffering from the great disease of hunger. Today, taking the divine bow named Bhavan and the second part, being very angry ran after the earth, then very distraught with fear, the earth ran in the form of a cow and for protection, the earth, who holds many ghosts in all the people like Brahma Lok, wherever. Reached there and saw some Maharaj Preet coming behind him with a bow full of bow, then trembling with the desire to avoid the outside attack of that strong mighty Maharaj Preet, the earth said to the king in this way, the earth said, O king, you will kill me Why have you come down, will not the importance of ironing time be taken? If you want to kill me, then after my death, with whose help will your subjects survive, Raja Preet said, Oh wow, beautiful, who disobeyed you, I will kill you and hold this subject with my power of yoga. Prithvi bowed down again to Maharaj Prithvi Pati and said
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