विष्णु पुराण कथा अध्याय 13 का भाग 2

यह सब सुनने के बाद व्हेन बोला हे रिसीवड ओं ऐसा और कौन है जो मेरे लिए भी पूजनीय है जिसे तुम लोग ज्ञानेश्वर श्री हरी कहते हो आखिर कौन है वह राजा के शरीर में ब्रह्मा विष्णु महादेव इंद्र वायु एवं सूर्य अग्नि वरुण खाता पूसा पृथ्वी और चंद्रमा तथा इनके अतिरिक्त और जितने भी देवता हैं सभी राजा के शरीर में वास करते हैं इस तरह राजा सर्वर देव माय देव में होता है यह ब्राह्मण यह सब जानकर कि राजा में ही समस्त देवताओं का वास होता है ऐसा जानकर मैंने तुम्हें जो कुछ आज्ञा दिया उसका पालन करो कोई भी दान यज्ञ हवन आदि ना करें यह ब्राह्मणों जिस प्रकार की स्त्री का परम धर्म अपने पति की सेवा करना होती है वैसे ही आप लोग का धर्म मेरे आज्ञा का पालन करना ही है ऋषि गण बोले हे राजन आप ऐसे आज्ञा दीजिए जिससे कि धर्म का नाश हो देखिए यह समस्त संसार छवि यज्ञ में हवन हुई सामग्री का ही परिणाम है श्री पराशर जी बोले हैं मैत्री अपार खुशियों के इस प्रकार बारंबार समझाने और गाने सुनने पर भी जब राजा बने ऐसे आजा नहीं दी तो वे सब अत्यंत क्रुद्ध होकर आपस में कहने लगे इस पापी को मारो जो अन्यत्र यज्ञपुरुष देवाधिदेव प्रभु श्री हरि वष्णु जी की निंदा करता है वह आना चारी किसी तरह भी राजा पृथ्वी पति होने की योग्य नहीं है यह कहा कर मुनि गणों ने प्रभु की निंदा करके मरे हुए उस राजाओं को मंत्र से पवित्र किए इशारों द्वारा मार डाला है दीप राजा वेन के मरते ही उन दृश्यों में सब और बहुत उड़ती हुई धूल देखी धूल उड़ते देख उन दृश्यों ने आसपास रहने वाले लोगों से पूछा यह धूल कैसे उड़ रही है उन लोगों ने कहा राजा राज्य में राज विहीन हो जाने के कारण दीन दुखी लोग ने चोर डकैत बंद कर दूसरों की



 धन-दौलत लूटना शुरू कर दिया है ए मुन्नी वरुण तीव्र वेग वाले परमधाम हारी चोरों के उत्पात मचाने के कारण यह धूल उड़ रही है राजा वेन के कोई पुत्र आदि नहीं था जो उसके बाद राज सिहासन पर बैठकर राज चलता तब उन समस्त दृश्यों ने आपस में सलाहकार उस पुत्र हेमराज आविन की जनता को पुत्र उत्पन्न करने के लिए यज्ञ पूर्वक मंथन शुरू किया उसकी जान के माध्यम पर जले झूठों के समान अति कला अत्यंत नाटक और छोटे मुख वाला एक पुरुष उत्पन्न हुआ उत्पन्न होते ही उसे अति आतुर होकर उस समस्त विषयों से कहा मुझे क्या करना है ऋषि बोले निस्वार्थ बैठ वन इरशाद कहलाया इसी कारण उसे से उत्पन्न हुए लोग विंध्याचल निवासी बाप परायण निषाद गण बने उस निषाद रूप द्वारा से राजा भिन्न का समस्त पाप बाहर निकल गया अतः निष्पादन वेन के पापों का नाश करने वाले बने फिर उन विषयों के वेन के दाएं हाथ का मंथन किया जिनका मंथन करने से परम प्रतापी 121 त्रित उत्पन्न हुए जो अपने शरीर से प्रज्वलित अग्नि के समान यदि मान थे उसी समय आज गांव नामक सर्वप्रथम शिव धनुष तथा द्रव्यमान और कवच आकाश से गिरे जिनके गिरने से समस्त जीवों को अत्यंत आनंद हुआ और सुपुत्र के नाम लेने से ताजा बिंदी स्वर्ग लोग चले गए इस प्रकार महात्मा पुत्र के कारण उनकी नाक से रक्षा हुई और वह स्वर्ग लोक गया

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After listening to all this, who said, O Received, who is there who is worshipable even for me whom you people call Dnyaneshwar Shri Hari? And apart from these, all other deities reside in the king's body. In this way, the king is the server god in my god. This Brahmin, knowing all this that all the deities reside in the king, knowing this, whatever I ordered you, Do not do any donation, Yagya, Havan etc. These brahmins, the way a woman's supreme religion is to serve her husband, similarly your religion is to obey my orders. Seeing the destruction of religion, this whole world image is the result of the material burnt in the Yajna, Shri Parashar ji has said that even after repeatedly explaining and listening to the songs of immense happiness, when the king did not come like this, they all became very angry with each other. I started saying kill this sinner who condemns Yajnapurush Devadhidev Prabhu Shri Hari Vashnu ji in any other way, he is not eligible to be king Prithvi husband. As soon as King Ven died, everyone saw a lot of dust flying in those scenes. Seeing the dust flying, those scenes asked the people living around how this dust is flying. Due to being destitute, the destitute people have stopped being thieves and dacoits and started looting the wealth of others. The one who ruled after sitting on the royal throne, then all those scenes started brainstorming with each other to give birth to the people of that son Hemraj Aavin. As soon as a man was born, he became very eager and said to all the subjects, what should I do? All the sins came out, so the executioner became the destroyer of the sins of the vane, then churned the right hand of the vane of those subjects, by churning which the supremely glorious 121 Trits were born, who were like fire burning from their bodies. First of all Shiva named Gaon fell from the sky with a bow and mass and armor, by whose fall all the living beings were extremely happy and by taking the name of the son, fresh bindi people went to heaven.

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