प्रभु श्री हरि विष्णु जी बोले हे ध्रुवा मेरे सार्थक दर्शन करने से तेरी तपस्या तो अवश्य ही सफल हो गए परंतु है राजकुमार मेरा दर्शन कभी निष्फल नहीं होता इसलिए तुम्हें जो इच्छा हो जो तुम्हें वह मांग ना हो वह मांग लो मेरा दर्शन हो जाने पर प्राणी को सभी कुछ मिल जाता वह बोला हे देवाधिदेव आप सर्वव्यापी हैं आप सभी के अंतरण में विराजमान हैं आप सबके मन की बात जानते हैं मेरे मन में जो क्या आप से छिपी है हे देवाधिदेव संपूर्ण जगत के रचेता आपके प्रसन्न होने पर क्या दुर्लभ है देवराज इंद्र भी आपकी कृपा से त्रिलोक को भोंकते हैं ए प्रभु मेरे सौतेले महत्व हमें गर्व घमंड में चूर होकर मुझसे यह वचन कहे थे कि जो मेरे गर्व से उत्पन्न नहीं हुआ है उसके योग्य या सिहासन नहीं है अतः हे प्रभु आप के प्रसाद में मैं उस अतीत सर्वोत्तम स्थान को प्राप्त करना चाहता हूं जो संपूर्ण जगत का आधारभूत श्री प्रभु हरि विष्णु जी बोले अरे बालक तूने अपने पूर्व जन्म में मुझे प्रश्न किया था इसलिए तेरे इच्छा इस स्थान को प्राप्त करने की है तू उसे अवश्य प्राप्त करेगा अतः पूर्व जन्म में तू एक ब्राह्मण था और मुंह से निरंतर एकाग्र चित्त रहने वाला माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र तथा सर्व धर्म का पालन करने वाला था कुछ समय पश्चात एक राजकुमार 13 मित्र बना उसके साथ रह कर उसके वैभव को देखकर तेरे मन में इच्छा हुई कि मैं ही राजकुमार बानू यह ध्रुवा तुझे तेरी मनोवांछित दीक्षित वस्तुओं राजपूत्र प्राप्त हुए और इस इस भाव मनु के फूल में किसी और कोई स्थान मिलना मुश्किल है उसी के घर में तूने उत्तानपाद के पुत्र स्वरूप जन्म दिया मेरे आराधना करने से तो मोक्ष पद पर भी शीघ्र ही मिल जाता है फिर जिस का जिस पर निरंतर मुझमे हीलिंग है इसके लिए सर्वाधिक लोग मिलना तो व्याकुल सरल बात है हे प्रभु हे ध्रुव मेरी कृपा से निशान दे तू अवश्य उसी स्थान में ज्योति ज्योति में सबसे उत्कृष्ट है संपूर्ण कथा तारामंडल का आसरा बनेगा एथूवम मैं तुझे ध्वनि स्थान देता हूं तो सूर्य चंद्रमा मंगल बुध बृहस्पति शुक्र और शनि आदि ग्रहों में समेटना छात्रों सप्तर्षियों और समस्त विमानों पर विचरण करने वाला देव गणों से ऊपर है देवताओं में कोई तो केवल चार युग तक हर कोई एक मनोहरण तक ही रहते हैं किंतु तुझे मैं एक कल की स्थिति देता हूं तेरी माता सुमित जी की आरती स्वक्ष तारा रूप में एक कल्प तक ही तेरे पास एक विमान प्रवास करेगी और जो प्राणी प्रातः और सायं काल के समय तेरा मूर्ति करेगा उसको महान पुण्य प्राप्त होगा श्री पराशर जी बोले इस प्रकार पूर्वकाल में देवजी देव प्रभु श्री हरि विष्णु जी से वफा कर शुरुआती उत्तम स्थिति में हुए हे मनु अपने माता-पिता की धर्म पूर्वक सेवा करने से तथा द्वादश मंत्र के महत्व तथा दाब के प्रभाव से उसके मानदेय भाव एवं प्रभाव की वृद्धि देखकर देवता और असुरों के आचार्य सुखदेव कहने लगे रहो यीशु की तपस्या का ऐसा प्रभाव हो गुरुवर की तपस्या का ऐसा अद्भुत फल है जो इस ग्रुप को आगे रखकर सप्त ऋषि गणित हो रहे हैं इसकी माता श्री सूचित अवश्य ही सत्य वचन बोलने वाले हैं इस संसार में ऐसा कौन है जो इसकी महिमा को जान सकें जिसने अपने गर्भ में उस ग्रुप को धारण करके पी लो कि का आश्रम भूत परम उत्तम स्थान प्राप्त कर लिया जो भविष्य में भी स्थिति रहेगा जो भी प्राणित रूअर के इस दिव्य लोक प्राप्ति के प्रसंग का कृदंत करता है वह समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक में पूजा जाता है वह प्राणी पृथ्वी पर रहे अथवा स्वर्ग में वास करें तभी अपने स्थान से सुमित नहीं होता तथा समस्त मंडलों से युक्त होकर दीर्घायु होता है
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Lord Shri Hari Vishnu ji said, O Dhruva, by seeing me meaningfully, your penance has definitely been successful, but O prince, my darshan never fails, so ask for whatever you want, which you do not ask for. He would have got everything, he said, O Devadhidev, you are omnipresent, you reside in everyone's mind, you know what is in everyone's mind, what is hidden in my mind, O Devadhidev, the creator of the whole world, what is rare when you are pleased, Devraj Indra By your grace, even the Trilok barks. I want to get the place which is the foundation of the whole world Shri Prabhu Hari Vishnu ji said oh child you had questioned me in your previous birth so you have a desire to get this place you will definitely get it so in previous birth you were a brahmin He was an obedient son of his parents and a follower of all dharma, with a constantly focused mind. Dhruva, you got your desired initiated objects Rajputra and in this sense it is difficult to find any other place in Manu's flower. In his house you gave birth as the son of Uttanpad. The one on whom there is constant healing in me, it is easy to meet the maximum number of people, O Lord, O Dhruv, give me a mark with my grace, you must definitely mark the light in that place. If I am, then the Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn etc. are included in the planets, the students, the Saptarishis and the one who travels on all the planes is above the Gods. I give you the status that the aarti of your mother Sumit ji will stay in a plane near you in the form of a self-star for a cycle and the person who worships you in the morning and evening will get great virtue. Being faithful to Lord Shri Hari Vishnu, Manu has been in the best position in the beginning, by serving his parents religiously and seeing the increase in his honorarium and influence due to the importance and pressure of Dwadash Mantra, to say Sukhdev, the teacher of gods and asuras. Keep it up, the penance of Jesus should have such an effect, the penance of Guru is such a wonderful result that seven sages are doing mathematics by keeping this group in front, its mother Shree informed, who is the one who speaks the truth, who is there in this world who can glorify its glory One who holds that group in his womb and drinks that ashram ghost has attained the supreme abode, which will remain so in the future as well. The person who is worshiped in heaven, whether he lives on earth or resides in heaven, only then he does not get lost from his place and lives long by being united with all the worlds.
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