मुनी मैत्रीय और पाराशर जी का संवाद
प्राचीन समय की बात है कि श्री सूक्त जी आपने शिशुओं को श्री हरि विष्णु पुराण की महिला के विषय में बता रहे थे तो प्रारंभ में उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि श्री हरि विष्णु पुराण सुनने के लिए मैत्रीय जी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर मनी वर्क पर आशु जी के पास जाकर उसके चरण स्पर्श कर हाथ जोड़ प्रणाम कर बोले हे गुरुदेव मैंने वेद वेदांग और समस्त धर्म शास्त्रों का आपके दिए हुए ज्ञान से ही विधि पूर्वक अध्ययन किया है गुरुदेव आपने मुझसे समस्त धर्म शास्त्र व वेद वेदांग ओं का ज्ञान तो दे दिया है लेकिन गुरुदेव मैं आपके सिमरिया सुनाना चाहता हूं कि इस जगत की उत्पत्ति कब हुई और आगे भी इस जगत की उत्पत्ति कैसे होगी यह संपूर्ण जन चेतना किसके उत्पन्न हुआ है यह सब आप से पूर्व इसमें लिंक था और आगे दूसरे कल्प के आरंभ में किस में लीन हो जाएगा हे गुरुदेव यह सब के अतिरिक्त आकाश आदि विभिन्न भूतों का परिणाम पर्वत समुद्र देवता आदि की उत्पत्ति सूर्य आदि का परिवार तथा पृथ्वी का अधिष्ठान तथा उनका आधार देवताओं आदि का मांस मनु मन्वंतर करो युवाओं में विभक्त कल और परसों के विभागों के देवासी और राष्ट्रीय के चरित्र की कथा प्रलय का स्वरूप श्री व्यास जी के गीत वैदिक शाखाओं की रचना तथा ब्राह्मण वादियों एवं और ब्रह्मा चार्य आदि आश्रमों के धर्म एक समस्त मैं आपके श्री मुख से सुनना चाहता हूं गुरुदेव आप मुझसे इस विषय में ज्ञान प्रदान करें मैथिली जी की बात सुनकर मुनि श्री पाराशर जी बोले थे धर्मा यज्ञ मैथिली तुमने उस प्राचीन कथा का स्मरण कराया है इसका मेरे पिता श्री वशिष्ठ जी ने वर्णन किया था मैंने सुना है कि विश्वामित्र की प्रेरणा से मेरे पिताश्री को एक राक्षस ने खा लिया था मुझे अत्यधिक क्रोध आया और मैंने राक्षसों के प्रतिशोध लेने के लिए यज्ञ करना आरंभ किया उचिया के महासंग्राम से जलकर भस्म हो गए या कि मैं राक्षसों का सर्वनाश होता देख मेरे पिता श्री वशिष्ठ जी बोले कौशल्य तुम अपने कोट का त्याग कर दो हाथी क्रोध करना अच्छी बात नहीं है मेरे एक विधि का विधान था जिसमें राक्षसों का कोई दोस्त नहीं है तुम्हारे पिता के भाग्य में यही सब कुछ होना लिखा था क्रोध तो मूर्ख का आभूषण है विचार वनों को क्रोध जैसे आ सकता है क्रोध करने से तो मनुष्य के सारे यज्ञ वरुण श्री क्षण हो जाते हैं क्रोध करने से मनुष्य के लोग कुआं पर लोग दोनों की खराब हो जाते हैं ज्ञानवान मनुष्य को क्रोध शोभा नहीं देता कोई किसी को नहीं मार सकता मनुष्य को आपने किए हुए कर्मों का फल भोगना पड़ता है इन नील अपराध राक्षसों का वध मत करो इन का वध करने से तुम्हें कोई लाभ नहीं है या फिर पुत्र साधुओं का धर्म क्षमा है वोट करना नहीं तुम आपने इस यज्ञ को तुरंत समाप्त कर दो गीता मां श्री वशिष्ठ जी की आज्ञा भरी बातें सुनकर मनुष्य यज्ञ समाप्त कर दिया है यज्ञ समाप्त करते ही मुनि वशिष्ठ जी बहुत प्रसन्न हो उसी समय वहां पर ब्रह्मा जी के पुत्र पूर्व स्वार्थ जी है रे मैथिली मेरे पिता मां श्री वशिष्ठ जी ने उन्हें आधार दिया फिर कुशवाहा जी ने आसन ग्रहण किया और मुझसे बोले अपने मन में राक्षसों के प्रति पूर्ण होने पर भी तुमने श्री वशिष्ठ जी के रहने से राक्षसों क्षमा कर दिया इसलिए तुम संपूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता हो जाओगे सत्यम क्रोध में होने के पश्चात भी तुमने मेरी संतानों का सर्वनाश नहीं किया इसलिए मैं तुम्हें कसम तुमसे प्रसन्न हूं और तुम्हारे वह देता हूं कि तुम पुराण संहिता के रचियता बनोगे और देवताओं का यथार्थ स्वरूप को जानने में समर्थ हो गए मेरे वरदान से तुम्हारी निर्मल आमिर प्रवृति अर्थात भोग और मोक्ष के उत्पन्न करने वाले कर्मियों में हो जाएंगे फुलवा जी की इस बात को सुनकर मेरे पिता वशिष्ठ जी ने बोले हैं वात्सल्य कुशवाहा जी ने जो भी कहा है वह सभी सत्य होगा यह मैथिली जी पूर्व काल में श्री वशिष्ठ जी और फूफा जी ने जो भी कुछ कहा था क्या समस्त मुझे स्मरण हो आया है अतः माइक संपूर्ण पुराण संहिता सुनाता हूं तुम इसे ध्यान से सुने इस जगत की उत्पत्ति श्री विष्णु जी द्वारा हुई है उन्हीं में स्थित है प्रभु श्री हरि विष्णु जी की इसकी स्थिति तथा लाए के करता है तथा वह जगत पालन है और जगत ही हुए हैं
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Dialogue between Muni Maitreya and Parashar ji
It is a matter of ancient times that Shri Sukta ji was telling you children about the woman of Shri Hari Vishnu Purana, then in the beginning he told his disciples that Maitriya ji retired from daily work and went to money work to listen to Shri Hari Vishnu Purana. After going to Ashu ji, touching his feet and bowing down with folded hands, he said, O Gurudev, I have studied the Vedas and all religious scriptures with the knowledge given by you. Gurudev, you have given me the knowledge of all religious scriptures and Vedas. But Gurudev, I want to tell you about when this world was born and how this world will be born in the future, in whom this whole mass consciousness was born; O Gurudev, it will be absorbed, O Gurudev, in addition to all this, the result of various ghosts like the sky, the mountains, the sea, the origin of the gods etc., the family of the sun etc. and the establishment of the earth and their support, the flesh of the gods etc. The story of the character of the nation, the nature of the holocaust, the songs of Shri Vyas ji, the composition of the Vedic branches and the religions of the Brahmin litigants and the Brahma Charya etc. Ashrams, I want to hear from your mouth, Gurudev, please give me knowledge about Maithili ji. Hearing this Muni Shri Parashar ji said Dharma Yagya Maithili you have reminded me of that ancient story which was described by my father Shri Vashishtha ji. And I started performing Yagya to take revenge of the demons who were burnt to ashes in the great battle of Uchiya or seeing the destruction of the demons, my father Shri Vashishtha ji said Kaushalya, you leave your coat, it is not a good thing to make the elephant angry. There was a rule of law in which demons have no friends. This is what was written in your father's fate. Anger is the ornament of a fool. By getting angry, both the man and the well get spoiled. Anger does not suit a wise man, no one can kill anyone. A man has to bear the fruits of his deeds. Do not kill these blue evil demons. There is no benefit to you by slaughtering, or the religion of the son-sadhus is forgiven, do not vote, you end this yagya immediately. By listening to the commandments of Gita Maa Shri Vashishtha ji, man has finished the yagya, as soon as he finishes the yagya, Muni Vashishtha Yes, you are very happy, at the same time there is former selfishness, the son of Brahma ji, Maithili, my father and mother Shri Vashishtha ji gave him support, then Kushwaha ji took the seat and said to me, even though your mind is full of demons, you The demons were forgiven by the presence of Vashishtha ji, so you will become the knower of all the scriptures. Even after being in Satyam anger, you did not destroy my children, so I swear on you that I am pleased with you and I give you that you will become the author of the Purana Samhita. And by my boon you have been able to know the true nature of the deities, your pure amir nature means that you will become one of the workers who generate enjoyment and salvation. Maithili ji said that everything will be true, whatever Shri Vashishtha ji and Fufa ji had said in the past, have I remembered everything, so Mike narrates the complete Puran code, you listen to it carefully, the origin of this world Shri Vishnu ji Lord Sri Hari Vishnu ji's position is located in him and he brings it and he is the follower of the world and only the world has happened.
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