श्री विष्णु पुराण कथा अध्याय 6

चारों वणो की व्यवस्था के विभाग तथा अन्य आदि की उत्पत्ति



श्री मैत्री जी बोले हे प्रभु आपने जो आरक्षण मनुष्य के संबंध में बतलाया है ब्रह्मा जी ने हूं कि सृष्टि किस तरह से कि कृपया करके आप मुझे यह विस्तार पूर्वक बताएं श्री ब्रह्मा जी के ब्राह्मण आदि मानव जाति ओं को जिन जिन गुणों से युक्त तथा जिस प्रकार राजा और उनके जो जो कर्तव्य कर्म बनाए कृपया कर आप वह सब वर्णन कीजिए श्री पाराशर जी बोले हे मैथिली जी जगत रचना की इच्छा से युक्त श्री ब्रह्मा जी के मुख से सर्वप्रथम सात्विक प्रधान राजा उत्पन्न हुए तत्पश्चात उनके वक्ष स्थल से राजू प्रधान तथा जागरण द्वारा रचित तथा संयुक्त सृष्टि हुए ब्रह्मा जी ने अपने चारों चरणों से एक अन्य प्रकार की प्रजा उत्पन्न कि वह दम प्रधान थी यही चारों वर्णों बने इस तरह ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के चारों क्रमशः ब्रह्मा जी के मुख्य स्थल तथा चरणों से उत्पन्न हुए हे महा भाग श्री ब्रह्मा जी ने यज्ञ अनुष्ठान के लिए ही यज्ञ के उत्तम साधन रूप की संपूर्ण चतुर्वर्ण की रचना की थी यज्ञ से तृप्त होकर देवता गण जल पराशर प्रजा को तीव्र करते हैं अतः यज्ञ सर्वप्रथम कल्याण हेतु किया जाता है जो मनुष्य सदैव सदाचारी वर्ग धर्म परायण सज्जन अवश्य मार्ग पर चलने वाले होते हैं उन्हीं से यज्ञ का यथावत अनुष्ठान हो सकता है तथा हुए भी लाभ उठाते हैं यज्ञ से मनुष्य इस मानव शरीर से ही स्वर्ग तथा अब वर्ग प्राप्त कर सकते हैं तथा उन्हें जिस स्थान की इच्छा हो उसी को जा सकते हैं हे मुनि श्री श्री ब्रह्मा जी द्वारा रची गई वह चार वर्ण भागों मे स्थित प्रजा बहुत ही श्रद्धा वान आचरण वाले सुरक्ष अनुसार रहने वाले समस्त बाधाओं से रहित शुद्ध अंतःकरण हिर्दय वाले सब कुल में उत्पन्न होने वाले और पुण्य कर्मों के अनुष्ठान से परम पवित्र थी उस राजा का चित्र शुद्ध होने के कारण उसमें निरंतर शुद्ध स्वरूप श्री हरि के विराजमान रहने से उन्हें सुखदेव ज्ञान की प्राप्ति होती थी जिससे वे प्रभु के उस विष्णु नाम के परम पद को देख पाते थे फिर त्रेता युग के आरंभ में हमने आपसे प्रभु के जिस काल नाम के अंश का पहले वर्णन किया है वह अति अल्प सुख वाले कुछ और दुखद माय पापों को प्रजा में प्रभावित कर देता है उससे उस प्रजा में पुरुषार्थ का विद्या तक तथा अभियान और लोग को उत्पन्न करने वाला अधर्म का बीज उत्पन्न हो जाता है जिससे उसको अष्ट सिद्धियों नहीं मिल पाती है उन संपूर्ण अतिथियों के छेद हो जाने पर पार्क की वृद्धि हो जाने के कारण समस्त प्रजा द्वंद और दुख से आतुर हो गए तब उसने मरुभूमि रेगिस्तान पर्वत पहाड़ और जल आदि के स्वभाव तथा कृत्रिम दुर्ग और पूर्व तथा उच्च पर्वतीय नदी किनारे बसे छोटे टीले आदि बनाए पूर्व आदि को में शीत और ताप गर्मी आदि बाधाओं से बचने के लिए उसने योग घर बनाए इस तरह सीट धूप व गर्मी आदि से बचने का उपाय करके पूछ प्रजा से जीविका चलाने के लिए कृषि तथा कला कौशल आदि की रचना की है मुनि श्रेष्ठ गेहूं धान ज्वार जो छोटे-छोटे धनिया कंगनी बड़ी मटर को दो मशहूर कुल्फी मूंग आदि 17 ग्राम औषधियों की जाती है ग्राम और 1 दोनों प्रकार की 14 औषधियां यज्ञ के योग्य हैं जिनके नाम है गेहूं प्रीति धान उड़द कंगन छोटे धनिया जो तिल के 8 तथा स्वागत 1 3 वेणु यज्ञ का निवारण हेतु के 14 ग्रस्त और 1 अवधि यज्ञ अनुष्ठान की सामग्री है इसका जन्म यज्ञ के लिए ही प्रधान रूप से हुआ है इन औषधियों द्वारा यज्ञ करने से प्रजा की वृद्धि होती है इसलिए इस लोक और परलोक के ज्ञाता पुरुष यज्ञों का अनुष्ठान किया करते हैं नित्य प्रति किए जाने वाला यज्ञ अनुष्ठान मनुष्यों के लिए परोपकार के तथा उसके लिए हुए पापों को शांत करने वाला है हे मुनिवर जिनके अतीत में काल की गति से पाप का बीज पनपता है उन्हें लोगों का चित्र यज्ञ में प्रभावित नहीं होता है पुण्य ज्ञ का विरोधियों भी विरोध करने वालों ने वैदिक मतभेद और यज्ञ आदि कर्म सभी की निंदा की है वे लोग दुराचारी वेदिनी दुरात्मा और प्रवृत्ति मार्ग का उचित करने वाले ही थे हे धर्म वालों में श्रेष्ठ मैथिली इस प्रकार कृषि आदि जीविका के निश्चित हो जाने पर श्री ब्रह्मा जी ने प्रजा की रचना कर उनके स्थान तथा गुणों के अनुसार मर्यादा तथा 1 और आश्रमों के धर्म तथा अपने धर्म का ठीक प्रकार से पालन करने वाले संपूर्ण गांव के लोग आदि की रचना कर्म निष्ठा ब्राह्मण का स्थान भीतर लोग माना गया है युद्ध क्षेत्र में पीछे न हटने वाले क्षत्रियों का इंद्रलोक है और अपने धर्म का सही ढंग से पालन करने वाले व्यस्य का वायु लोग और सेवा धर्म परायण शूद्रों का गंधर्व लोग हैं 888 हजार और धारिता मुनि है उनका जो स्थान बताया गया है वह गुरुकुल में वास करने वाले ब्रह्मचारी ओं का स्थान है इसी प्रकार वन में वास करने वाले वंश का स्थान शिक्षक लोग गृह तथा पीड़ित लोग तथा सन्यासियों का ब्रह्म लोक तथा आत्मा अनुभव से तृप्ति योगियों का इस्थान बॉक्सर परम पद है जो निरंतर निरंतर सेवा करते हैं और ब्रह्म चिंतन में मग्न रहने वाले योग जन हैं उनका जो परम स्थान है उसे पंडित जी देख पाते हैं चंद्र और सूर्य आदि ग्रंथ भी अपने-अपने लोगों में जाकर फिर वापसी लौट आते हैं किंतु ओम नमो भगवते वासुदेवाय द्वादश अक्षर मंत्र का चिंतन करने वाले आज तक मोक्ष पथ से नहीं लौटे सनातन धर्म तांत्रिक मामा रोवा आशीष पत्र अभिषेक और ताल सूत्र आदि रौनक है वेदों की निंदा करने वाले लोगों का उचित करने वाले तथा स्वार्थ धर्म पुरुष के स्थान कहे गए हैं

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Origin of department and other etc. of arrangement of four forests

Shri Maitri ji said, O Lord, the reservation that Brahma ji has told about human beings, in what way the creation is, please tell me this in detail, the qualities with which the Brahmin etc. human beings of Shri Brahma ji and with which Kindly describe the type of king and the duties performed by him. Shri Parashar ji said, O Maithili ji, from the mouth of Shri Brahma ji, first of all, Satvik Pradhan king was born, then Raju Pradhan and Jagaran from his chest. Created and united by Brahma ji created another type of subjects from his four feet that was strong, these four varnas were formed, in this way Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras were born from the main place and feet of Brahma ji respectively. Bhag Shri Brahma ji had created the entire Chaturvarna form of the best means of Yagya only for the Yagya ritual. Satisfied with the Yagya, the Gods make the water parashar intense, so the Yagya is first performed for the welfare of the people, who are always virtuous class Dharma Parayan. Gentlemen are definitely going to walk on the path, only from them the rituals of Yagya can be done and they get benefited from Yagya, humans can get heaven and now class only from this human body and they can go to the place they want. O Muni Shri Shri Brahma ji, the people located in the four varna parts, living according to the safety, having a pure conscience, free from all obstacles, living according to the four varna parts, were born in all clans and were pure by the rituals of virtuous deeds. Due to the purity of that king's picture, by the constant presence of Shri Hari in him, he used to get the knowledge of Sukhdev, so that he could see the supreme position of that Vishnu name of the Lord. The part of the name of Kaal has been described earlier, it affects the people with very little happiness and some sad my sins, from which the seed of unrighteousness is generated in those people, which creates the education of men and campaigns and people. He is not able to get Ashta Siddhis, due to the increase of the park due to the holes of all the guests, all the people were eager for conflict and sorrow, then he created deserts, deserts, mountains and nature of water etc. and artificial forts and east and high mountains. Built small mounds etc. situated on the banks of the river, in the east etc. to avoid the obstacles of cold and heat heat etc., he built yoga houses, in this way, by taking measures to avoid sun and heat etc., he asked the people for agriculture and art skills etc. to make a living. Muni Shrestha Wheat, Paddy, Jowar, small coriander, Kangni, big peas, two famous Kulfi, Moong, etc. 17 grams of medicines are made, 14 medicines of both types are eligible for Yagya, whose names are Wheat, Preeti, Paddy, Urad, Kangan, Small Coriander. 8 of Sesame and 1 3 of welcome Venu Yagya for the prevention of 14 suffering and 1 duration of Yagya ritual, it is born primarily for Yagya only. The knower of the hereafter performs rituals of sacrifices. The ritual of sacrifices performed daily is for the welfare of humans and to pacify the sins committed for them. Punya is not affected in Yagya. After the livelihood was fixed, Shri Brahma ji created the subjects according to their place and qualities, according to the dignity and 1 and the religion of the ashrams and the people of the whole village who follow their religion properly etc. It is believed that the Kshatriyas who do not back down in the battle field have Indralok and the Vayu people who follow their religion properly and the Gandharva people of Seva Dharma Parayan Shudras are 888 thousand and their place is Dharita Muni. That is the place of celibates living in Gurukul, similarly the place of descendants living in forest is the place of teachers, home and suffering people and Brahma Lok of Sanyasis and the place of yogis who are satisfied with soul experience, Boxer is the ultimate post, who serve continuously. And those who are engrossed in the contemplation of Brahma are yogis, their supreme abode, Pandit ji is able to see that the moon and the sun etc. texts also go to their respective people and then return back, but those who contemplate Om Namo Bhagwate Vasudevaya Dwadash Akshar Mantra Sanatan Dharma has not returned from the path of salvation till date, Tantrik Mama Rova Ashish Patra Abhishek and Taal Sutra etc. are beautiful, they are said to be the place of those who condemn the Vedas and the place of selfish religion man.

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