अविद्या दी विधि संघों का वर्णन
श्री मैत्रीय जी बोले हेवी पर आज सर्ग के आरंभ में प्रभु ब्रह्मा जी ने पृथ्वी आकाश एवं जल आदि में निवास करने वाले देवता ऋषि चित्र बनाना मनुष्य तिलक और वृक्ष हाथी को जिस प्रकार से रचा था जिस प्रकार के गुण स्वभाव तथा रूप वाले जगत का राजा वह सब आप मुझे बताने की कृपा करें श्री पराशर जी बोले हैं मैथिली प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने जिस प्रकार इस संवर्ग की रचना की वह सब मैं तुम्हें बताता हूं ध्यान लगाकर सुनो स्वर्ग के आरंभ में ब्रह्मा जी ने पूर्व 8 सृष्टि का चिंतन किया तो पहले पहल और सावधानी हो जाने से तमोगुण प्रधान सृष्टि प्रगट उस महात्मा से प्रथम एवं अज्ञान महामूर्ख तामसिक इस्तरकू तथा अंतरा मित्र अभिनेश नामक पांच पर्व अविद्या उत्पन्न हुए उसके ध्यान करने पर ज्ञान सूर्य अंदर बाहर से दमोह में और जड़ लगना आदि विच गुलाम लता वीरता पांच प्रकार का स्वर्ग हुआ 12 जी द्वारा सर्वप्रथम स्थापित होने के कारण नागना अधिक को मुख्य कहा जाता है उस सिस्टर को पुरुषार्थ साधिका देखकर प्रभु ब्रह्मा जी ने अन्य संवर्ग का ध्यान किया तो तीरथ स्रोत सृष्टि उत्पन्न हुई यह स्वर्ग वायु के समान तिरछा चलता है इसलिए यह तीरथ स्रोत कहलाता है यह पशु-पक्षी आदि नाम से भी प्रसिद्ध है और दमोह माय अज्ञानी विवेक रहित अनुसूचित मार्ग राह का अविलंब करने वाले विपरीत ज्ञान को ही वास्तविक ज्ञान माने ने वाले होते हैं वह समस्त अहंकारी अभिमानी राष्ट्रवादी वध से युक्त अंतरिक्ष सुख को ही पूर्णता समझने वाले दूसरों के प्रभाव को ना जानने वाले होते हैं उस वर्ग को भी पुरुषार्थ का साधक समझ फिर चिंतन करने पर एक और स्वर्ग उत्पन्न हुआ वह उधर स्रोत नामक तीसरा सात्विक स्वर्ग ऊपर के लोक में वास करने लगा कि उद्योग स्रोत सृष्टि में उत्पन्न होने वाले प्राणी विषय सुख के प्रेमी द्वारा और आंतरिक दृष्टि से संपन्न तथा वाह और आंतरिक ज्ञान युक्त थे यह तीसरा देव स्वर्ग है इस वर्ग को उत्पन्न होने पर प्रभु श्री ब्रह्मा जी को बहुत ही प्रसन्नता हुई इन मुख्य स्वर्ग आदि तीनों प्रकार के की सृष्टि में उत्पन्न हुए जीवो को पुरुषार्थ का साधक समझ उन्होंने एक और उत्तम स्वर्ग के लिए ब्रह्मा जी इस प्रकार चिंतन करने पर अभिव्यक्त प्राकृतिक से पुरुषार्थ का साधक आवर्ती स्रोत नामक का स्वर्ग उत्पन्न हुआ इस संवर्ग में समस्त प्राणी नीचे पृथ्वी पर रहते हैं इसलिए हुए अभ्रक स्त्रोत कहलाते हैं उनके सतवित रजत तथा तम तीनों तत्वों की ही अधिकता है इसलिए वे दुख बहुल अत्यंत क्रियाशील और अज्ञान माय तथा साधक है इस संवर्ग के प्राणी मनुष्य होते हैं हे मुनि श्रेष्ठ इस तरह मैंने तुमको अब तक 600 वर्ग सुना है जिसमें श्री ब्रह्मा जी का प्रथम संवर्ग महत्व है दूसरा संवर्ग का मात्रक का शरीर से भूत संवर्ग भी कहते हैं और तीसरा सवाल व्यापारिक है जिससे अतिरिक्त इंद्र संबंधित भी कहा जाता है इस तरह बुद्धि से उत्पन्न हुआ यह संवर्ग प्राकृतिक है चौथा मुख्य संवर्ग के अंतर्गत पर्वत वृक्ष स्थावर है पांचवा संवर्ग में तिलक स्रोत है से तिलक कीट पतंग आदि योनि भी कहते हैं छठवां सोमवार गुस्सा स्रोत का है तो देव स्वर्ग भी कहा जाता है सातवां स्वर्ग और अखरोट का है वह मनुष्य स्वर्ग है आठवां अनुग्रह स्वर्ग है वह तामसिक और सात्विक है यह 500 वर्ग वित्त अधिकारी हैं तथा पहले 3 प्राकृतिक संवर्ग का लाए जाते हैं नवा संवर्ग को मार जोक प्राकृत और विकृत है इस तरह सृष्टि रचना में प्रवृत्त हुए जगदीश्वर प्रजापति के प्राकृतिक और विकारी वैदिक नामक एवं मूल भूत स्वर्ग तुम्हें बतलाए हैं अब और क्या सुनन चाहते हो श्री मैथिली जी बोले हे मुनीश्वर आपने इस देव आदि के स्वर्ग का सुषमा वर्णन किया है मुनि श्रेष्ठ आप कृपा करके विस्तार से मुझे सुनाएं श्री पराशर जी बोले हैं मैथिली जी समस्त प्राचार्य ने अपने पूर्व शुभ-अशुभ कर्मों से युक्त है अतः प्रलय काल में सबके लाइफ है पर भी वह उनके संस्कारों से युक्त नहीं होते हे ब्रह्मा प्रभु श्री ब्रह्मा जी के सृष्टि कर्म में लग जाने पर देवताओं से लेकर इस तरह आवत पर्वत चार प्रकार की सृष्टि हुई वह केवल मनोम आई थी फिर देवता असुर पित्र गण तथा मनुष्य मानव इन चारों की तथा जल की रचना करने की इच्छा से उन्होंने अपने शरीर दे का उपयोग किया सृष्टि रचना की कामना से प्रजापति युक्त जीत हो जाने पर तमोगुण की वृद्धि हुई इसलिए सबसे पहले उनकी जांघों से असुर राक्षस उत्पन्न हुए फिर यह मैथिली उन्होंने उस दमोह में शरीर को त्याग दिया वह त्याग हुआ दमोह शरीर की रात बना फिर अन्य देश में स्थित होने पर सृष्टि की कामना वाले प्रजापति को बहुत अधिक प्रसन्नता हुई और हैबिट उसके मुख से सत्य प्रधान देवता उत्पन्न हुए तत्पश्चात उस शेर को भी उन्होंने त्याग दिया वह त्याग हुआ शरीर ही तत्व स्वरूप दिन बन गया इसी कारण रात्रि में असुर शक्तिशाली होते हैं और दिन में देवताओं के बल में वृद्धि हो जाते हैं फिर उन्होंने आश्विक सतविक दूसरा शरीर धारण की कर लिया और स्वयं ही प्रीत गान की रचना कर दी मित्रगण की रचना करने के पश्चात उन्होंने उस शरीर का भी त्याग कर दिया वह त्याग हुआ शरीर ही दिन और रात के मध्य स्थापित संध्या बना गई इसके पश्चात उन्होंने आंशिक राज्यों में अन्य शरीर धारण किया है दिल श्रेष्ठ उस शरीर से राजा प्रधान मनुष्य की उत्पत्ति हुई तत्पश्चात प्रजापति में उस शरीर को भी त्याग दिया वह प्रातः का हुआ इसलिए है मैथिली प्रातः काल होने पर मनुष्य बलवान हो जाता है और स्वयं काल के समय पिता बलवान होते हैं इस तरह रात 3:00 प्रातः काल और संध्या काले चारों प्रभु श्री ब्रह्मा जी के ही शरीर है और तीनों ही गुणों में आश्रय इसके पश्चात ब्रह्मा जी ने एक और राजू मात्रक शरीर धारण किया जिसके द्वारा शुरू की भूख उत्पन्न हुए और श्रुति बुक से काम की स्तुति हुई तब प्रभु प्रजापति ने अंधकार में रहकर इस रविंद्र सृष्टि की रचना की इसमें बड़े रूप और दाढ़ी मूछ वाले मनुष्य उत्पन्न हुए हुए स्वयं ब्रह्मा जी को भी भक्षण करने के लिए उनकी ओर दौड़े उसमें से उन्होंने यह कहा कि ऐसा करो इनकी रक्षा करो वह राक्षस बन गए और जिन व्यक्तियों को हम खाए ओए खाने की वासना वाले होने से यक्ष कहलाए उसकी इस अनिष्ट निष्ठा हीन प्रवृत्ति को देख कर भी ब्रह्मा जी के सिरके के बाल गिर गए फिर दोबारा उसके ऊपर मस्तक पर लग गए इस तरह ऊपर चढ़ने के कारण व्यर्थ कहलाए और नीचे गिरने के कारण ही कहलाए इसके बाद सृष्टि के रचयिता प्रभु श्री ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर क्रोध वाले प्राणियों की रचना की हुए कपीस पिछले उनके बहुत ही ज्यादा उग्र स्वभाव वाले एवं मांसाहारी बने फिर गायन करते समय तृप्त ही उसके शरीर से गंधर्व की उत्पत्ति हुए हुए वाणी का उच्चारण करते अर्थात बोलते हुए उत्पन्न होने के कारण गंधर्व कहलाए इन सब की रचना करने के पश्चात प्रभु श्री ब्रह्मा जी ने पक्षियों को उनके पूर्व कर्मों से प्रेरित होकर स्वक्ष क्षमता से अपनी आयु द्वारा पक्षियों की रचना फिर आपने युवाक्षी स्टील से भयमुक्त से बकरी उदार एवं पशु हादसे गाय पैरों से घोड़े हाथी गधे 1 गाय मरी चोट खाकर तथा न्यू आदि पशुओं की उत्पत्ति की उनके रंगों से फल-फूल स्वरूप औषधियां उत्पन्न हुई एब पुरुष भेड़ घोड़े खच्चर और गधे समस्त गांव में वास करने वाले पशु हैं जंगली पशु ब्लॉक दो फूल वाले 1 गाय आदि बंदर हाथी तथा हाथ में पक्षी छठ में जल जीव तथा साथ में श्री श्री आदि जंगली पशु है इसके पश्चात ब्रह्मा जी ने अपने मुख से गायत्री इस रूट फ्रॉम रथ तथा अग्नि दृष्ट यज्ञ का निर्माण किया दक्षिण दिशा मुख से श्रेष्ठ पूछ 500 ग्राम प्रधान कल के आरंभ में ही ब्रह्मा जी ने तथा उत्तक की रचना की पश्चिम मुख्य सहायक जगती छन संतृप्त वैराग्य तथा आती रात भी ब्रह्मा जी ने उत्पत्ति की उत्तर मुख से उन्होंने अधर्म वेद एक विश्व शांति स्त्रोत अंतर अनुश्री छान और वे रिक्शा की रचना की इस तरह उनके शरीर से सब ऊंचे नीचे प्राणी उत्पन्न हुए प्रजापति श्री ब्रह्मा जी देव असुर वितरण तथा मनुष्य की रचना करने के पश्चात कल्प का आरंभ होने यज्ञ परिसर गंधर्व पार्सल मनुष्य किन्नर राक्षस पशु पक्षी मृतक था सर आदि समस्त नीति एवं अत्यंत चराचर जगत की रचना की उसमें से जिसक जैसे जैसे कर्म पूर्व कानपुर में थे बार-बार रचना होने पर उनकी उनकी उन्हीं से मैं फिर प्रवृत्ति हो जाती है उस समय है शक अहिंसक मृत कठोर सत्य मिथ्या धर्म अधर्म ए सब अपने पूर्व भावों के अनुसार आपको प्राप्त होते हैं उसी से उन्होंने यह अच्छे लगने लगते हैं इस तरह प्रभु ने स्वयं इंद्रियों के विषय भूत और शरीर में विभिन्न ता तथा व्यवहार को पैदा किया है उन्होंने कल्प के आरंभ में देवता आदि प्राणियों के वेद के अनुसार नाम रूप और कार्य विभाग को सुनिश्चित कर दिया है रिशु तथा दूसरे प्राणियों में भी वेदों के अनुकूल नाम और कार्य विभाग होने से पृष्ठ निष्ठ किए हैं जिस तरह अलग-अलग स्त्रोत के कारण बार-बार आने पर उनकी चीन तथा नाम आदि पूर्व आप ही रहते हैं उसी प्रकार योग आदि में उनके पूर्व भाव ही देखे जाते हैं इस राहु भक्ति सृष्टि रचना की इच्छा स्वरूप देती है यह युक्त हुए ब्रह्मा जी सृजन शक्ति सृष्टि प्रधान की प्रेरणा के काल की शुरुआत में बार-बार इसी तरह सृष्टि की रचना किए करते हैं औषधि तथा पशुओं की उत्पत्ति करके फिर त्रेता हाय युग के आरंभ में उन्होंने यज्ञ आदि कर्मों में शामिल किया जाए बकरी
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The description of Avidya Di Vidhi Sanghas
Shri Maitriya ji said on Heavy, today at the beginning of the canto, Lord Brahma ji created the image of the God Rishi who resides in the earth, sky and water etc., the way he created human Tilak and tree elephant, the king of the world with the qualities, nature and form Please tell me all that Mr. Parashar ji has said, the way Maithili Lord Shri Hari Vishnu ji created this category, I tell you all that, listen carefully, in the beginning of heaven, Brahma ji contemplated the former 8 creation Due to first initiative and caution, Tamogun dominated creation appeared from that Mahatma, the first and ignorant great fool, vindictive Istarku and Antara Mitra Abhinesh, five festivals named Avidya were born. This type of heaven was established because Nagna Adhik was first established by 12 ji. Seeing that sister as a purusharth seeker, Lord Brahma meditated on other cadres, then the pilgrimage source creation was born. This heaven moves obliquely like air, so it It is also known as Tirath source, it is also famous by the name of animal-bird etc. and Damoh, my ignorant conscience-less scheduled path, those who follow the opposite knowledge as real knowledge, they are all egoistic, proud nationalists, only space happiness with slaughter. Those who understand perfection are those who don't know the effect of others, considering that class also as a seeker of effort, then on thinking, another heaven was born, and on the other side, the third Satvik heaven named Source started living in the upper world that the source of industry originated in the universe. Beings who are lovers of subject pleasures and were endowed with inner vision and wow and inner knowledge. This is the third god heaven. Considering the living beings to be the seeker of effort, Brahma ji for another perfect heaven, after thinking in this way, a heaven called the recurring source of effort was born, in this category all the living beings live down on the earth, hence they are called mica sources. They have an excess of all the three elements Satvit Rajat and Tama, therefore they are full of sorrows, extremely active and ignorant illusions and seekers. The creatures of this category are human beings. The importance of the second category is called ghost category from the body, and the third question is related to business, which is also said to be related to Indra. In this way, this category originated from the intellect is natural. Under the fourth main category, the mountain tree is stable. Tilak is the source of insects, moths, etc. Yoni is also called Sixth Monday is of source of anger, then it is also called God's heaven, seventh heaven is of walnut, it is man's heaven, eighth is grace heaven, it is tamasic and sattvic, it is 500 class finance officers and The first 3 natural cadres are brought; Munishwar, you have given a beautiful description of the heaven of this God etc. Muni Shrestha, please tell me in detail. Shri Parashar ji has said that Maithili ji, all the principals are full of their previous auspicious and inauspicious deeds, so everyone has life in the holocaust. They are not associated with their sanskars, O Lord Brahma, when Lord Shri Brahma ji got engaged in the work of creation, four types of creation were created from the gods and in this way, the mountains came; With the desire to create, he used his body to create the universe, after the victory of Prajapati, the Tama guna increased, therefore, first of all, the Asura demons were born from his thighs, then this Maithili, he left his body in that Damoh. Damoh became the night of the body, then when it was located in another country, Prajapati, who wished for the creation, was very happy and Habit was born from his mouth, the true prime deity, after that he abandoned that lion as well. Due to this reason the Asuras are powerful in the night and the strength of the deities increases in the day, then he assumed another body of Asvik Satvik and himself composed the song of love. Relinquished that relinquished body became the evening established between day and night, after that he assumed other bodies in partial states. This is because Maithili man becomes strong in the morning and the father becomes strong at the time of time itself. In this way, at 3:00 am in the morning and in the evening, all the four bodies are the body of Lord Shri Brahma and shelter in all the three qualities of it. After Brahma ji assumed another Raju Matrak body, through which hunger was born and work was praised from Shruti book, then Lord Prajapati created this Ravindra creation by staying in darkness, in it humans with big form and beard and mustache were born. Brahma himselfRan towards him to devour Mr. He said to him that do this, protect him. Vinegar hair of Brahma ji fell, then it was applied again on his head. In this way, because of climbing up, it is called useless and because of falling down, after this Lord Shri Brahma, the creator of the universe got angry and created angry creatures. Kapis had a very fierce nature and became a non-vegetarian, then while singing, he was satisfied and uttered the speech of Gandharva born from his body. Inspired by their previous deeds, created birds by their own age, then you created birds from Yuvakshi steel, free from fear, goat generous and animal accidents, horse, elephant, ass from animal accident, cow, elephant, ass, 1 cow died after getting injured and new etc. animals were born in their colors. Medicines were produced in the form of fruits and flowers. Men, sheep, horses, mules and donkeys are the animals living in the entire village. After this, Brahma ji created Gayatri from his mouth, this route from the chariot and the Agni Drishta Yajna, facing the south direction, the head of 500 grams. And on the coming night too, Brahma ji originated from the north face, he created Adharma Veda, a source of world peace, inter Anushree Chan and he created rickshaw, in this way, all the high and low creatures were born from his body, Prajapati Shri Brahma ji Dev, Asura distribution and creation of human beings. After the beginning of the Kalpa, the yagya premises, the Gandharva parcel, the man, the eunuch, the monster, the animal, the bird, the head, etc., all the policies and the very pastoral world were created from it, whose deeds were created again and again in Kanpur. Then there is a tendency, at that time there is doubt, non-violent, dead, harsh truth, false religion, unrighteousness, you get everything according to your previous feelings, that's why they start liking it. At the beginning of the Kalpa, He has fixed the names, forms and functions of the deities etc. according to the Vedas. Rishu and other beings have also made sure that names and functions are according to the Vedas, as different- Due to different sources, their china and name etc. remain before you, in the same way, their former expressions are seen in yoga etc. This Rahu devotion gives the form of desire for creation. In the beginning of the period of inspiration, they create the world again and again in the same way, by creating medicines and animals, then in the beginning of the Treta Hi Yuga, they include the goat in the Yagya etc.
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