श्री विष्णु पुराण कथा अध्याय 4

ब्रह्मा जी की उत्पत्ति प्रभु द्वारा पृथ्वी का उद्धार और ब्रह्मा जी की लोक रचना



श्री मैथिली जी बोले हे मुनि श्रेष्ठ कल्प के आरंभ में प्रभु श्री ब्रह्मा जी ने जिस प्रकार सब भूतों की रचना की उसका वृतांत कर आप वर्णन कीजिए श्री पराशर जी बोले प्रजापति यों के स्वामी प्रभु ब्रह्मा जी ने जिस प्रकार प्रजा की सृष्टि की वह मैं तुम्हें सुनाता हूं ध्यान से सुनो पिछले कल का अंत होने के पश्चात जब ब्रह्मा जी रात्रि में सो कर उठे तो उन्हें समस्त लोगों को शून्य में खाली देखा हुए प्रभु नारायण पर है वह ब्रह्मा शिव आदि प्रभु के सभी स्वयं प्रभु हैं ब्रह्म स्वरूपाय अनादि हैं और सब की उत्पत्ति के स्थान है नर से उत्पन्न होने से जल्द पानी होना भी कहा जाता है वह अनार यही प्रभु का निवास स्थल है इसलिए प्रभु को नारायण कहा जाता है समस्त संसार जलमग्न दिखाई दिया इसलिए प्रजापति प्रभु ब्रह्मा जी ने अनुमान से जाना कि पृथ्वी जल के अंदर है तो पृथ्वी को जेल से बाहर निकालने के लिए एक दूसरा शरीर धारण किया उन्होंने पूर्व मैं जिस प्रकार मत्स्य कूर्म आदि स्वरूप धारण किए थे उसी प्रकार वाराह कल के आरंभ में वेद यज्ञ में वाराह शरीर धारण किया और समस्त संसार की स्थिति में तर्पण हो सबके अंतरात्मा और अविचल रूप हुए प्रभु ब्रह्मा जी जो पृथ्वी को धारण करने वाले और स्वयं अपने ही आकृति स्थित है वराह रूप धारण कर जब प्रभु जल में प्रविष्ट हुए तो उन्हें पताल लोक में आया देख देवी वसुंधरा पृथ्वी भक्ति भाव से भर कर उसकी स्तुति करने लगे हैं शंख चक्र गदा पद्म धारण करने वाले कमलनयन प्रभु आप को मेरा नमस्कार है आप आज इस पताल लोक से मेरा उद्धार कीजिए पूर्व काल में मैं आपके द्वारा ही उत्पन्न हुई थी हे जनार्दन पूर्व में ही आपने ही मेरा उद्धार किया था और हे प्रभु मेरे तथा आकाश आदि अन्य समस्त भूतों के भी आपकी उत्पादक रहे हैं हे जगत पिता आप को मेरा बारंबार नमस्कार है हे प्रभु मैं आपको नमस्कार करती हूं यह प्रधान और व्यक्ति कार्य रूप आपको नमस्कार है एक काल स्वरूप आपको बारंबार नमस्कार है हे परमेश्वर संसार की रचना आदि के लिए ब्रह्मा विष्णु और रूद्र रूप धारण करने वाले आपकी समस्त भूतों की उत्पत्ति पालक और नाश करने वाले हैं और संसार के जल में हो जाने पर यह प्रभु सबको भक्षण करने के पश्चात अंत में आप ही मनीषियों द्वारा चिंतित होते हुए जल में स्वयं करते हैं हे परमेश्वर आपको जो पर तत्व है उसे तो कभी कोई नहीं जान सकता है आपका जो रूप अवतार में प्रकट होता है उसी की समस्त देवगन पूजा अर्चना करते हैं आप परम ब्रह्मा की उपासना करके विशु भजन मुक्ति पाते हैं वासुदेव की उपासना करें बिना कौन मुक्ति पा सकता है मन से जो संकल्प किया जाता है चाचू आदि इंद्रियों से कुछ विशेष ग्रहण करने योग्य है बुद्धि द्वारा जो कुछ भी चारणीय है वह समस्त आपका ही तो रूप है हे परमेश्वर मैं तो आपका ही रूप है मुझे आप ही का सहारा है मैं आपकी शरण में हूं और आपने ही मेरे रचना की है इसलिए लोग में मुझे माधुरी भी कह कर पुकारते हैं यह जगतपता आपकी जय हो हे परमेश्वर आपकी जय हो हे प्रभु आपकी जय हो हे देव आप ही यज्ञ हैं आप ही ओंकार हैं आप ही वेद वेदांग और यज्ञपुरुष हैं सूर्य आदि ग्रह तारे नक्षत्र और समस्त संसार सब कुछ आप ही हैं हे परमपिता मूर्त और अमूर्त दृश्य अदृश्य और जो मैंने कहा है तथा जो नहीं कहा है वह सब कुछ आप ही हैं अतः प्रभु आपको बारंबार नमस्कार है पृथ्वी द्वारा 12 भगवान की इस प्रकार स्तुति के जाने पर महा वारा श्री ब्रह्मा जी ने थरथर शब्द से गर्जना की और फिर कमलनयन वाले उस महाभारत प्रभु की ब्रह्मा जी ने अपनी अदाओं से पृथ्वी को ऊपर उठा लिया और वे कमल दल के समान श्याम और नीला जल की तरह विशाल का या प्रभु रसातल से पृथ्वी को लेकर बाहर निकले जल से बाहर निकलते समय महाभारत प्रभु श्री ब्रह्मा जी के मुखसिवान से उछलते हुए जलने जनलोक में रहने वाले महा तेजस्वी और निष्पाप सनातन आदि मुनीश्वर को भी दिया जल भयंकर शोर करता हुआ उनके फूल से विदित होने वाले रसातल में नीचे की ओर जाने लगा और उसकी जनलोक में रहने वाले सिध्दांत उसके स्वास हुआ उससे डिशूम व्याकुल होकर छिपने के लिए इधर-उधर भागने लगे जिनकी ऊंची जल में भीगी हुई है जिस समय वह 12:00 प्रभु ने अपने वेद में शरीर को काम पे कहां पे हुए पृथ्वी लेकर जेल से बाहर निकले तो मुनि जन उसकी स्तुति करने लगे उन उतरान दृष्टि वाले धरा धर प्रभु की जन लोक में वास करने वाले सन का आदि मुनीश्वर में प्रसन्न चित्त होकर श्रद्धा पूर्वक सिर झुका कर इस तरह स्तुति की हे ब्रह्मा दी स्वरों के भी परमेश्वर है संघ जगद आधार है खड़क चक्रधारी केशव आपकी जय हो आप ही जगत की उत्पत्ति करने वाले हैं आप ही जगत के पालक हैं आप ही संघ भारत हैं आप ही प्रभु हैं और जिस्म से परम पद कहते हैं वह आपके अतिरिक्त और कुछ नहीं है हे प्रभु आप ही यज्ञपुरुष हैं आपके चरण कमलों में चारों वेद हैं दांतों में यज्ञ है मुख में चीटियां है आपकी दिया यज्ञ अग्नि है और उसमें रोमा वाली है हे परमपिता आपके नेत्र दिन एवं रात है और सिर्फ चमक आधारभूत फ्रॉम ब्रह्मा है हे प्रभु वैष्णव आदि संपूर्ण सूक्त आपने इस संत के रूम बुक है और सामग्री छवि आपके प्राण है यह परमेश्वर स्त्रावी का आपका ट्यून सूचित है शाम सरदारी गंधर्व शब्द है आपका शरीर प्रशन यज्ञ मांग ली है और शस्त्र शरीर की ग्रंथियां है हे प्रभु आपके कान स्रोत एवं स्वाद धर्म है हे परमपिता प्रसन्न हुए हे परमेश्वर आपने पद प्रभार से भूमंडल को प्राप्त करने वाले आपको हम जगत के आदि कारण समझते हैं आप समस्त चराचर संसार के परमपिता और नाथ हैं आप प्रसन्न पूर्ण हे प्रभु आपकी नारों पर टिका हुआ यह समस्त भूमंडल ऐसा दिखाई देता है जैसे कमल 1 को चलते हुए हाथी गजरात के दांतो में कीचड़ शांत हुआ कमल का पता लगा हुआ को हे परमपिता पृथ्वी एवं आकाश के मध्य कितना अंतर है वह आपके शरीर से ही व्याप्त है हे जगत् को व्याप्त करने में समस्त तेज युक्त प्रभु आप समस्त जगत का उद्धार कीजिए हे जगत पिता एक मात्रा परम मार्च केवल आप ही तो हैं अन्य कोई भी नहीं है यह संपूर्ण चराचर जगत आप की महिमा से ही व्याप्त है यह मूर्तिमान जग दिखाई देता है वह आप ही स्वरूप है अजीत ट्रेन दरिया लोग धर्म से इसे जब रूप में देखते हैं यह समस्त ज्ञान स्वरूप संसार को अज्ञानी बुद्धिहीन लोग अर्थात रूप देखते हैं वह सदैव मुंह में जगत संसार में भटकते हैं हे प्रभु जो जन शुद्ध चित्त और विज्ञान वेदा है वे इस समस्त जगत को आपका ज्ञान आत्मक स्वरूप दिखाई देते हैं यह सर्वव्यापी प्रसन्न हुए हे कमलनयन आपके निवास के लिए पृथ्वी का कल्याण करने आपको शांति दीजिए हे प्रभु आप इस समय स्वत्व प्रधान है हे प्रभु जबकि उधम भाव के लिए आप पृथ्वी का कल्याण कीजिए और हमें शांति प्रदान कीजिए हे प्रभु आपको नमस्कार है श्री पराशर जी बोले इस तरह स्थिति के जाने पर पृथ्वी को धारण करने वाले 12 प्रभु श्री ब्रह्मा जी ने उसे अति शीघ उठकर अपार जल के ऊपर स्थापित कर दिया उज्जल समूह के ऊपर पृथ्वी का एक विशाल नौका के समान स्थित है और अति विशाल काया होने के कारण उसे दुखती नहीं है पृथ्वी को स्थापित करने के पश्चात अनादि परमेश्वर ने फिर पृथ्वी को समतल कर उस पर जहां-तहां पर्वत को स्थापित कर दिया फिर प्रभु ने अपने प्रभाव से पूर्व कल्प के अंत में दिए हुए सारे पर्वतों को पृथ्वी जल पर यथा स्थान रख दिया इसके पश्चात प्रभु में सप्तदीप आदि क्रम से पृथ्वी को यथा योग्य विभाजित करके भूख वालो आदि चारों लोग की विधि पूर्वक रचना कर दी इसके पश्चात प्रभु श्री हरि ने रजोगुण से युक्त होकर चतुर्मुख धारी चार मुख वाले ब्रह्मा का रूप धारण कर इस पृथ्वी सृष्टि की रचना की इस पृथ्वी सृष्टि की रचना मैं प्रभु तो केवल निमित्त मात्र ही है हे तपस्वी में सर्वश्रेष्ठ मैथिली वस्तुओं की रचना सृजन में निर्मित मात्र को छोड़कर और किसी बात की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि वह तू तो स्वयं अपनी ही शक्ति से स्थूल रूप को प्राप्त होती है

TRANSLATE IN ENGLISH 

The origin of Brahma ji, the salvation of the earth by the Lord and the world creation of Brahma ji

Shri Maithili ji said, O Muni Shreshtha, in the beginning of the Kalpa, describe the manner in which Lord Shri Brahma ji created all the ghosts. I tell you listen carefully after the end of yesterday, when Brahma ji woke up in the night, seeing all the people empty in the void, he is on Lord Narayan. It is also said to be the place of origin of water before being born from man. That pomegranate is the abode of the Lord, therefore the Lord is called Narayan. The whole world appeared to be submerged. If it is inside, then in order to get the earth out of the prison, he assumed another body, the way he had assumed the form of Matsya Kurma etc. in the past, in the same way Varah assumed the body of Varah in the Ved Yagya at the beginning of tomorrow and the whole world should be sacrificed. Everyone's conscience and unshakeable form Lord Brahma ji who holds the earth and himself is in his own form. Lord Kamalnayan, who wears conch, mace, lotus, I salute you, today you save me from this Patal Lok, in the past I was born only by you, O Janardan, in the past you saved me and my Lord And you have been the producer of all other ghosts like sky etc. Oh father of the world, I salute you again and again O Lord For Brahma, Vishnu and Rudra are the originators and destroyers of all your ghosts, and when the world is in the water, this Lord, after devouring everyone, in the end, being worried by the sages, you himself in the water. Oh God, no one can ever know the essence of You. Your form that appears in incarnation is worshiped by all the gods. Whatever is resolved by the mind, Chachu etc. is something special to be received by the senses, whatever is grazed by the intellect, it is all your form, O God, I am only your form, I am your support, I am your refuge. I am and you have created me that's why people call me Madhuri too The Sun, the planets, the stars, the constellations and the whole world, everything is only you, O Supreme Father, visible and invisible, and what I have said and what I have not said, everything is you, so Lord, I salute you again and again. On the departure of praise, Maha Vara Shri Brahma ji roared with a trembling word and then that Mahabharata Lord Brahma ji of Kamalnayan lifted the earth up with his style and he became black like a lotus flower and blue like water. While coming out of the water that came out of the abyss with the earth, Mahabharata Lord Shri Brahma ji's mouth-siwan, the burning water was also given to the great Tejasvi and sinless Sanatan Adi Munishwar living in the public world, making a terrible noise in the abyss that became known from his flower. Started going down and the principles living in his Janalok breathed on him, Dishoom distraught from him started running here and there to hide whose height is drenched in water, at which time at 12:00 the Lord in his Vedas put the body to work. When he came out of the prison carrying the earth covered with water, the sages began to praise him; K Bhi Parmeshwar Sangh Jagad Aadhar Khadak Chakradhari Keshav Hail to you You are the originator of the world You are the protector of the world You are the Sangh Bharat You are the Lord and the supreme position is called from the body He is nothing but you O Lord, you are the sacrificial fire, your lotus feet have all the four Vedas, your teeth have yagya, your mouth has ants, your lamp is the sacrificial fire and it is full of hair. Aadi Sampoorna Sukta you are the room book of this Saint and the material image is your life, this is your tune of Parameshwara Stravi, evening Sardari Gandharva is the word, your body has asked for prayer sacrifice, and the arms are the glands of the body. O Supreme Father, I am pleased, O Supreme Lord, the One who receives the earth from your position, we understand you as the primary cause of the world. Just as the mud in the teeth of the elephant Gujrat calmed down while walking on the lotus 1 Who has found the lotus, O Supreme Father, how much difference is there between the earth and the sky, it is pervaded by your body, O Lord who is all-powerful in pervading the world.Save the world O Father of the world, You alone are the supreme march, there is no one else, this entire world is pervaded by your glory, this form of the world is visible, it is you who is the form of the conqueror, the train of the rivers, it is blessed by religion. When they see this form of knowledge, the world is seen by the ignorant, mindless people, that is, they always wander in the world in their mouths. O Kamalnayan, who is universally pleased, give you peace to do good to the earth for your abode, O Lord. In this way, 12 Lord Shri Brahma Ji, who holds the earth, got up very quickly and established it on the immense water. Above the Ujjal group, the earth is situated like a huge boat and due to its huge body, it is suffering. No. After establishing the earth, the eternal God then leveled the earth and established mountains on it, then by his influence, the Lord placed all the mountains given at the end of the previous cycle on the water of the earth. After dividing the earth according to the order of Saptadeep etc. in the Lord, the four hungry people etc. were created according to the law. After this, Lord Shri Hari created this earth creation by taking the form of four-faced Brahma with four faces, having the qualities of Rajogun. God is only instrumental in the creation of this earth creation, O best of the ascetic, there is no need for anything except the creation of the best Maithili things created in the creation, because you yourself get the gross form by your own power.

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