विष्णु पुराण कथा पहला स्कंद अध्याय 2

सृष्टि की उत्पत्ति का क्रम से वर्णन और विष्णु जी की महिमा



मुनि श्री पराशर जी बोले सर्वप्रथम मैं प्रभु श्री हरिनारायण जी को बारंबार प्रणाम करता हूं जो ब्रह्मा विष्णु तथा महेश इन तीनों रूप से इस सृष्टि की उत्पत्ति स्थिति और संघार के कारण है और अपने भक्तों को भाग्य सागर के रहने वाले हैं उनका विकार रहित शुद्ध अविनाशी परमात्मा सर्वदा एक स्वरूप स्वरूप जी प्रभु श्री हरि नारायण विष्णु जी को मेरा बारंबार प्रणाम है प्रभु श्री हरि विष्णु जी जिनका रूप तो एक है लेकिन वे अनेक को शुरू वाले हैं जिनका शरीर विशाल भी है और उसमें भी है कारण एवं कार्य रूप है आपने अन्य भक्तों को मुक्ति प्रदान करते हैं ऐसे परम पिता परमेश्वर प्रभु श्री हरि विष्णु जी को मेरा बारंबार प्रणाम है प्रभु अधिष्ठाता पति पोस मशीन सुषमा है जो जगत के हर प्राणों के हृदय में विराजमान है पुरुषोत्तम धारा विनाशी अति निर्मल व ज्ञान स्वरूप है संसार की उत्पत्ति और स्थिति में सामर्थ्य और उनका संघार करने वाले हैं प्रभु श्री हरि विष्णु जी को प्रणाम कर माय तुम्हें वह सारा प्रसंग सुनाता हूं जो दक्षा आदि मुनियों के पूछने पर परम पिता प्रभु श्री ब्रह्मा जी ने उनसे कहा था विवाह प्रसंग नर्मदा नदी के तट पर दाग शादी मुनियों ने राजा पूर्व का स्वाद को सुनाया था कि इस प्रसंग को उस पथ पर हमेशा स्वस्थ हो और शास्त्रों के नमूने सुनाया था जो उत्तम से भी बढ़कर हाथी उत्तम अंतरात्मा में स्थित सर्वश्रेष्ठ परमात्मा रूपवान नाम एवं विशेषज्ञ आदि से रहित है जिनमें जन्म बुद्धि परिश्रम दक्ष एवं नाश इन समस्त विकारों का अभाव है व्यवस्था है और उनमें समस्त जगत समाया हुआ है ज्ञानी जन उनको वासुदेव भी कहते हैं प्रभु श्री हरि विष्णु कारण और कार्य पुरुष तथा कल्पतरु भी स्वयं है या उनके बाल कीड़ा है वह त्रिकोण प्रधान तथा विश्व का कारण है तथा स्वयं अनादि एवं उत्पत्ति एवं लाइफ से रहित है यह संपूर्ण क जल प्रलय काल से लेकर सृष्टि के आदि तक उसी में व्यस्त था इस उसी के मरहम को जानने वाले महादेव का महा प्रांगण उसी सत्य को लक्ष्य बनाकर प्रणाम के प्रतिस्पर्धा गीत सुनो वो कहते हैं ना हो ना रात्रि हो नमो भूमि 9 सीट भाइयों जीतपुर साथ स्रोत बुधवा शुरू हुआ तकलीफ ब्रह्मा रिपीट उस महा विनाशकारी पर लाइन में ना दिन था और ना रात्रि और नफरत ही थी और ना काश कान्हा प्रकाश थान अंधेरा था लेकिन इसके अतिरिक्त और भी कुछ नहीं था श्रोता आदि इंद्रियों और बुद्धि आदि का विषय का एक प्रधान ब्रह्मा और पुरुष ही था 1 दिन प्रभु श्री हरि विष्णु जी के परम स्वरूप से दो रूप हुए थे प्रधान और पुरुष प्रभु श्री हरि विष्णु जी के अन्य स्वरूप के द्वारा यह दोनों रूप सृष्टि तथा पहले साल में सहयोग तथा व्युत्क्रम कहलाते हैं इसी रूपांतरण का ही नाम काल है बीते हुए पर लाइक हाल में यह अध्यक्ष प्रसून प्राकृती नलिन था इसलिए प्रसून के इस पर ले को प्राकृतिक पर लाइव कहते हैं यदि बाल रूप प्रभु अनादि है इनका ना आदि है न अंत इसी कारण सृष्टि की उत्पत्ति स्थिति तथा पार्लर का चक्र कभी भी नहीं सकता निर्बाध रूप से आगे बढ़ते रहते हैं हे मैथिली प्रलय काल में प्राकृतिक प्रधान के समय रूप में स्थित हो जाने के बाद तथा पुरुष के प्राकृतिक से अलग स्थिति हो जाने पर प्रभु श्री हरिनारायण जी का कार्य स्वरूप इन दोनों को धारण करने के लिए निर्मित परिवर्तित होता है फिर सर्वकाल के आने पर उन ब्रह्मा सरोवर की सर्व आत्मा स्वर्ग भूतेश्वर सृष्टि के स्वरूप सब में समान रूप से रहने वाले प्रभु श्री हरि विष्णु जी ने अपनी इच्छा और लोक कल्याण के लिए विकारी प्रधान और अविकारी पुरुष भी प्रविष्ट होकर उन को संबोधित किया है जैसे क्रियाशील ना होने के बाद भी हैं ना आपने निधि से ही मन को प्रसन्न कर देता उसी तरह परमात्मा अपने स्थिति से ही प्रधान और पुरुष को प्रेरित करते हैं यदि प्रभु श्री हरि विष्णु जी इसका हित करने वाले हैं तथा वे ही इस फाउल होते हैं तथा संकोच और विकास योगदान रूप से हुए ही स्थित है ब्रह्मा जी समस्त देवों के देव प्रभु श्री हरि विष्णु जी ब्रह्मा जी जी स्वरूप सृष्टि स्वरूप तथा महात्मा स्वरूप श्री स्थित है यदि श्रेष्ठ सरोकार के उपस्थित होने पर गुणों की संभावना का रूप प्रधान जब प्रभु श्री हरिनारायण के रूप में उत्पन्न हुए तो उनके महत्व उत्पन्न हुआ उत्पन्न होने वाले महान प्रधान तत्वों से अभिक्रिया महत्त्व लिंक प्रकार का होता है इस्लामिक राजीव तामसी सात्विक प्रवृत्ति वाले प्राणी शुद्ध व पवित्र विचार वाले तथा भोग विलास आदि स सदैव दूर रहते हैं सात्विक प्रवृत्ति वाले प्राणियों में तनिक भी इनकार नहीं होता राशि प्रवृत्ति के प्राणी राशि स्वभाव वाले होते हैं ऐसे प्राणी का एकमात्र उद्देश्य होता है भोग विलास उनका मान सम्मान भी काफी होता है तामसी प्रवृत्ति के प्राणी राक्षस की शोभा वाले धर्म का नाश करने वाले भोग विलास व मदिरापान करने वाले होते हैं किंतु जिस प्रकार बीच छिलके से संभव से ढका रहता है उसी प्रकार यह त्रिविध महत्व प्रधान तत्व के समस्त और व्याप्त है फिर त्रिविध महत्व से ही सात्विक व्यापारिक राशि प्रेषित भुतहा दी तांत्रिक तीनों तरह का अहंकार उत्पन्न हुआ है कि वह त्रिगुणात्मक होने के कारण भूत कथा इंद्र आदि का कारण है जिस तरह प्रधान से महत्व ब्यास है वैसे ही महत्व द्वारा आमदार व्याप्त रहता है भूत आदि नामक तामसिक अहंकार से विकृत होकर शब्द प्राम सत और उसमें शब्द और सामान की रचना की है फिर असमान से विकृत स्वरूप राम सत्य वचन गया संतराम सबसे शक्तिशाली वायु उत्पन्न एवं उसका गुण स्वभाव माना गया है सद्दाम शतरूपा सामान में स्वर्ण रामसर वायु प्रवाहित किया है इस वायु से विकृत होकर रुकता नुसरत की रचना की है वायु से तेज उत्पन्न हुआ है उनका मूल रूप कहलाता है इस पर रामस्वरूप वायु ने स्वरूप ग्रामसचिवालय तेज को अपने अंदर ढक लिया है फिर के भी विकृत होकर रस राम शब्द की रचना की है रस्त रामसर से 10 गुण वाला जेल बना इस तरह मत वाले जल को स्वरूप राम सर कैसे रख लिया जल में विचार प्राप्त करके ग्राम शक्ति रचना की उस से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई जिसका वह मान गया है उन उन आकाश दीप भूतों नेताम सर इसलिए तामसा पूर्ण रूप की कहे जाते हैं सांसद में विशेष भाव नहीं है इसलिए उनकी संज्ञा और विशेष अति विशेष है आती विशेषत राम सब शांत हो तथा मुहूर्त नहीं है विशेष ग्राम सड़क का सुख-दुख की अवैध रूप से अनुभव प्राप्त नहीं हो सकता इस प्रकार काम शैतान का हार से पुत्र रामस्वरूप स्वर्ग हुआ है दस इंद्रियों के जस अर्थात राजा साहब घर पर और उनकी अध्यक्षता व कार्यकर्ता सात्विक आहार से उत्पन्न हुए माने जाते हैं इस तरह इंद्रियों के अधिष्ठाता देवता तथा गारवा मन इस्लामिक है यदि ज्यादा चतुर नाक ना सीखा जीना न्यू तथा कांत रोते पांचों ज्ञानेंद्रियों बुद्धि की सहायता से शब्द आदि विषयों को ग्रहण करते हैं हे मैथिली गोदा ले हाथ और पैर पद तथा स्वर्गवास A5 कर्म इंडिया होते हैं इनका कार्य मल मूत्र का त्याग की गति और वचन होते हैं आकाश वायु पवन तेज प्रकाश जल तथा पृथ्वी 15 उपक्रम शब्द स्पर्श आदि 5 गुणों से युक्त है पांचो भूत सुख-दुख और वह शांत है इसलिए विशेष कहलाते हैं भूतों में अलग-अलग विद्या शक्ति समाहित है अतः वे पारंपरिक तमिल बिना इस सृष्टि की रचना नहीं कर सकते इसलिए एक दूसरे पर आश्रित निर्भर रहने वाले एक ही समाज की उत्पत्ति का लक्ष्य रखने वाले महत्व से लेकर विशेष परिधान प्राकृतिक एवं समस्त विचारों में पुरुषों से अधिक होने के कारण परस्पर एक दूसरे से मिलकर सदैव एक होकर प्रधान तत्वों के अनुग्रह द्वारा उत्पत्ति की है यह मछली जल के बुलबुले की तरह भूतों से बढ़ा हुआ गला आकार तथा जल जालपा ठहरा हुआ महान अखंड ब्रह्मा किरण गर्व रूप प्रभु श्री हरि विष्णु का अति उत्तम प्राकृतिक से उत्पन्न आभार हो जाता है उसम अभिव्यक्त स्वरूप जगतपति प्रभु श्री हरि विष्णु जी व्यस्त सिर अंगारों से स्वयं ही विराजमान हुए हैं उन महात्मा हिरण गर्व सुमेरू युवा वर्ग को ढकने वाली झिल्ली अन्य पर्वत जरा यूरिया गर्भाशय तथा समुद्र गर्भावस्था रास्ता एबी प्रभु से खंड में सागर दीप पर्वत पहाड़ ग्रहण के सहित संपूर्ण लोक देवता गंधर्व असुर मनुष्य प्राणी आदि उत्पन्न हुए हैं वह अखंड पूर्व की अपेक्षा 10 गुना अधिक जल पानी अग्नि वायु पवन आकाश अच्छा भूत आदि अर्थात आम सरकार से अपहृत है अद्भुत आदि महत्व से घिरा हुआ है और इनके सबके साथ वाह महत्व भी अभिव्यक्त प्रधान से अभी तक क हुआ है जिस प्रकार नारियल के फल का अंदरूनी बिक्री बीच बहार के छिलकों से ढका रहता है इसी प्रकार यह खंड इन साथ प्राकृतिक हवा वनों से घिरा हुआ है उसमें स्थित बसे हुए स्वयं प्रभु श्री हरि विष्णु जी प्रभु ब्रह्मा होकर राजयोग में का सहारा आश्रम लेकर इस सृष्टि की रचना में लगे रहते हैं तथा सृष्टि की रचना हो जाने के पश्चात प्रभु श्री हरि विष्णु जी उसका कार्यान्वयन युग काल में पालन करते हैं फैमली इसके पश्चात कल का अंत होने पर भी दारू तम्मा प्राण स्वरूप धारण करके प्रभु श्री हरि विष्णु जी समस्त भूतों का भक्षण कर लेते हैं इस तरह समस्त भूतों का भक्षण कर लेते हैं इस तरह समस्त भूतों का भक्षण कर इस सृष्टि को जल में करने के पश्चात में परमेश्वर शेष शैया पर सहन करते हैं और फिर जागने के पश्चात ब्रह्मा स्वरूप होकर हुए फर से सृष्टि की रचना करते हैं वह एकमात्र प्रभु श्री हरि विष्णु जी इस जगत की सृष्टि स्थित और संहार के लिए ब्रह्मा विष्णु व महेश इन तीनों रूपों को धारण करते हैं हे प्रभु श्री हरि विष्णु सृष्टि अर्थात ब्रह्मा मंत्र स्वयं ही आपन उत्पत्ति करते हैं बालक विष्णु होकर पालियन अपना ही पालन भी करते हैं पता अंत में स्वयं ही सार्थक शिव रूप धारण कर स्वयं ही दिन होते हैं पृथ्वी धरती जल वायु तेज और आकाश समस्त इंद्रियों अतः कारण आदि जितना भी संपूर्ण जगत है सब पुरुष रूप है क्योंकि प्रभु श्री हरि विष्णु जी की भी स्वरूप और सबूतों के अंतरात्मा हैं इसलिए ब्रह्मा दवरुण प्राणियों में स्थित सर्वाधिक भी अकारण जैसे ऋषि यों द्वारा किया हुआ हवन यज्ञ मान का आकार होता है उसी तरह प्रभु के बनाए हुए सब प्राणियों द्वारा होने वाली सृष्टि भी उन्हीं के अब तक के सर्वश्रेष्ठ वर दायक और वेयर प्रभु श्री हरि विष्णु जी ब्रह्मा आदि अस्वास्थ्य द्वारा सृजन करता है वह ही रचे जाते हैं वह ही पालन करता है तथा वही संघर्ष करते हैं

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Description of the origin of the universe and the glory of Vishnu

Muni Shri Parashar ji said, First of all, I bow down to Lord Shri Harinarayan ji again and again who is the cause of the origin and creation of this universe in all three forms of Brahma, Vishnu and Mahesh and who is the abode of the ocean of fortune to his devotees. Lord Shri Hari Narayan Vishnu ji, my repeated salutations to Lord Shri Hari Narayan Vishnu ji, whose form is one, but he is the one who starts many, whose body is huge and there is reason and work in it, you have other I bow down again and again to such Supreme Father Supreme God Prabhu Shri Hari Vishnu ji who grants salvation to the devotees, the Supreme Lord, the Supreme Lord, is the husband, who resides in the heart of every living being in the world; Salutations to lord Shri Hari Vishnu ji, mother, I narrate to you the whole incident which on the question of Daksha etc. sages, Supreme Father Lord Shri Brahma ji had told them about the wedding ceremony on the banks of river Narmada. The sages had told the taste of the king east that this context should always be healthy on that path and narrated the examples of the scriptures which is more than the best, the best God situated in the best conscience, the best God is devoid of beautiful name and expert etc. And destruction is the absence of all these disorders, there is order and the whole world is contained in them, the wise people also call them Vasudev, Lord Shri Hari Vishnu is the cause and action man and Kalpataru is also himself or his hair is a worm, he is the triangle head and the cause of the world. And itself is eternal and devoid of origin and life, this whole water from the time of deluge till the beginning of the creation was engaged in it, the great court of Mahadev who knows this ointment, aiming at the same truth, listen to the competitive song of salutations, he says. na ho na ratri ho namo bhoomi 9 seat brothers jeetpur saat source budhwa started trouble brahma repeat on that great destroyer line had neither day nor night and hatred itself and na kash kanha light than darkness was there but nothing more Brahma and Purush were the main subject of listeners etc. senses and intellect etc. 1 day Lord Shri Hari Vishnu ji's supreme form had two forms Pradhan and Purush through the other form of Lord Shri Hari Vishnu ji these two forms were created and In the first year are called cooperation and inversion. The name of this transformation is tense. Past but like in the recent past it was Prasoon Prakriti Nalin, therefore Prasoon's take on this is called live on Prakriti. Ultimately, this is the reason why the cycle of creation and parlor can never continue uninterrupted, O Lord Shri Maithili, after being situated in the time form of the Prakrit Pradhan in the holocaust period and when the Purusha is separated from the nature. The work form of Harinarayan ji transforms into a creation made to hold both of them, then on the arrival of all times, Lord Shri Hari Vishnu ji, who resides equally in all the souls of Brahma Sarovar, heaven, Bhuteshwar creation, fulfills his will and welfare of the people. For the vicious head and the incorruptible man have also entered and addressed them, as if even after not being active, he pleases the mind with his wealth, in the same way God inspires the head and man from his position, if Lord Shri Hari Vishnu ji is going to do good for it and he is the one who becomes this foul and hesitance and development are situated in the form of contribution. On the presence of superior concern, the form of possibility of virtues when Pradhan was born in the form of Lord Shri Harinarayan, then his importance was born, the importance of reaction to the great prime elements that are born is of the link type. Those with thoughts and indulgences always stay away from pleasures etc. There is no denial even in the beings of sattvic tendency. The destroyers of the dharma that are the glory of the demon are those who indulge in luxury and drink alcohol, but just as the middle is covered with a peel, in the same way this triple importance pervades the whole of the main element, then due to the triple importance, the sattvic business zodiac is sent to the ghost. The Tantrik three types of ego have arisen that due to being of three gunas, it is the cause of Bhoot Katha Indra etc. Just as importance is byas from Pradhan, in the same way MLA is pervaded by importance, distorted by vengeful ego called Bhoot etc. Shabd Pram Sat and in it Words and goods have been created, then Ram has been distorted from unequal to the true word, Santram has generated the most powerful air and its virtue is considered to be the nature, Saddam Shatrupa has made gold Ramsar air flow in the goods, with this air, Nusrat has been created by distorting and stopping. Tej has originated from it, its original form is called Ramswaroop Vayu has covered the Swaroop Gramachivalaya Tej inside itself, yet after getting distorted, the word Ras Ram has been created, Rast Ramsar has become a prison with 10 qualities.How did you keep Ram's head in the form of water? After receiving the idea, the creation of the village power, the earth was born from it, which he has accepted. His noun and special is very special, especially Ram, all should be calm and there is no Muhurta, there is no special village road, happiness and sorrow cannot be experienced illegally. Raja Saheb at home and his chairmanship and workers are believed to be born from Satvik diet, in this way, the presiding deity of the senses and the Garva mind is Islamic. Let's do it O Maithili Goda Le hands and feet post and go to heaven A5 Karma is India, their work is the movement of excrement urine and speech sky air wind bright light water and earth 15 undertaking word touch etc. five qualities are five elements happiness -Dukh and he is calm that's why they are called special ghosts have different learning power so they can't create this universe without traditional tamil so dependent on each other with importance aiming at the origin of a single society Due to being more than men in special clothing, natural and in all thoughts, this fish has been created by the grace of the main elements, always united with each other, this fish, like a bubble of water, the throat size increased from the ghosts and the water jalapa remains great monolithic. Lord Shri Hari Vishnu in the form of pride, gratitude arises from the very best of nature. Urea womb and ocean pregnancy path AB from the Lord in the section ocean lamp mountain mountain eclipse including all the folk deities Gandharva Asura human beings etc. have been born 10 times more water water fire air wind sky good ghost etc than in unbroken east i.e. common government It is abducted, surrounded by amazing etc. importance and along with all this, the importance of wow has also been expressed from the prime till now. Lord Shri Hari Vishnu ji himself resides in it, taking the support of Rajyoga ashram, resides in it, and after the creation of the world, Lord Shri Hari Vishnu ji takes care of its implementation in every era. After this, even after the end of tomorrow, Lord Shri Hari Vishnu ji, taking the form of Daru Tamma Prana, devours all the ghosts, in this way he devours all the ghosts, in this way, by devouring all the ghosts, this world is transformed into water. After that, God tolerates the rest of the bed and then after waking up, he creates the universe again by becoming Brahma Swaroop. O Lord Shri Hari Vishnu Srishti i.e. Brahma mantras, they themselves create their own creation, being child Vishnu, they also maintain themselves, they know themselves in the end, assuming the meaningful form of Shiva, the earth, the earth, the water, the air, the light, and the sky. All the senses, therefore, the reason etc., the whole world is in the form of a man, because Lord Shri Hari Vishnu ji also has the form and evidence of the inner self, therefore, Brahma is the form of Yagya performed by sages without any reason. In the same way, the creation that is created by all the creatures created by the Lord, is created by the best boon giver and where Lord Shri Hari Vishnu ji Brahma etc. is created by ill health, they are created, they follow and they struggle

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