श्री हरिवंश पुराण कथा

घन्टाकणॅ पिशाच की मुक्ति



हे राजेंद्र तब पूर्ण होने पर वह कुत्तों के साथ उसका पालन करने वाले अपने अंगों पर अंतरा कड़ियों को लपेट ते हुए रक्त से सहने मुंह के साथ वहां दो कि साक्षर हाजिर हुए उन्होंने कृष्ण से कहा एक जन दर्शन में घाटा का नामक इस आचार हूं और यह मेरा सहयोगी है इस आचार होते हुए भी हमारी सिम में बड़ी आस्था है आपने कर्मों को हम तेरी पूरी को ही समर्पित कर देते हैं अतः हमारे पाप कर्मों के पश्चात भी भगवान शिव ने हमें दर्शन दिए थे मुझे विष्णु का नाम सुनना भी पसंद नहीं था अतः अपने कानों पर मैंने घड़े बांधकर लिया थे जिससे विष्णु का नाम भी मेरे कानों में ना पड़े मेरे द्वारा मुक्ति का वर मांगने पर शिव ने कहा तुम बंदरी वन में विष्णु की ही तपस्या करो तब विष्णु स्वयं श्री कृष्ण के रूप में इस वन में तपस्या करने आएंगे तब वही तुम्हारे और तुम्हें इस सहयोगी को मुक्ति प्रदान करेंगे हे प्रभु तब से हम आप ही के द्वारा अक्षरी मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय का यह जाप कर रहे थे आपके दर्शन से आज हमारी तपस्या सफल हुई है प्रभु आप ने चक्र द्वारा हमारी इस विकृति तामसिक मालिनी पापी काया को नष्ट करके हमें मोक्ष प्रदान किया तब कृष्ण ने उन दोनों महारथियों को मुक्ति प्रदान की तब कृष्णा जी बद्री 1 से होते हुए कैलाश पर्वत पहुंचे उसी स्थान पर पहले भी विष्णु रूप से अनंत काल तक तप करके शिव से उन्होंने सुदर्शन नामक अघोर चक्र प्राप्त किया था वैसे शिव और विष्णु एक ही सिक्के के दो पहलू के समान अभिन्न है किंतु विधान अनुसार पालन तथा व्यवस्था का उत्तरदायित्व विष्णु वाहन करते हैं और विनाश तथा विद्वास का शिव इसलिए जब विष्णु ने कई महायुद्ध करके विनाश कार्य अपने हाथों में लिया तब मर्यादा वर्ष पहले शिव को पूजा से प्रसन्न कर विनाश की अनुमति ली जैसे राम के रूप में रावण से युद्ध करने से पहले रामेश्वरम की स्थापना की और कृष्ण के रूप में बिलो तिलकेश्वर की स्थापना आदि की इस प्रकार सुदर्शन परम संघर्ष और अघोरास्त्र है इसलिए सर्वस्य होते हुए भी मर्यादा पालन के लिए उस चक्र को विष्णु ने शिव से ही प्राप्त किया

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Liberation of Ghantakan Vampire

O Rajendra, when he was completed, he was there with the blood to bear the eyes with the blood wrapped on his organs with the blood, he told Krishna that he was called this ethos called Ghata in a public philosophy and This is my partner, despite this ethics, there is a lot of faith in our sim, you dedicate the deeds to you, so even after our sinful deeds, Lord Shiva gave us darshan, I did not even like to hear the name of Vishnu. Therefore, I had tied the pitcher on my ears, so that Vishnu's name did not fall in my ears, when I ask for the bride of liberation, Shiva said that you do penance of Vishnu in Bandri forest, then Vishnu himself as a penance in this forest as Shri Krishna himself If you will come to do, then he will give you liberation to you and this colleague, Lord, since then we were chanting this Akshari Mantra Om Namo Bhagwate Vasudevaya, our austerity has been successful today, Lord you have succeeded in our philosophy. Vikriti Tamasik Malini destroyed us and gave us salvation by destroying the sinner, then Krishna provided liberation to both those maharathis, then Krishna ji reached Kailash mountain via Badri 1 at the same place at the same place at the same place earlier and meditated on Vishnu form for eternity and he did Sudarshan with Shiva The Aghor Chakra called the name Aghor was received, although Shiva and Vishnu are as integral as two aspects of the same coin, but according to the law, Vishnu is responsible for the system and Shiva, and Shiva of destruction and belief is therefore when Vishnu committed many great war in his hands Then took permission for destruction by pleasing Shiva from worshiping the day ago, such as the establishment of Rameswaram before fighting Ravana as Rama and the establishment of Billo Tilakeshwar as Krishna, etc. Thus Sudarshan is the ultimate struggle and Aghrastra, hence Despite being universal, Vishnu attained that cycle from Shiva only to follow dignity.

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