श्री कृष्णा की कैलाश यात्रा
राजा जनम जाए द्वारा पूछे जाने पर फिर महामुनि विश्व बनाने कृष्णा जी की किया वह बोले हे राजन जैसा मैंने परम ज्ञानी कृष्णा जॉइनिंग व्यास जी से इस बारे में सुना है वैसा ही तुमसे कहता हूं तुम आनंद पूर्वक सुनो एक बार गृहस्थाशम में रुक्मणी ने कृष्ण से अत्यंत श्रेष्ठ पुत्र की इच्छा व्यक्त की तब श्रीकृष्ण बोले मैं इस प्रकार का पुत्र प्रदान करने के लिए पहले भगवान शंकर की तपस्या करूंगा क्योंकि हे सुभागी पुणे नामक नरक से तराना दिलाने वाले को पुत्र कहते हैं आज्ञाकारी और सद्गुणी पुत्र प्राप्त होना विश्वकीर्ति बड़ी उपलब्धियों में से एक माना गया है कुपुत्र पूरे वंश का नाश कर देता है अतः आपको पत्र पैदा करने से माता का बांध आता कुपुत्र पैदा करने से माता का बांध होना ही श्रेष्ठ है मैं 100 पुत्र की प्राप्ति के लिए पहले महादेव को प्रसन्न करगा इस प्रकार का कार्य कृष्णा पूर्ण आत्माओं की भूमि बद्री वन में तपस्या करने चले गए वहां उन्होंने 10000 वर्षों तक तपस्या की उसी नारायण रूप में विभक्त किया था और उसी स्थान पर वृत्त असुर वध के बाद ब्रह्म हत्या के प्रयास स्वरूप इंद्र ने भी 10000 वर्षों तक तपस्या की थी त्रेता युग में रावण के संघार के बाद ब्रह्म हत्या के पाप के सामान में के लिए श्रीराम ने भी यह घोर तपस्या किया था अतः वह तपोभूमि शीघ्र ही तब करने पर फल प्राप्त करने में सहायक होती है
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Shri Krishna's journey to Kailash
On being asked by King Janam Jaye, Mahamuni Krishna ji did to create the world, he said, O king, as I have heard about this from the most knowledgeable Krishna joining Vyas ji, I tell you the same, listen with joy. Once in Grihasthasham, Rukmani spoke to Krishna Expressed the desire of the best son, then Shri Krishna said, I will first do the penance of Lord Shankar to provide such a son, because O Subhagi, the one who gets a song from the hell named Pune is called a son. It is believed that a malefic son destroys the whole family, so by giving birth to a letter, the mother would be bound. It is better to be bound by the mother than by giving birth to a malefic son. The land of complete souls went to Badri forest to do penance, where he did penance for 10000 years in the same Narayan form and at the same place, Indra also did penance for 10000 years in an attempt to kill Brahma after killing the Asuras in Treta Yuga. After the death of Ravana, Shriram also did this severe penance for the sin of killing Brahma, so that Tapobhoomi is helpful in getting the fruits if done soon.
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