नरसिंह अवतार
हिरण्याक्ष के भाई हिरण पुणे सतयुग में साढे 16000 तक जल में ही रहकर तपस्या किया और ब्रह्मा को प्रसन्न करके अमृता तो का वर मांगा था ब्रह्मा ने कहा था जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु अवश्य होती है अतः अमर तत्व कावर नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह ईश्वरीय विधान के विरुद्ध है तब हिरण शिशु ने ब्रह्मा से इस प्रकार पावर मांग लिया था मेरी मृत्यु ना तो भीतर हो और ना ही बाहर ना मैं पृथ्वी पर मरो ना ही जल या आकाश में ना शस्त्र से और ना सत्र से ना दिन में और ना रात में ना देवता से और ना मनुष्य अथवा पशु सेना सशक्त पदार्थ से महाराज जा सकूंगा नागिनी से जो एक ही प्रहार से मेरी सेना सहित मुझे मार सके उसी के हाथों मेरी मृत्यु हो समस्त देवताओं की शक्तियां तथा अधिकार मुझे प्राप्त हो जाए ब्रह्मा से ऐसा वर प्राप्त कर लेने के पश्चात आपने भाई हिरण्याक्ष की हत्या के कारण विष्णु से द्वेष रखने वाला वह स्वयं को अमर समझने लगा अहंकार की चरम सीमा यह थी कि वह दबी स्वामी को भगवान समझने लगा और प्रजा को भी ऐसा ही मानकर उसकी पूजा करने को विवश करने लगा था ईश्वर की लीला देखो कि उसी का पुत्र उसका विरोधी होकर विष्णु का भक्त बन गया अत्याचारी हिरण कश्यप शिशु ने अपने पुत्र को भी जमा नहीं किया उसे विभिन्न यातनाएं कष्ट हुआ भाई देकर विष्णु भक्ति के विरुद्ध करना चाहा किंतु वह उसकी आस्था व विश्वास को तोड़ ना सका जब हिरण्याक्ष शिशु के पापों का घड़ा भर गया तब इस्तम से नरसिंह के रूप में विष्णु प्रकट हुए उनकी गर्जना मात्र से ही भयभीत होकर हिरण शिशु की सेना भाग खड़ी हुई तब हिरण शिशु को संध्या के समय अपनी गोद में रखकर घर की दहलीज पर आपने नाखून द्वारा एक ही प्रहार से मार दिया इस प्रकार ब्रह्मा का वरदान भी झूठा ना हुआ क्योंकि नर्सिंग सिस्टम से पैदा हुए थे ना अंडे से और ना गर्व से हुआ ना तो मनुष्य थे और ना पशु और ना ही देवता उसकी गोद ना धरती थी ना आकाश घर की दहलीज पर वह ना अंदर था ना बाहर समाज का समय ना दिन का था और ना रात का नाखूनों के द्वारा ना तो वस्त्रों से ना शस्त्रों से तथा एक ही प्रहार से नर्सिंग ने हिरण्याक्ष शिशु के पेट को फाड़ कर मार दिया था इस प्रकार है राजन हिरण्याक्ष शिशु का वध करके उसकी अत्याचारी से भगवान विष्णु ने प्रजा के साथ-साथ अपने भक्त पहलाद की रक्षा भी की थी उनका यह रूप नरसिंह अवतार के रूप में जान आ गया है हिरण्याक्ष शिशु के वध के बाद भी नरसिंह का क्रोध शांत ना हुआ तो समस्त देवताओं तथा ऋषि यों आदि ने उसकी स्तुति की किंतु उसका गुस्सा तब भी शांत नहीं हुआ अंत में पहला द्वारा स्तुति किए जाने पर भगवान नरसिंह शांत हुए तब पहलाद को आशीर्वाद स्वरूप राज देकर भगवान विष्णु वापस बैकुंठ को चले गए
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Narasimha Avatar
Hiranyaksha's brother Hiran did penance by staying in water for 16000 and a half years in Satyuga and by pleasing Brahma had asked for the boon of Amrita. Brahma had said that the one who is born must die, so the immortal element Kavar cannot be given because This is against the divine law, then the deer child sought power from Brahma in this way: I should die neither inside nor outside, nor on earth, nor in water or sky, nor by weapons, nor by session, nor in the day. Neither in the night, nor by gods, nor by human or animal forces, by strong substances, I will be able to go to Maharaj, by the serpent, who can kill me with my army with a single blow, may I die at the hands of him, may I get the powers and rights of all the gods from Brahma After getting the boon, because of the murder of his brother Hiranyaksha, he who hated Vishnu started thinking himself as immortal. The height of his arrogance was that he started thinking of Dabi Swami as God and forced the people to worship him considering it as such. He had started doing God's leela, see that his own son became a devotee of Vishnu by becoming his opponent. The tyrannical deer Kashyap did not submit even his son. When Hiranyaksha's pot was filled with the sins of the child, then Vishnu appeared in the form of Narasimha. Frightened by his roar, the deer's army ran away. On the threshold you killed with a single strike by the nail, thus the boon of Brahma also did not become false because he was born from the nursing system, neither from an egg, nor from pride, neither man nor animal, nor god, nor his lap nor the earth There was no sky at the threshold of the house, he was neither inside nor outside, the time of the society was neither day nor night, nor by nails, nor by clothes, nor by weapons, and with a single blow, Nursing killed Hiranyaksha by tearing the baby's stomach. This is how Lord Vishnu had saved the subjects as well as his devotee Pahlad by killing the child Hiranyaksha from his tyrant. This form of him has come to life as Narasimha Avatar. When the anger did not calm down, all the gods and sages etc. praised him, but even then his anger did not calm down. At last, Lord Narasimha calmed down after being praised by Pahalad, then Lord Vishnu went back to Vaikunth after giving the kingdom to Pahalad as a blessing.
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