श्री हरिवंश पुराण कथा

वाराहावतार



हे राजन सृष्टि से पूर्व जब या संपूर्ण संसार एक स्वामी अंडे की भांति था तब हजार वर्ष बाद ईश्वर ने उसके दो टुकड़े कर ऊपर का आकाशवाणी के का भाग धरती बनाया दिया फिर उसका हाथ प्रकार से वेट किया और पृथ्वी को विभाजित कर दिया अंडे के ऊपर जो सुरंग किया था प्रभु ने वह परम गति का मार्ग और नीचे का क्षेत्रफल मार्ग किया मेक दिशा दिशा आदि वेद अंडे के आठ प्रकार के वेतन से बने किंतु अंडे को दो भाग करने पर उसके भीतर भारत द्रव्य पृथ्वी के चारों ओर फैल गया जिससे संपूर्ण पृथ्वी जल मग्न होकर नहीं लगी तब पृथ्वी ने निम्न प्रकार से नारायण की स्तुति की अर्थात हे त्रिविक्रम हे महान नरसिंह हे चतुर्भुज हिसार धनुष को धारण करने वाले अखाड़ा चक्र एवं गदा धारण करने वाले पुरुषोत्तम आप को मेरा नमस्कार है आप ही जियो और जगत को धारण करने वाले तथा आप ही उसका नाश करने वाले हैं आपने तेज के कारण आप सभी को धारण करने में सक्षम है मैं भी आपके प्रताप से ही सब प्राणियों को धारण करती है नारायण युगों से आप मुझ पर बड़े हुए भार को हटाने के लिए अवतार लेते हैं हे प्रभु राक्षसों और दानवों द्वारा पीड़ित होकर मैं अपनी शरण में आया हूं अब भी मैं आपके देश से शुरू होकर अस्पताल में धंसी जा रही हूं अतः मेरी रक्षा कीजिए तब तक मैं आपकी शरण में नहीं आती तभी तक मुझे भय रहता है किंतु आप की शरण में आते ही मैं भाई मुक्त हो जाती हूं इस प्रकार स्तुति करने पर विष्णु ने पृथ्वी को आश्वासन दिया और 12 रूप धारण कर अपने दांतो व शरीर की कंपन से भूमि को ऊपर उठा लिया या अवतार वाराह अवतार कहलाता है इसलिए भूमि को धारण करने से विष्णु को भूधार धरा धर तथा उसका कल्याण करने वाले से माधव भी कहा जाता है हिरण्याक्ष वध इसी बारह रूप में श्री हरि ने देवताओं का भी एक ही किया था कि राजन अब मैं तुमसे वह कथा भी कहता हूं सुनो ऐसा कह कर वैसे बनाने आगे लगे पृथ्वी का उद्धार होने के बाद उड़ने वाले पर्वत से हिरण्याक्ष आदि देशों को बताया कि आप देवताओं का अधिपति सब और स्थापित हो गया है यह सुनकर महा प्रक्रम में द्वितीय पुरुष हिरण्याक्ष सब देशों के साथ अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए तैयार हुआ उसने बहुत बड़ी सेना के साथ इंद्र पर आक्रमण कर दिया इंद्र ने हिरण्याक्ष से तथा देवताओं से अन्य नीतियों का जमकर सामना किया भीषण युद्ध हुआ कई दैत्य धारा सही हुए कई देवता घायल हो गए उस युद्ध में हिरण्याक्ष ने इंद्र को स्थापित कर दिया और देवता हार गए देवताओं के सहयोग के लिए भगवान विष्णु 12 रूप में तब वहां आए 12 के साथ हिरण्याक्ष का घोर युद्ध हुआ विभिन्न भीषण शास्त्रों के प्रयोग के बाद भी हिरण्याक्ष 12 अवतार से पार ना पा सका तब महा तेजस्वी शक्ति का विष्णु 12 के वक्त पर प्रहार किया किंतु उन्होंने ओंकार मात्र से ही उस शक्ति को निषेध तेज कर दिया अंततः वह महाबली हिरण्याक्ष बार आरोपी विष्णु के हाथों सुदर्शन चक्र से मार डाला गया तब समस्त देवताओं वासियों ने 12 भगवान की स्तुति की इस प्रकार विष्णु ने 12 रूप में ही हिरण्याक्ष का वध करके देवताओं का खोया हुआ राजपूतों वापस दिलाया नेता को मारते थे शेष देख भाग खड़े हुए थे इस घटना के बाद इंद्र ने मैनाक पर्वत को छोड़कर अन्य सभी पर्वत के पंख वज्र से काट दिया तभी से पर्वत एक ही स्थान पर अचल हो गई अन्यथा पहले हुए पंख होने के कारण है कि स्थान से अन्य स्थानों पर चले जाया करते थे 12 चरित्र को सुना था या पढ़ना तुरंत ही विजय दिलाने वाला कहा जाता है

TRANSLATE IN ENGLISH 

Varahavatar

O King, before the creation, when the whole world was like an egg, then after a thousand years, God cut it into two pieces and made the upper part of the sky, the earth, then weighed his hand and divided the earth on top of the egg. The tunnel that the Lord made was the path of supreme speed and the area below made the path. When the water did not start, then the earth praised Narayan in the following way, that is, O Trivikram, the great Narasimha, the four-armed Hisar, the one who holds the bow, the discus and the mace, I salute you, you live and sustain the world. O Narayan, you incarnate to remove the burden that has grown on me since ages. Lord, being afflicted by demons and demons, I have come to your refuge, even now I am sinking in the hospital, starting from your country, so protect me, till then I do not come to your refuge, till then I am afraid, but in your refuge As soon as I come, my brother becomes free, on praising in this way, Vishnu assured the earth and by assuming 12 forms, lifted the land up with the vibration of his teeth and body, or the incarnation is called Varah Avatar, therefore by holding the land, Vishnu The one who destroys land and does its welfare is also called Madhav. After getting salvation, Hiranyaksha told the other countries from the flying mountain that you are the ruler of all the gods and after hearing this, the second man Hiranyaksha got ready to establish his empire with all the countries in the Maha Prakram, he came with a huge army. Indra attacked Indra, Indra fiercely confronted Hiranyaksha and other gods with other policies. A fierce battle took place, many demons were killed, many gods were injured. Lord Vishnu came there in 12 forms, then Hiranyaksha had a fierce battle with 12. Even after using various fierce scriptures, Hiranyaksha could not overcome 12 incarnations. That power intensified the prohibition, finally that Mahabali Hiranyaksh was killed by Sudarshan Chakra at the hands of the accused Vishnu, then all the deities praised the 12 Gods, thus Vishnu killed Hiranyaksha in 12 forms and brought back the lost Rajputs of the deities. Dilaya used to kill the leader, the rest ran away after seeing this incident, Indra cut off the wings of all other mountains except Mainak mountain with a thunderbolt, since then the mountain became immovable at the same place, otherwise it is due to the earlier wings that place. used to go to other places from 12 charitra was heard or read is said to win immediately

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