श्री हरिवंश पुराण कथा

पुषकरावतार 



धर्मा उदय राज्य के स्थापिता हो जाने के बाद देवता और मानव भी सहयोगी हो गए तब यज्ञ कमो मे देवता स्वयं उपस्थित होकर अपना भाग ग्रहण करने लगे एक समय की बात है जब बृहस्पति दक्ष का यज्ञ करवा रहे थे तब भगवान शिव को यज्ञ में  निमंत्रित न करने पर सती स्वेच्छा से ही पिता के यज्ञ में  पहुंच गई वहां अपने पति का अनादर होता देख उनहोंने यज्ञकुणड में कूद कर अगिन समाधि ले ली तब पिनाक पाणि शंकर अपने गणों तथा अनुचरो नंदी वीरभद्र काल आदि सहित यज्ञ को विधवस करने को उघत हो गए गणों ने यज्ञशाला में तहलका मचा दिया तब शिव के पचंड कोन को सहने के कारण वह महायज्ञ मृग का रूप धारण करके वहां से भागने का प्रयास करता हुआ शिव के बाण से जख्मी होकर बहा की शरण में आ गया बहा ने कहा तुम इसी महामृग के रूप में आकाश में चनदमा व तारों के साथ रहोगे तुम्हारे शरीर से बहता यह रक्त आकाश में बनने वाला इन्द्रधनुष होगा इधर भगवान् शंकर का गुस्सा बहादणड के समान प्रलयंकारी होने लगा तो भगवान विष्णु जगत् के विनाश को रोकने के लिए शाड॔धनुष सुदशॅनचक तथा काउण्टर की गदा सहित विकराल चन्द्र पभा खङग धारण कर शंकर को रोकने वहाँ हाजिर हुए वहां शिव और विष्णु में भयंकर युद्ध हुआ उस युद्ध में विष्णु ने नदी को रोक दिया था शिव तथा विष्णु ने एक दूसरे को बाणो से बींध डाला था ॠषिगण देवगण आदि भयभीत हो शिव तथा विष्णु की विभिन्न प्रकार से स्तुति करने लगे तब कहीं जाकर बड़ी कठिनाई से उस युद्ध को रोका जा सका शिव को यह आभास हुआ कि कोध के आवेग में वह समपर्ण सृषिट का समय से पूर्व ही विनाश करने चले थे यदि विष्णु ने युद्ध करके उन्हें रोका न होता तो अनथॅ हो जाना था विष्णु के अतिरिक्त कोई भी शिव की उपता व पचणडता को सहन करके उन्हें युद्ध दारा रोक नहीं सकता था अतः उन्होंने विष्णु को नमस्कार किया दक्ष को दण्ड देने के लिए उसका सिर काट दिया था वह अहंकार के कारण सदैव मैं मैं करता रहता था अतः बकरे का शीश उसके धड़ पर लगाकर उसे पुनरजीवित किया फिर वह महादेव कैलाश पवॅत पर वापस चले गए इसको विष्णु भगवान का पुषकरावतार कहा जाता है इसमें उन्होंने शिव से युद्ध करके समपर्ण सृषिट की उनके पकोप से रक्षा की थी 

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Pushkaravatar

After the establishment of the Dharma Udaya state, gods and humans also became allies, then the gods themselves started taking their part in the sacrifices. On doing this, Sati voluntarily reached her father's Yagya, where seeing her husband being disrespected, she jumped into the Yagya Kund and took Agni Samadhi, then Pinaka Pani Shankar along with his ganas and Anucharo Nandi Virbhadra Kaal etc. got ready to destroy the yagya. created a ruckus in the sacrificial fire, then because of bearing Shiva's panchand, he tried to run away from there by assuming the form of Mahayagya deer, got injured by Shiva's arrow and came to the shelter of Baha. Baha said that you are in the form of this great deer. You will live with the moon and stars in the sky, this blood flowing from your body will be a rainbow formed in the sky, here Lord Shankar's anger started to be devastating like a storm, then Lord Vishnu to stop the destruction of the world, with the bow Sudshanchak and counter's mace, Vikarl Chandra Pabha appeared there to stop Shankar wearing a khang. There was a fierce battle between Shiva and Vishnu. In that war, Vishnu stopped the river. Shiva and Vishnu pierced each other with arrows. When they started praising him in such a way, then that war could be stopped with great difficulty. Shiva realized that in the impulse of anger, he had gone to destroy the dedicated creation before the time, if Vishnu had not stopped him by fighting, then he would have died. Except Vishnu, no one could stop him from war by tolerating Shiva's pain and indigestion, so he bowed down to Vishnu and cut off his head to punish Daksh. So he revived him by applying the goat's head on his torso, then Mahadev went back to Mount Kailash. This is called the Pushkaravatar of Lord Vishnu.

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